Nagpur News: 2 को महाराष्ट्र ललित कला का गुणीजान, सप्तक नागपुर के सह्योग से विशेष आयोजन

  • गुणीजान समारोह बुधवार 2 अक्टूबर को आयोजित
  • कार्यक्रम शाम 6 बजे साइंटिफिक सभागृह लक्ष्मीनगर में होगा

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-30 12:45 GMT

Nagpur News : महाराष्ट्र ललित कला मुंबई व सप्तक नागपुर के सह्योग से ‘गुणीजान’ समारोह बुधवार 2 अक्टूबर को आयोजित किया गया है। कार्यक्रम शाम 6 बजे साइंटिफिक सभागृह लक्ष्मीनगर में होगा। कार्यक्रम में प्रसिद्ध वायोलिन वादक अनुप्रिया देवतले का वादन होगा। तबले पर तरुण लाला संगत करेंगे। इस प्रस्तुति के बाद पं. सुरेश बापट का शास्त्रीय गायन होगा। तबले पर संदेश पोपटकर व संवादिनी पिसे संगत करेगी। अनुप्रिया देवतले, ऑल इंडिया रेडियो के ‘अ’ श्रेणी की कलाकार है। उन्हें गुरु अमजद अली व रामनारायण का मार्गदर्शन मिला है। वहीं पं. सुरेश बापट, गुरु प्रभाकर कारेकर, बबनराव हलदणकर के शिष्य है। तीन संगीत घरानों के अभ्यासक शास्त्रीय संगीत गायक है। कार्यक्रम का संचालन वृषाली देशपांडे करेगी। कार्यक्रम निशुल्क है। आयोजकों ने बड़ी संख्या में संगीतप्रेमियों से उपस्थित रहने का आह्वान किया है। 


ललित कलाओं का उद्देश्य किसी कला रूप में उत्कृष्टता और उपलब्धि की क्षमता को प्रदर्शित करना है। ललित कला व्यवसायी अपने कला रूप के रचनात्मक, तकनीकी और प्रदर्शन तत्वों के भीतर विशिष्ट और क्रांतिकारी कौशल और बारीकियों को विकसित, परिष्कृत और प्रदर्शित करना चाहते हैं। ललित कला संस्कृति और इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह समाज के लिए एक दर्पण के रूप में कार्य करती है, जो किसी विशेष युग, संस्कृति या व्यक्ति के सार को दर्शाती है। कला में विचार को दर्शाने, परिवर्तन को प्रेरित करने और कलाकार की अंतरतम भावनाओं के लिए एक चैनल प्रदान करने की शक्ति है।

कला में लय एक शक्तिशाली उपकरण है जो दर्शकों को कलाकृति की ओर आकर्षित कर सकता है और सामंजस्य और जुड़ाव की भावना पैदा कर सकता है। इस लेख में, हम कला में लय के अर्थ का पता लगाएंगे, इसे दृश्य और श्रवण तत्वों के माध्यम से कैसे हासिल किया जा सकता है, और इसके अनुप्रयोग के कुछ उदाहरण प्रदान करेंगे।

देखा जाए तो आत्मोपलब्धि, आत्मविकास तथा आत्माभिव्यक्ति ही ललित कला की मूल बिन्दु हैं। तन्मयता तथा तदाकार परिणति की यह शक्ति ही कला को अन्य शास्त्रों तथा विद्याओं से पृथक् करती है। रसवत्ता और सौन्दर्यसम्पन्नता कला के अनिवार्य तत्त्व हैं।

 

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