क्या करें: उदय बोधनकर और मृदुला ने सुझाया फार्मुला, पैनिक स्थिति में ऐसे खुद की सुरक्षा कर सकती हैं डॉक्टर्स
- कोलकाता में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार-हत्या मामले से देशभर के डॉक्टर स्तब्ध
- डॉ उदय बोधनकर और डॉ मृदुला ने सुझाए उपाय
- जानिए पैनिक स्थिति में क्या करें
डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या मामले ने देशभर के डॉक्टरों को स्तब्ध कर दिया है। जहां अलग-अलग जगहों पर जस्टिस की मांग को लेकर प्रर्दशन किए गए।वहीं उपराजधानी के जाने-माने डॉक्टर और कॉमनवेल्थ एसोसिएशन फॉर हेल्थ एंड डिसेबिलिटी के कार्यकारी निदेशक उदय बोधनकर ने अपनी चिन्ता जताते हुए ऐसी घटनाओं के बचने के लिए एहतियातन कदम उठाने की सलाह दी है। डॉक्टर उदय बोधनकर स्वास्थ्य और मेडिकल सेवाओं से जुड़ी समस्याओं को दुरुस्त करने के लिए काम कर रहे हैं। उनके साथ ही इस बेहद संवेदनशील घटना को लेकर बीजे मेडिकल कॉलेज और ससून जनरल अस्पताल के पूर्व डीन और महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ मृदुला फड़के ने एक सूची तैयार की है, जिसके माध्यम से अस्पतालों में किसी तरह की पैनिक स्थिति में खुद को बचाया जा सकता है। यह मेडिकल स्टूडेंट्स और सीनियर डॉक्टरों की सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद अहम बातें है, जिनपर गौर किया गया तो काफी हद तक अस्पतालों में यौन हिंसा और दूसरे मामलों को होने से पहले ही रोका जा सकता है।
(कुछ खास बातें जो बेहद काम की हैं)
अस्पताल के गलियारों में बेहतर रोशनी के अलावा अलार्म या पैनिक बटन लगाए जा सकते हैं, जिन्हें बिस्तरों के पास और अन्य कमरों में लगाया जा सकता है।
डॉ फड़के ने कहा देश के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा गार्डों की कमी है, पर्याप्त सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं, हॉस्टल से वार्डों तक लंबे गलियारे होते हैं। अक्सर देखा जाता है कि हॉस्टल और वार्डों के बीच काफी दूरी होती है। इन गलियारों में उचित रोशनी होनी चाहिए। यहां सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए।
प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ मृदुला फड़के
डॉ बोधनकर ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के मामलों में त्वरित न्याय की दिशा में फास्ट ट्रैक सेल स्थापित की जाए। अस्पतालों में आने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, खासकर आउटडोर और इनडोर मरीजों की भी। हालांकि, सुरक्षा गार्डों की संख्या कम कर दी गई है या किसी एजेंसी से अनुबंध है, तो भी सुरक्षा में सेंध की संभावनाए होती है। सभी अस्पतालों में नियमित और संविदा पर पुरुष और महिला सुरक्षा गार्ड नियुक्त की जानी चाहिए।
डॉ उदय बोधनकर
डॉक्टरों के रहने की व्यवस्था में सुधार करें। प्रत्येक वार्ड में एक अच्छा डॉक्टर कक्ष होना चाहिए, जिसमें पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग और उचित सुविधाएं हों।
वार्ड की मुख्य नर्स को उस कमरे का प्रभार सौंपा जाना चाहिए।
मेस में अच्छे स्वच्छ पौष्टिक भोजन के साथ महिला-पुरूष स्टूडेंट्स के लिए अलग-अलग बेहतर छात्रावास बनाए जाने चाहिए।
एथिकल कमेटी की सख्त सजा नीति के साथ शराबबंदी नीति का सख्ती से पालन हो।
ड्यूटी पर डॉक्टरों और नर्सों की टीमें तैयार करें।
अधिक काम से बचने के लिए दिन की शिफ्ट और रात की शिफ्ट के लिए डॉक्टरों और नर्सों को दो समूहों में बांटा जाना चाहिए, अधिकतम ड्यूटी प्रति दिन 8 से 10 घंटे से अधिक नहीं होने चाहिए।
4 से 5 महिला एवं पुरूष डॉक्टरों की रोटेशन से ड्यूटी लगाई जाए।
सभी को एक-दूसरे के बारे में जानने के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए और उपस्थिति रिकॉर्ड को रात्रि पर्यवेक्षक या प्रभारी नर्स द्वारा सतर्कता से रखा जाना चाहिए।
अलार्म घंटी या पैनिक बटन
इन्हें महिला डॉक्टरों द्वारा पहना भी जा सकता है, पहचान के लिए एक ही स्वर में एक मिनट के लिए बजने वाली अलार्म घंटी बजे।
जब मुंह बंद किया गया हो, मुंह दबाया गया हो, तो तुरंत इसका इस्तेमाल किया जा सके। ये मोबाइल की तरह स्टूडेंट्स के पास ही होगा।
रेजिडेंट डॉक्टरों की संख्या में बढ़ोतरी हो। कई साल पहले, रेजिडेंट डॉक्टर, गृहस्वामी, स्नातकोत्तर छात्र और गैर-वजीफा वाले पीजी हुआ करते थे।
ग्रामीण अस्पतालों सहित विभिन्न सरकारी पदों पर विशेषज्ञ उपलब्ध हों।
आत्मरक्षा प्रशिक्षण
सभी महिला डॉक्टरों, नर्सों और महिला स्वास्थ्य कर्मियों को अपनी सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। जूडो, ताइक्वांडो, कराटे, किक बॉक्सिंग और मार्शल आर्ट की क्लास लेनी चाहिए।
पीड़ित की मां का शिक्षकों को भावुक पत्र
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल और अस्पताल की पीड़िता की मां ने शिक्षक दिवस पर एक पत्र लिखकर अपने जीवन के सभी शिक्षकों को धन्यवाद दिया। न्याय की लड़ाई के लिए बड़े पैमाने पर समाज से समर्थन मांगा। उन्होंने पत्र में लिखा कि मैं तिलोत्तमा की मां हूं, शिक्षक दिवस पर मैं अपनी बेटी की ओर से उसके सभी शिक्षकों को सलाम करती हूं। बचपन से ही उसका डॉक्टर बनने का सपना था। आप उस सपने के पीछे प्रेरक शक्ति थे। हम अभिभावक के रूप में उनके साथ रहे, उसने खुद मेहनत की थी। आगे पीड़िता की मां ने लिखा था कि मुझे लगता है, क्योंकि उसे आप जैसे अच्छे शिक्षक मिले, इसलिए वह डॉक्टर बनने का अपना सपना पूरा कर सकी. फिर डिग्री आई, मेरी बेटी कहती थी, मां मुझे पैसे की जरूरत नहीं है. बस मेरे नाम के आगे बहुत सारी डिग्रियां चाहिए और क्या मैं इतने सारे मरीजों को ठीक कर सकती हूं."