गुफा में विराजमान हनुमान प्रतिमा को हटाया, कोर्ट ने कहा- धार्मिक सौहार्द पर असर डालने वाला अपराध
गुफा में विराजमान हनुमान प्रतिमा को हटाया, कोर्ट ने कहा- धार्मिक सौहार्द पर असर डालने वाला अपराध
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। काफी प्राचीन गुफा में विराजमान भगवान हनुमान की प्रतिमा को हटाए जाने के मामले में कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। जेएमएफसी आशीष ताम्रकार की अदालत ने कहा है कि हिन्दू धर्म के अनुयायियों की धार्मिक आस्था के स्थल को हटाए जाने से धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है। यह आपराधिक कृत्य है। कोर्ट ने आरोपी सेंट एण्ड्रूज मारथोमा चर्च के ट्रेजरार सीपी अब्राहिम, प्रेसीडेंट डी सुनील तथा प्रतिनिधि सीसी कुरुविला के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
लंबी सुनवाई और दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि तीनों प्रमुख आरोपियों के खिलाफ धारा 152 ए (1)(बी) तथा धारा 295 के तहत अपराध में संज्ञान लिए जाने के पर्याप्त आधार मिलते हैं। कोर्ट ने तीनों के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने का आदेश पारित कर दिया। मामले की अगली सुनवाई में सभी आरोपियों को कोर्ट में हाजिर होने वारंट जारी किए गए हैं।
ऐसा है मामला-
टेमरभीटा के हल्का नं. 57 में ऊंची पहाड़ी पर गुफा में हनुमान जी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इस भूमि के एक बड़े हिस्से को 8 मार्च 2002 को खरीदकर रजिस्ट्री और फिर नामांतरण के जरिए सेंट एण्ड्रूज मारथोमा चर्च रिज रोड जबलपुर, मुख्यालय तिरुविला केरल के नाम पर दर्ज किया गया। परिवादी टेमरभीटा निवासी कुलदीप सिंह गिल, कजरवारा निवासी अनिल वाल्मीकि का कहना है कि चर्च के अध्यक्ष ने तहसीलदार गोरखपुर के साथ मिलकर पहाड़ी से कथित अतिक्रमण हटाने का प्रकरण प्रस्तुत किया। एक पक्षीय आदेश पारित करते हुए 20 सितंबर 2010 को बेदखली के आदेश जारी कर दिए।
मंदिर तोड़ा, प्रतिमा क्षतिग्रस्त-
परिवाद में न्यायालय को बताया गया कि हिन्दू धर्मावलंबियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हुए 1 फरवरी 2012 को घोर विरोध के बावजूद गुफा में स्थित मंदिर को तोड़ा गया। प्रतिमा को क्षति पहुंचाई गई। कार्यवाही के दौरान प्रतिमा को किसी अलग स्थान पर स्थापित किया गया। बाद में बढ़ते विरोध को देखकर प्रतिमा को पुन: मूल स्थान पर स्थापित किया गया, लेकिन यह पूरा कृत्य आपराधिक और दण्डनीय है।
आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं-
परिवाद में कहा गया है कि इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में भी पहुंची। परिवाद में स्पष्ट है कि हाईकोर्ट ने भी प्रतिमा हटाने के लिए किसी भी तरह की अनुमति प्रदान नहीं की। इस फैसले के बाद परिवादी ने आरोपियों के खिलाफ केंट थाने में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कार्यवाही नहीं हो सकी। आखिरकार 28 अगस्त 2012 को जिला न्यायालय में परिवाद दाखिल किया गया।