जिले में हर साल छह सौ शिशु और आधा सैकड़ा मां तोड़ देती है दम

सिवनी जिले में हर साल छह सौ शिशु और आधा सैकड़ा मां तोड़ देती है दम

Bhaskar Hindi
Update: 2022-07-25 12:14 GMT
जिले में हर साल छह सौ शिशु और आधा सैकड़ा मां तोड़ देती है दम

डिजिटल डेस्क, सिवनी। जिले में हर साल लगभग छह सौ शिशु और लगभग ५० माताएं दम तोड़ देती है। भले शासन-प्रशासन गर्म धारण से लेकर शिशु जन्म और आगे तक मातृ-शिशु सुविधाएं देने की बात करता है लेकिन ये आंकड़े वाकई चौंकाते हैं। इसका प्रमुख कारण विशेषज्ञों की संख्या में भारी कमी, डिलेवरी पाइंट का अभाव, खून की कमी आदि हैं। जिले के आंकड़ों में नजर डालें तो इस बात की अभी काफी गुंजाइश है कि स्वास्थ्य सेवाओं को अभी और कसा जाए।
सिर्फ चमक-दमक पर ही ध्यान
जिले में बीते तीन साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। बीते दो-तीन वर्षों से जिला अस्पताल की इमारत को चकाचक करने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं। जिला अस्पताल को किसी फाइव स्टार होटल की तरह सजाने-संवारने के दावे किए गए हैं, इस कायाकल्प अभियान के लिए जिला अस्पताल को पुरस्कार भी मिला है लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी जिले में जिला अस्पताल सहित सीएचसी, पीएचसी सहित दूसरे स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों का काफी अभाव है। इसके अलावा दूसरी सुविधाएं भी काफी कम हैं। इसके साथ ही जिस स्तर तक आंगनबाड़ी और दूसरे माध्यमों के जरिए स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के दावे किए जाते हैं उन पर सवाल खड़े होते हैं।
डराते हैं आंकड़े
आंकड़ों की बात करें तो जिले में बीते तीन वर्षों में हजारों शिशुओं की मौत हो चुकी है। २०१९-२० में ७०६ शिशुओं ने दम तोड़ा था तो इसके अलगे साल ६७५ शिशुओं की मौत विभिन्न कारणों से हुई थी। २०२१-२२ में भी ५७९ शिशुओं ने दम तोड़ा है। शिशुओं की मौत की वजह एनीमिया, डायरिया, मलेरिया, निमोनिया और संस्थागत प्रसव न हो पाना बताई गई।
इसी प्रकार माताओं की बात करें तो यहां भी स्थिति काफी नाजुक है। बीते तीन साल के आंकडो़ं पर गौर करें तो विभाग के मातृ स्वास्थ्य के दावों की कलई खुल जाती है। २०१९-२० में कुल ४८ माताओं की मृत्यु हुई थी। वहीं इसके अलगे साल ४३ माताओं की मौत हो गई थी। इस साल ५३ माताओं की मौत हो चुकी है।
विशेषज्ञों और जानकारी का अभाव प्रमुख कारण
इतनी बड़ी संख्या में मौतों की बात करें तो जिले में स्वास्थ्य विभाग में महिला और शिशु रोग विशेषज्ञों की भारी कमी प्रमुख कारण है। अगर बात करें केवलारी विकासखंड की तो यहां पर लगभग दो सैकड़ा गांवों के लिए एक भी महिला रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। यही स्थिति जिले के दूसरे विकासखंडों की है।   जिले में लगभग 35 डिलेवरी पाइंट हैं लेकिन इनकी अव्यवस्था भी किसी से छिपी नहीं है। अक्सर टार्च की रोशनी में प्रसव जैसी खबरें आ ही जाती है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं का प्रबंधन भी काफी खराब है।  गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीने में ही माता का नाम आंगनबाड़ी में पंजीकृत हो जाना चाहिए लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता है। जिसके कारण उनकी देखरेख, फोलिक एसिड आदि की दवा समय पर नहीं दी जाती जिसके कारण खून की कमी जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इसके अलावा हाईरिस्क प्रसव वाली महिलाओं में ब्लड प्रेशर, अधिक उम्र में गर्भधारण जैसी समस्याएं प्रमुख रूप से सामने आती हैं।  
खाली हैं काफी पद
जिले में केवलारी में ी रोग, शिशु रोग विशेषज्ञ का एक-एक पद स्वीकृत है लेकिन दोनों ही खाली हैं। यही स्थिति बरघाट, लखनादौन, घंसौर की है। धनौरा, छपारा, कुरई, गोपालगंज सीएचसी में भी ी रोग विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में इन सेंटरों में स्थिति बिगडऩे पर जिला अस्पताल रैफर किया जाता है। आने जाने में काफी समय बर्बाद होता है और मरीज की स्थिति और खराब हो जाती है।
इनका कहना है,
जिला अस्पताल में चिकित्सकों की कमी बड़ा कारण है। शिशु रोग विशेषज्ञ के साथ गायनिक में भी चिकित्सकों के पद खाली पड़े हैं। जिला अस्पताल में उपलब्ध संसाधनों से जो बेहतर हो सकता है करने का प्रयास किया जाता है।

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