संकट में धान का कटोरा, फसलों पर मंडरा रहा तुड़तुड़ा
भंडारा संकट में धान का कटोरा, फसलों पर मंडरा रहा तुड़तुड़ा
डिजिटल डेस्क, भंडारा. तुड़तुड़ा रोग के कारण धान की फसल कुछ पल में नष्ट हो रही है। फसलों पर बढ़ते तुड़तुड़ा रोग के प्रादुर्भाव को देखते हुए किसानों की चिंता बढ़ गई है। फिलहाल तुड़तुड़ा रोग का कीट प्रथम अवस्था में होने से उन्हे उड़ते नहीं आता। ध्यान में आते ही तत्काल उचित उपाययोजना कर इसे नियंत्रित कर सकते हैं। इसके लिए किसानों को निरीक्षण व नियंत्रण इन बातों पर ध्यान में देना आवश्यक है। तहसील में मध्यम व बड़ा सिंचाई प्रकल्प नहीं होने के कारण अधिकांश खेती बारिश के पानी पर निर्भर होने के कारण सूखी जमीन है। जिसमें 90 से 110 दिन में निकलने वाले हलके धान की बुआई की जाती है। हस्त नक्षत्र लगने के कारण हलके धान का निसवा हुआ होकर भी बदलते मौसम के कारण धान पर तुड़तुड़ा रोग का प्रादुर्भाव हुआ है। इस लिए इस रोग का व्यवस्थापन करना आवश्यक है। किसान 1010, बाहुबली, आयआर 64, सिंधू इन जैसे हलके प्रजाति के धान की बुआई करते हैं। चालू खरीफ सत्र में मृग नक्षत्र में औसतम बारिश होने के कारण धान की नर्सरी की गई व रोपाई भी अवधि में संपन्न हुई। इस लिए हलके प्रजाति का धान परिपक्व होने के मार्ग पर है व मध्यम प्रजाति के धान का निसवा शुरू है। इधर, मौसम में बदलाव के कारण फसलों पर करपा, कडीकरपा, गादमाशी, खोड़किड़ा के बाद अब तुड़तुड़ा रोग के प्रभाव को देखते हुए धान का कटारों नाम से पहचाने जानेवाले भंडारा जिले के धान उत्पादक संकट में आए है।
ऐसा है तुलतुड़ा का जीवनक्रम : मादा पत्तों के बीचोबिच 180 से 200 अंडे देती है, इन अंडों की अवस्था 4 से 8 दिन, बच्चों की अवस्था 2 से 3 सप्ताह की होकर बच्चे 4 बार कात डालते है। इस किड को एक पिढी पूण्र करने में 18 से 30 दिन लगते है। एैसा तुड़तुडों का जीवनक्रम है।
ऐसे होता है धान का नुकसान : बच्चे व प्रौढ तुड़तुडे़ धान का बुंधा व खोड में से निरंतर रस ग्रहन करते है। जिससे पत्ते पीले होकर धान खराब होकर सूख जाता है। तपकिरी तुलतुडों का प्रादुर्भाव खेत के मध्य भाग से गोलाकार आकृती में शुरू होकर खेत जले जैसा दिखाई देता है। इसी को वैज्ञानिक भाषा में ‘हॉपर बर्न’ एैसा कहते है।
ऐसे बचायी जा सकती है फसल : फसल में मित्र कीट की संख्या बढ़ाने के लिए धान बांध पर झेंडू/चवली की फसल लगाए। चावल पर तुड़तुडों के व्यवस्थापन के लिए उपलब्धता अनुसार मेटॅरायझियम अनिसोल्पी यह जैविक 2.5 किलोग्रॅम/हेक्टेयर इस प्रमाण में खेत का पानी निकालने के बाद डाले। तथा तुडतुडा के व्यवस्थापन के लिए इमिडॅक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. 2.2 मि.ली. या फ्लोनीकॅमीड 50 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 3 ग्रॅम या डिनोटेफुरॉन 20 प्रतिशत एस.जी. 3 ग्रॅम या पायमेट्रोझीन 50 डब्ल्यू.जी. 6 ग्रॅम या थायोमिथाक्झाम 25 डब्ल्यू.जी. 2 ग्रॅम या फिप्रोनिल 5 एस.सी. 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।
कीटनाशक का करें छिड़काव
फिलहाल हलका धान परिपक्व तथा मध्यम धान का निसवा शुरू है। मौसम में बदलाव के कारण धान फसल पर तुड़तुड़ा रोग का प्रादुर्भाव होने का निदर्शन में आया हंै। कृषि विभाग की सलाह से किसानों ने कीटनाशक का छिड़काव करें।
एम.के. जांभुलकर, कृषि अधिकारी पं.स. लाखनी