अनछुआ इतिहास: पेंच में हो सकते हैं 15 सौ साल पुराने वाकाटक राजवंश से जुड़े अहम खुलासे, मध्य भारत के बड़े हिस्से में था शासन

  • इतिहास के पन्नों में दफन है वाकाटक राजवंश
  • पेंच में किला तीसरी शताब्दी में बनाया गया था
  • नागपुर यूनिवर्सिटी से दो महीने तक सर्वे कराया था
  • जीपीएस यानी ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार से खुल सकता है राज

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-19 16:04 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मोगली लैंड कहे जाने वाले पेंच राष्ट्रीय उद्यान में तीसरी सदी के मध्य से छठी सदी तक का कालखंड छिपा हो सकता है। इसके कुछ प्रमाण मिलते ही इतिहास में दबे पन्नों को फिर खंगालने की कवायद जल्द ही शुरु हो सकती है। इस स्वर्णिम कालखंड की जानकारी राष्ट्रसन्त तुकडोजी महाराज विश्वविद्यालय ने वन विभाग को अपनी रिपोर्ट में दी है। जिसके बाद यदी इसे लेकर गहन खोजबीन शुरु की गई, तो वाकाटक राजवंश से जुड़े कई अहम और बड़े खुलासे हो सकते हैं, जिसका खास केन्द्र बिन्दू भी विदर्भ माना जा रहा है।


जानकारों का मानना है कि छठी सदी के स स्वर्णिम काल में विभिन्न क्षेत्रों में विजयी साम्राज्य बने थे। विज्ञान, तकनीक और कला में उन्नति हुई और धर्म, संस्कृति और विदेशी व्यापार का भी विस्तार हुआ था। 


वेस्ट पेंच के इस हिस्से के बारे में खुद वन विभाग को भी जानकारी नहीं थी। यहां घुग्घुस गढ़ किला है। किले के अवशेष और शिलालेख भी देखे जा सकते हैं। इसे जंगल सफारी के दौरान सैलानियों को दिखाया जाता था, लेकिन इस किले के बारे में वन विभाग को भी पता नहीं था कि यह कब बना और इसे किसने बनाया था। वन विभाग ने हाल ही में यूनिवर्सिटी से इसका सर्वे कराया था। टीम ने जून और जुलाई दो महीने तक सर्वे किया और रिपोर्ट विभाग को सौंप दी, इस रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया है कि यह किला तीसरी शताब्दी में बनाया गया था। उस वक्त वाकाटक का राज था।


पहले यह जान लीजिए कि वाकाटक भारत का एक बड़ा राजवंश था। वाकाटकों ने तीसरी सदी के मध्य से छठी सदी तक एक बड़े हिस्से में अपना शासन किया था। उस वंश को वाकाटक की क्यों कहा गया था, इसका उत्तर देना फिल्हाल कठिन माना जा रहा है। जानकारों के मुताबिक वकाट नाम का मध्यभारत में कोई स्थान रहा हो सकता है, जहां शासन करनेवाला वंश वाकाटक कहलाया होगा। वाकाटक कालीन ताम्रपटों में विष्णुवृद्धि गोत्र के ब्राह्मण होने की पुष्टि होती है। इसके प्रथम राजा को अजंता लेख में वाकाटक वंशकेतुः कहा गया है। इस राजवंश का शासन मध्यप्रदेश के अधिक भूभाग और प्राचीन बरार (आंध्र प्रदेश) तक था। उसके पहले शासक विन्ध्यशक्ति का नाम वायुपुराण और अजंतालेख में मिलता है।


ऐसे में अब वन विभाग से मांग की जा रही है कि इतिहास के पन्नों को फिर खंगाला जाए, घने जंगल की जमीन खोदे बिना ही तकनीक के सहारे स्कैन कर धरती के अंदर दबी वस्तुओं के बारे में पता लगाया जाए। आनेवाले समय में यहां जीपीएस यानी ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार की मदद से वाकाटक वंश से जुड़ी वस्तुओं के बारे में जानकारी जुटाई जा सकती है।  


क्या है जीपीएस यानी ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार

ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक स्कैन कर पता लगाने यानि इमेजिंग विधि है, जो भूमिगत या कंक्रीट जैसी सतह के अंदर के तत्वों की पहचान करती है। यह भूभौतिकीय सर्वेक्षण पद्धति है, जो उपसतह की छवि बनाने के लिए विद्युत चुम्बकीय तरंगों का उपयोग करती है।


हुए सर्वे में पाया गया, कि यह बौद्धकालीन धरोहर है। जिसे वाकाटक घराने से जोड़ा जा रहा है। यहां तब घनी मानव बस्ती हुआ करती थी, वाकाटन राजवंश खत्म होने के बाद से पूरा इलाका विरान हो गया। अब इसका जीपीआर के माध्यम से सर्वे कराने की मांग हो रही है। बड़ी जमीन पर बना यह किला अपने अंदर कई राज समेटे हुए है।


सिवनी और छिन्दवाड़ा जिले की सीमाओं पर 292.83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण इसे दो भागों में बांटने वाली पेंच नदी के नाम पर हुआ है। जो उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बहती है। इसे देश का सर्वश्रेष्ठ टाइगर रिजर्व होने का गौरव प्राप्त है। उद्यान को 1993 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर लगभग 210 प्रजातियों के पक्षी आते हैं। यहां 7 से ज्यादा गेट हैं। हर साल बड़ी संख्या में सैलानी घूमने आते हैं। 50 से ज्यादा बाघ और 100 के करीब तेंदुओं के साथ विभिन्न प्रजाति के जीव रहते हैं, लेकिन अब मौका है उस कालखंड से पर्दा उठ सके, जिस दौरान यहां से वाकाटक राजवंश ने बड़े हिस्से पर शासन किया था।  




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