पन्ना: आजाद होकर कर्नाटक से वापिस पहुंचे अमानगंज के रामपुर गांव के ३३ मजदूर

  • आजाद होकर कर्नाटक से वापिस पहुंचे अमानगंज के रामपुर गांव के ३३ मजदूर
  • विजयपुर जिले के कोडाबागी में बिना मजदूरी दिए करवाई जा रही थी गन्ने की कटाई

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-12 11:10 GMT

डिजिटल डेस्क, पन्ना। जिले से भोलेभाले गरीब मजदूरों को बहला-फुसलाकर ले जाने के बाद उन्हें बंधुआ मजदूरी के मकडजाल में फंसाने के लगातार मामले सामने आ रहे हैं। एक बार बंधुआ मजदूरी के चंगुल मेें फंसने के बाद अपनी आजादी के लिए मजदूरों को कई तरह की परेशानियों और समस्याओं से गुजरना पड रहा है। पन्ना जिले के अमानगंज थाने के अंतर्गत आने वाले ग्राम रामपुर निवासी ३३ मजदूरों जिनमें महिलायें तथा बच्चे भी शामिल हैं डेढ माह तक कर्नाटक राज्य के विजयपुर जिला अंतर्गत कोडाबागी में गन्ने की कटाई के लिए मजदूरों को बंधक बनाकर रखा गया था और उन्हें दिनभर गन्ने की कटाई के एवज पर पेट की आग बुझाने के लिए काम करवाने वाले लोगों द्वारा आटा और आलू ही खाने के लिए दिए जा रहे थे। मजदूरों को गन्ने की कटाई पूरी नहीं होने तक वापिस लौटने भी नहीं दिया जा रहा था।

बंधकों के चंगुल में फंसे बंधुआ मजदूरों से कुछ मजदूरों द्वारा अपनी पीडा फोन के माध्यम से परिजनों तक पहुंचाई और इसकी जानकारी कार्यरत समाजसेवी संस्था जनसाहस के कार्यकर्ताओं को लगी तो उनके द्वारा मजदूरों को आजाद कराने की दिशा में पहल करते हुए आला प्रशासानिक अधिकारियों तक परिजनों के माध्यम से बात पहुंचाई गई तथा इसको लेकर अमानगंज थाने में रिपोर्ट भी दर्ज हुई जिसके बाद पन्ना जिले के तत्कालीन प्रभारी कलेक्टर जिला पंचायत सीईओ संघप्रिय द्वारा विजयपुर जिले के प्रशासन से सम्पर्क किया गया जिसके फलस्वरूप रामपुर गांव के ३३ मजदूरों की गत दिवस वापिसी हो गई। आजाद होने के बाद मजदूर आज जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय साहस संस्था के कार्यक्र्ताओं के साथ पहुंचे और अपर कलेक्टर से मुलाकात कर पुर्नवास, आर्थिक एवं सामाजिक सुविधाओं को जोडने तथा बंधुआ मजदूर अधिनियम के तहत मुक्ति प्रमाण पत्र दिलाए जाने और इस पर नियमानुसार मुआवजा राशि दिए जाने की मांग की गई।

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सडक की मजदूरी के लिए नागपुर बताकर ले जाया गया था

मजदूरो ने बताया कि दिनांक २४-२५ नवम्बर को ठेकेदार गुलागब हक्के व उनके ग्राम रामपुर के गुटवा और अमानगंज का रमजान उनके गांव आए थे और नागपुर में सडक बनाने का काम करना है महिलाओं को ४०० रूपए और पुरूषों को ५०० रूपए की रोज मजदूरी मिलेगी खाना खर्चा और आने-जाने का किराया भी मिलेगा। सभी परिवारों को एक-एक हजार रूपए नगद देकर नागपुर में रोड बनावाने की बात कहकर गांव से बंद डग्गे में जिसमें तिरपाल लगी हुई थी नागपुर तक ले गए और फिर वहां से कर्नाटक राज्य के विजयपुर जिले के कोडाबागी गांव ले जाकर गन्ने के खेतों में गन्ने की कटाई के लिए छोड दिया गया जहां पर उन्हें झोपडी बनवाकर रखा गया था और सुबह ०६ बजे से लेकर रात १० बजे तक काम करवाया जाता था। गन्ने की कटाई के साथ ही काटे गए गन्ने की ट्राली में लोङ्क्षडंग प्रतिदिन करवाई जा रही थी और इसके बदले मजदूरी भी नहीं दी जा रही थी साथ ही केवल खाने के लिए आटा और आलू की सब्जी बनाने के लिए दिए जाते थे। जो मजदूर काम नहीं कर पाते थे उन्हें वहां पर गन्ने के डण्ठलों से पीटा जा रहा था हम लोगों द्वारा घर वापिस जाने की बात जब भी की जा रही थी तो उनके द्वारा तरह-तरह से धमकियां देकर परेशान किया जाता था। ग्रामीणों ने बताया कि उनके साथ जिले के ही कुछ अन्य मजदूरों को भी हमारे साथ ले जाया गया था जो कि किसी तरह से वहां से भागकर वापिस लौटने में सफल हो गए।

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लौटते वक्त पानी पीकर बुझाई पेट की आग

मजदूर महिला हक्कुबाई पति बुधवा ने बताया कि हमारे परिजनों द्वारा दिनांक २६ दिसम्बर २०२३ को हमारी स्थिति के संबध में कलेक्टर को आवेदन दिया गया था। जिसके बाद विजयपुर के जिला कलेक्टर से यहां के प्रशासन द्वारा बातचीत की गई तब वहां के प्रशासन द्वारा वहां से हमें छुडाने की कार्यवाही की गई किंतु यहां तक आने के लिए हमारे लिए कोई व्यवस्था नहीं हुई। जहां से ेकेवल १००-१०० रूपए देकर छोड दिया गया। कुछ मजदूरों के पास फोन-पे की सुविधा होने पर कुछ पैसा हमें मिला जिसकी मदद से हम किसी तरह से तीन दिन में यहां पर पहुंचने में कामयाब रहे। हालत यह रही कि हमारे पास लौटते वक्त खाने की भी व्यवस्था नहीं थी भूखे पेट बिस्किट और नमकीन खाकर और पानी पीकर पेट की आग को शांत करने की कोशिश करते रहे।

शुगर मिल तक जाता था काटा गया गन्ना

मजदूरों ने बताया कि हम लोग जिन किसानों के खेतों में गन्ने की कटाई कर रहे थे वह काटा हुआ गन्ना हमसे ट्रालियों में लोड करवाया जाता था और यह गन्ना एक शुगर मिल तक पहुंचाया जाता था। मजदूरों का कहना है कि उन्हें जो लोग ले गए थे उन्हें बडी राशि देकर बंधकों के हवाले कर दिया गया था। लगभग डेढ माह तक हमने कार्य किया और मजदूरी के नाम पर एक भी रूपए का भुगतान नहीं किया गया है।

तेलंगाना के मेहबूब नगर में छ: माह से फंसे हुए हैं १८ मजदूर

जिले से ले जाये गए मजदूरों के अलग-अलग जगह पर बंधुआ मजदूरी के मामले में फंसे होने की जानकारी सामने आ रही है। श्रम विभाग के सूत्रों के अनुसार जिले से ले जाये गए मजदूरों के अलग-अलग चार जगह फंसे के मामले सामने आये। तेलंगाना के मेहबूब नगर में गन्ने की कटाई के लिए मोहन्द्रा के अंतर्गत मडवा गांव के १८ मजदूर ०६ माह से फंसे हुए हैं। जिनकी जानकारी सामने आने के बाद उन्हें वापिस लाए जाने को लेकर कार्यवाही की जा रही है।

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विजयपुर जिले में बराछ के २७ मजदूर अभी भी फंसे हुए हैं

जानकारी अनुसार पन्ना कोतवाली थाना क्षेत्रान्तर्गत बराछ के निवासी २७ मजदूर कर्नाटक राज्य के विजयपुर में ही ले जाये गए थे जिनसे गन्ना कटाई का कार्य करवाया जा रहा है। उक्त मजदूरों की वापिसी की कार्यवाही अभी भी नहीं हो पाई है। जिनकी वापिसी को लेकर ही प्रयास किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि पहले इन मजदूरों से सांगली ले जाया गया बाद में उन्हें वहां से विजयपुर शिफ्ट किया गया।

बंधुआ मजदूर अधिनियम के तहत नहीं होती मुक्ति एवं पुर्नवास की कार्यवाही

बंधुआ मजदूर अधिनियम के तहत संबधित राज्य का संबधित जिले के अनुभाग स्तर पर मजूदरों को मुक्त करवाये जाने की प्रक्रिया अनुसार कार्यवाही कर मुक्त मजदूर को मुक्ति प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए। यह मुक्ति प्रमाण पत्र अनुविभागीय अधिकारी द्वारा जारी किया जाता है। मुक्ति प्रमाण पत्र जारी होने के बाद संबधित मजदूरों को मुआवजा राशि दी जाती है। इसके साथ ही साथ उनके पुर्नवास एवं रोजगार का प्रबंध किया जाता है किंतु जिले से बाहर ले जाये गए जो मजदूर बंधुआ मजदूरी के चंगुल में फंस जाते हैं उनके मामलों में अभी तक यह देखा जा रहा है कि अधिनियम के अंतर्गत बंधुआ मजदूरी से मुक्ति की प्रक्रिया का पालन नहीं हो रहा है और उन्हें मुक्ति प्रमाण पत्र भी नहीं दिया जाता है जिसके चलते बंधुआ मजदूरों को किसी भी प्रकार की राहत नहीं मिल पा रही है जो मजदूर बंधुआ मजदूरी के चंगुल से आजाद होकर वापिस लौटे हैं उन्हें भी वहां से मुक्ति प्रमाण पत्र दिए जाने का कार्य नहीं हुआ है।

बंधुआ मजदूरी के चंगुल में फंसे थे रामपुर के यह मजदूर

जो ३३ मजदूर बंधुआ मजदूरी के चंगुल से वापिस लौटे हैं उनमें बधुवा आदिवासी ४२ वर्ष, रानी आदिवासी १७ वर्ष, कल्लू आदिवासी १८ वर्ष, आरती आदिवासी १५ वर्ष, रूपा आदिवासी १५ वर्ष, हल्को आदिवासी ४० वर्ष, अमर आदिवासी १७ वर्ष, फूलबाई आदिवासी ४५ वर्ष, तुलसी आदिवासी २५ वर्ष, सपना आदिवासी २३ वर्ष, गेंदा आदिवासी १६ वर्ष, हिनी आदिवासी १८ वर्ष, मालती आदिवासी ८ वर्ष, शुभम आदिवासी ९ माह, भरत आदिवासी ३२ वर्ष, सुमन आदिवासी ३० वर्ष, शिवा आदिवासी १० वर्ष, अंशु आदिवासी ६ वर्ष, पहलवान आदिवासी ३० वर्ष, छोटा आदिवासी ०२ माह, धर्मेन्द्र आदिवासी ३० वर्ष, सविता अदिवासी २७ वर्ष, गोविन्द आदिवासी ०५ वर्ष, अवधेश आदिवासी २० वर्ष, अनिल आदिवासी १८ वर्ष, पंगा आदिवासी २० वर्ष, चंद्रभान आदिवासी १८ वर्ष, धर्मदास आदिवासी ३० वर्ष, भजन आदिवासी ४७ वर्ष, सजना आदिवासी १६ वर्ष, कलश आदिवासी ३५ वर्ष, धर्मेन्द्र आदिवासी २४ वर्ष शामिल हैं। उक्त में कुल १५ पुरूष, ११ महिलायें व ७ बच्चे शामिल हैं। 

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