देहदान कर पेश की मिसाल - मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थी करेंगे अध्ययन
देहदान कर पेश की मिसाल - मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थी करेंगे अध्ययन
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। समाज सेवा लिए नेत्र दान व अंग दान किए जाने के कई मामले सामने आते रहतेे हैं, लेकिन जिले में मेडिकल विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए अपनी देहदान करने का यह पहला मामला सामने आया है। एक सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी की अंतिम इच्छा उनकी दो बेटियों ने पूरी की और सामाज सेवा का उत्कृष्ट संदेश समाज को दिया है। सोमवार को आवश्यक कार्रवाई के बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने फ्रेंडस कॉलोनी निवासी 74 वर्षीय सत्य प्रकाश शुक्ला पिता लालजी शुक्ला का पार्थीव शरीर विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए ले लिया है।
जिला के लिए पहला अवसर
जिले में देह दान का यह पहला मामला है। स्थानीय भारतीय स्टैट बैंक की मुख्य शाखा से सेवानिवृत्त हुए सत्य प्रकाश शुक्ला के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार नही किया जाएगा। उन्होंनेे अपने जीते जी ही देहदान करने की इच्छा जताकर अपनी दोनों बेटियों को बता दी थी। रविवार की रात सत्यप्रकाश शुक्ला का निधन हो गया। उनके निधन के बाद आवश्यक कार्रवाई कर उनका पार्थिव शरीर मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग को सौंप दिया गया है।
दो साल से ज्यादा शव रख सकते हैं सुरक्षित
मेडिकल कॉलेज में स्व. सत्यप्रकाश शुक्ला की पार्थिव देह को विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। देहदान की प्रक्रिया संपन्न कराने आए मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी प्रोफेसर डॉ. अमोल दुर्गकर ने बताया कि देह को दो साल से भी ज्यादा सुरक्षित रखा जा सकता है। मेडिकल कॉलेज ले जाने के बाद इनकी देह पर विशेष दवाओं का प्रयोग किया जाएगाा साथ ही पोरमलिन नामक लिक्विड के के टैंक में शव को रखा जाएगा। जिससे देह दो साल या उससे भी ज्यादा समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
मेडिकल कॉलेज का पहला सत्र और पहला देहदान
जिले में मेडिकल कॉलेज शुरू हुए केवल 12 दिन हुए हैं। 1 अगस्त को मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष की कक्षांए शुरू हुई हैं और एसबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारी सत्यप्रकाश शुक्ला मेडिकल कॉलेज को अपनी देहदान करने वाले पहले व्यक्ति बन गए हैं। अब उनकी देह से एनाटॉमी की कक्षाओं मेंं कॉलेज के 100 विद्यार्थियों को पढ़ाई कराई जाएगी।
क्या कहती हैं बेटियां
पिता की इच्छा थी की मृत्यु के बाद भी उनकी देह किसी के काम आए इसके लिए उन्होने पहले ही देह दान करने की बात कह दी थी। पिता की खुशी के लिए उनकी अंतिम इच्छा को पूरी करना हमारा कर्तव्य है। प्रतिभा शर्मा, दुर्ग, बड़ी बेटी
पिता की इच्छा का सम्मान करने से मन को शांति मिली है वे हमारे बीच नही रहे लेकिन उनका समाज सेवा का जज्बा हमें भी गौरांवित कर गया है। वे हमेशा ही मृदु भाषी और सभी किसी भी रूप में समाज सेवा करने वाले थे। पूर्णिमा दुबे, दुर्ग, छोटी बेटी