जबलपुर: हाई कोर्ट ने दो वर्ष पहले मृत व्यक्ति को जिंदा साबित करने को लेकर माँगा जवाब
- नगर निगम आयुक्त व तहसीलदार सहित अन्य को नोटिस
- मामला अदालत पहुँचने के बाद आरोप साबित नहीं हुआ।
- जिंदा साबित करने के प्रकरण में जवाब-तलब कर लिया है।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मप्र हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने दो वर्ष पूर्व मृत व्यक्ति को जिंदा साबित करने के प्रकरण में जवाब-तलब कर लिया है।
कोर्ट ने नगर निगम आयुक्त व तहसीलदार, गढ़ा सहित अन्य को नोटिस जारी कर अगली 10 अक्टूबर तक जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। बीटी तिराहा निवासी दिवंगत कंधीलाल के उत्तराधिकारियों की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्य कंधीलाल दो वर्ष पूर्व दिवंगत हो चुके हैं। इसके बावजूद तहसीलदार, गढ़ा ने जो आदेश पारित किया, उससे प्रतीत होता है कि जैसे कंधीलाल जिंदा है और उनके समक्ष उपस्थित हुआ।
यही नहीं उसने कब्जा आदेश पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। जिसके बाद तहसीलदार ने उसकी जमीन शासन के कब्जे में लिए जाने का आदेश पारित कर दिया। दरअसल, कंधीलाल जिस जमीन पर घर बनाकर रहते थे और खेती भी करते थे, वह 1989 में सीलिंग के दायरे में आ गई थी। राज्य शासन ने 15 जुलाई, 1989 को जमीन का कब्जा कंधीलाल से लेकर अतिशेष घोषित कर दिया था।
अनुदान प्राप्त स्कूलों में नई भर्तियों को वेतन देना सरकार का दायित्व नहीं
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा कि राज्य शासन द्वारा अनुदान प्राप्त शैक्षणिक संस्थान अनुकंपा के आधार पर किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकते हैं, लेकिन उन्हें उसके वेतन और अन्य सुविधाओं का खर्च स्वयं वहन करना होगा।
जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने कहा कि अनुदान प्राप्त स्कूलों में नई भर्तियों को वेतन देना सरकार का दायित्व नहीं है। जबलपुर निवासी कौशल कुमार कुशवाहा ने याचिका दायर कर बताया कि उसके पिता शासकीय अनुदान प्राप्त स्कूल में पदस्थ थे। उनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था।
जिला शिक्षा अधिकारी ने सितंबर 2017 में जारी एक आदेश में कहा कि स्कूल उन्हें अनुकंपा के आधार पर नियुक्त कर सकता है लेकिन वेतन कौन देगा, यह शासकीय निर्णय पर आधारित है। दलील दी गई कि राज्य शासन ने स्वयं अनुदान प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थानों को किसी कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु की स्थिति में उसके आश्रितों में से एक को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की व्यवस्था दी है। वहीं राज्य शासन की ओर से कहा गया कि अब नियम बदल दिए गए हैं।
इन संशोधित नियमों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि संशोधित नियम वर्ष 2000 से पहले भर्ती हुए सहायता प्राप्त स्कूलों के कर्मचारियों पर लागू नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य शासन ने आदेश जारी किया कि किसी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने या किसी अन्य कारण से सहायता प्राप्त स्कूलों में नई नियुक्तियाँ नहीं की जाएँगी। रिक्त पद को बट्टाखाते में डाल दिया जाएगा।
आदेश के बावजूद ननि की सेवा में क्यों नहीं लिया वापस
मप्र हाईकोर्ट ने नगर निगम आयुक्त जबलपुर से पूछा है कि पूर्व आदेश के बावजूद भी याचिकाकर्ता को सेवा में वापस क्यों नहीं लिया गया। एक अवमानना याचिका पर जस्टिस डीडी बंसल की एकलपीठ ने प्रमुख सचिव गुलशन बामरा, नगर निगम जबलपुर की आयुक्त प्रीति यादव, अतिरिक्त आयुक्त आरपी मिश्रा व स्वास्थ्य अधिकारी संदीप जायसवाल को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए।
जबलपुर निवासी मनोज कुमार पटेल की ओर से अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा व शिवम शर्मा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता नगर निगम, जबलपुर में सफाई सुपरवाइजर के रूप में पदस्थ था। 2010 से 2017 तक निरंतर सेवा देता रहा।
2017 में उसके परिवार की एक महिला ने आत्महत्या कर ली। इस मामले में परिवार के अन्य सदस्यों के साथ याचिकाकर्ता को भी आरोपी बना लिया गया। पुलिस केस हो जाने के आधार पर याचिकाकर्ता की सेवा 25 अगस्त, 2017 को समाप्त कर दी गई।
हालांकि मामला अदालत पहुँचने के बाद आरोप साबित नहीं हुआ। लिहाजा, पूर्व में हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसके जरिए नगर निगम की सेवा में वापस लेने के आदेश की माँग की गई थी। हाई कोर्ट ने माँग स्वीकार करते हुए नगर निगम को 30 दिन के भीतर सेवा में लेने का आदेश सुनाया था।