ग्रामीण वैक्सीनेशन सेंटर पर शहर के लोगों का कब्जा - स्लाँट न मिलने के कारण भाग रहे गांव की ओर
ग्रामीण वैक्सीनेशन सेंटर पर शहर के लोगों का कब्जा - स्लाँट न मिलने के कारण भाग रहे गांव की ओर
डिजिटल डेस्क बालघाट। वैक्सीनेशन को लेकर अर्बन रूलर दो भाग में बटे देश में अब गांव के वैक्सीने एसशन सेंटर पर शहर के लोगों की धमक देखने को मिल रही है पहले गांव में केंद्रों में टीकाकरण शून्य के बराबर था, लेकिन मध्यप्रदेश में 18 से 45 आयु वर्ग के लिए सीमित टीको की उपलब्धता के कारण, शहर के लोग गांव में पहुंचकर टीका लगवा रहे हैं छोटे-छोटे गांव के वैक्सीनेशन सेंटर पर कारो और शहर के लोगो की भीड़ गांव के लोगों के हक पर डाका डालते दिख रही है।शहर में कोरोना की वैक्सीन लगाने के लिए स्लॉट नही है, और गांव के लोग गांव में लगवाने को तैयार नहीं है ऐसे में ग्रामीण वैक्सीनेशन सेंटर पर शहर के लोगों ने कब्जा कर लिया है। त्रिवेणी शरणागत का कहना है कि बालाघाट की रहने वाली हूं वैक्सीन लगाने सालेटेका आई हूं, बालाघाट में कई बार प्रयास किया लेकिन वहां स्लॉट बुकड नहीं हो रहा था इसलिए गांव में आकर वैक्सीन लगवाया है। त्रिवेणी की तरह ही समीर और उनकी पत्नी भी बालाघाट से चलकर इस गांव के वैक्सीनेशन सेंटर तक पहुंचे हैं दर्जनों लोग शहर से निकलकर गांव में वैक्सीन लगाने सिर्फ इसलिए आ रहे हैं कि उन्हें आसानी से टीका मिल जाता है।बालाघाट के ही समीर सचदेव ने बताया मैं बालाघाट का निवासी हूं पिछले 10 दिन से प्रयास कर रहा था कि मुझे वहां टीका लग जाए लेकिन वहां मेरा नंबर नहीं आया यहां गांव में आकर 10 मिनट में ही मुझे वैक्सीन लग गया है।
सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर पर तैनात हेल्थ वर्कर बताते हैं कि दिन भर में मैं यहां पर 100 वैक्सीन लगाते हैं जिसमें से 85 से लेकर 90 तक टीके बालाघाट शहर के लोगों को लग रहे हैं।वर्षा चौधरी, वैक्सीनेशन सेंटर प्रभारी ने बताय की पिछले 1 हफ्ते से यहां वैक्सीनेशन सेंटर चल रहा है शुरू में तो गांव के कुछ लोग आए भी लेकिन बाद में शहर के लोग यहां वैक्सीन लगवाने आ रहे हैं। आज भी हमें 100 डोज़ मिले हैं जिसमें अब तक 50 डोज़ लग चुके हैं।सरकार और प्रशासन गांव-गांव में जागरूकता फैलाने के लिए सारे प्रयास कर रहा है लेकिन लोगों के डर के कारण गांव के वैक्सीनेशन केंद्रों में गांव के लोग नहीं पहुंच पा रहे हैं हालांकि गांव में लोगों को वैक्सीन के लिए जागरूक बनाने में लगी टीम यह भी कहती है कि इसका एक कारण कहीं ना कहीं ऑनलाइन अप्लाई करना भी है जो गांव के लोगों को नहीं आता जिसका लाभ शहर के लोग उठा रहे हैं।