काटोल: परिवार में दादा-दादी का होना भारतीय संस्कृति का प्रतीक है - अनिल देशमुख
- उत्साह के साथ मनाया दादा-दादी सम्मेलन
- दादा-दादी का होना भारतीय संस्कृति का प्रतीक
डिजिटल डेस्क, काटोल. अनुभव सबसे बड़ा शिक्षक है। एक वृद्ध व्यक्ति अपने अाप में अनुभव का खजाना होता है। जिसे प्रत्येक परिवार में दादा-दादी संस्कारों का बीजारोपण परिवार में करते हैं। परिवार में दादा-दादी का स्थान भारतीय संस्कृति का प्रतीक होने का विचार पूर्व राज्यगृहमंत्री व विधायक अनिल देशमुख ने व्यक्त किया। काटोल स्थित माउंट कार्मेल कॉन्वेंट में शनिवार को दादा- दादी सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि विधायक अनिल देशमुख, अध्यक्ष के स्थान पर माउंट कार्मेल की निर्देशिका व प्राचार्य विमल ग्रेस, पुलिस निरीक्षक निशांत मेश्राम, उपप्राचार्य सिस्टर नव्या, सिस्टर प्रसन्ना, सिस्टर स्वरूपा, सिस्टर सजीवा आदि मौजूद थे। प्राचार्य विमल ग्रेस ने कहा कि, आधुनिक युग में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ने के साथ ही बच्चों में संस्कार की कमी आ रही है। जिन परिवारों में दादा-दादी, नाना-नानी हैं। ऐसे विद्यार्थियों में संस्कारों की झलक व जीवन में प्रगति अपने आप ही निर्धारित हो जाती है। इस अवसर पर नन्हे-मुन्ने छात्रों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक से बढ़कर एक आकर्षक नृत्यों की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कल्याणी देशमुख, हर्षा गजबे, नम्रता कडू, संपदा देवघरे, नीलिमा राजस, भारती धवराल, रिता जॉर्ज, दीपाली निशाने, माधुरी फुके, सपना कांमडी, कांचन वालके आदि ने शानदार प्रस्तुति दी। प्रकाश अतकरणे, विपिन राऊत, प्रीति सातपुते, सुनीता अतकरणे, आरती ढोले, रेणुका भोयर, वैशाली फरतोड़े, शीतल दाऊतपुरे आदि ने सहयोग किया। “दादाजी की छड़ी हूं मैं’, "दादी अम्मा, दादी अम्मा, मान जाओ’ जैसे बाल नृत्यों की प्रस्तुति ने सभी का दिल जीत लिया।
संचालन वैशाली पेंढारकर ने एवं आभार प्रतिमा पांढरकर ने माना। समारोह में विकल परमाल, डॉ. राजू कोतेवार, पद्मा परमाल, राधा चौहान, चेतना परमाल, अमित काकड़े, रवींद्र गजघाटे सहित बड़ी संख्या में छात्र व उनके दादा-दादी व नाना-नानी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।