बालाघाट के डेढ़ लाख उपभोक्ताओं का मोह भंग, महिलाएं बोलीं- हमारा चूल्हा ही सही
उज्ज्वला योजना : महीनों से नहीं भरवाए खाली सिलेंडर बालाघाट के डेढ़ लाख उपभोक्ताओं का मोह भंग, महिलाएं बोलीं- हमारा चूल्हा ही सही
डिजिटल डेस्क बालाघाट । ग्रामीण महिलाओं को चूल्हे के धुंए से निजात दिलाने और सुगमता से रसोई में खाना पकाने की सहुलियत देने के मकसद से सरकार ने ग्रामीणों के लिए उज्ज्वला योजना के दूसरे चरण की शुरुआत तो कर दी, लेकिन इसके पहले चरण यानी उज्ज्वला योजना 1.0 से ही जिले के करीब डेढ़ लाख उपभोक्ताओं का मोह पूरी तरह भंग हो चुका है। इसके पीछे वजहें भी वाजिब हैं। सिलेंडर के आए दिन बढ़ते दाम और सब्सिडी के नाम पर उपभोक्ताओं से मजाक। ऐसे में ग्रामीण महिलाएं चूल्हे के धुंए में आंखें मलते खाना बनाना मुनासिब समझ रही हैं। बीते तीन सालों के भीतर करीब ढाई लाख लोगों ने उज्ज्वला योजना का लाभ लिया, लेकिन महंगाई की मार के चलते करीब डेढ़ लाख हितग्राहियों ने सिलेंडर रिफिल कराना ही छोड़ दिया। अब ये सिलेंडर रसोई या किसी कमरे में धूल खा रहे हैं। साथ ही घर में चूल्हे पर ही परिवार का खाना पक रहा है। ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि ऐसी योजना कोई काम की नहीं है, जो गरीबों को राहत देने के बजाय उन पर आर्थिक बोझ बढ़ा रही है। ऐसे में हमारा चूल्हा ही सबसे बेहतर और किफायती है।
नहीं भरवा रहे सिलेंडर
उज्ज्वला गैस योजना अंतर्गत दो साल पहले सिलेंडर प्राप्त करने वालीं सरेखा-कोसमी निवासी महिला रमसुला बाई का कहना रहा कि पहले तो उन्हें नि:शुल्क सिलेंडर मिला। फिर गैस खत्म होने पर जब सिलेंडर भराने पहुंचे तो हर महीने अलग-अलग रेट थे, धीरे-धीरे गैस के दाम दो साल के भीतर तीन सौ से चार सौ रुपए तक बढ़ गए। ऐसी स्थिति में अब गैस चूल्हे पर खाना बनाना बंद कर दिया है।
महीनेभर से ज्यादा चलती है 500 रुपए की लकड़ी
गैस के दाम बढऩे के बाद अधिकतर ग्रामीण गरीब महिलाओं ने जलाऊ लकड़ी एवं गोबर के कंडे से चूल्हे पर खाना बनाना शुरू कर दिया है। 500 रुपए की जलाऊ लकड़ी लेने पर एक महीने से ज्यादा चलती है।
करीब डेढ़ लाख हितग्राही नहीं भरा रहे सिलेंडर
आंकड़ों की मानें तो पिछले तीन साल के भीतर जिलेभर में करीब ढाई लाख लोगों ने उज्ज्वला का लाभ लिया है, लेकिन दिनों-दिन गैस के दाम बढऩे के बाद से पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से डेढ़ लाख से अधिक हितग्राहियों ने गैस सिलेंडर नहीं भराए हंै। ये वे लोग हंै जो रोजमर्रा की जिन्दगी गुजारते हंै। गैस एजेंसी धारक भी इस बात को स्वीकारते हैं कि योजना अंतर्गत जिन लोगों ने गैस कनेक्शन हैं उनमें से अधिकतर लोग के कनेक्शन अब चालू नहीं हैं।