तेंदुओं के साथ जबलपुर के जंगलों में बढ़ेगा बाघों का कुनबा

कॉलर आईडी के जरिए बाघ-बाघिन की हर गतिविधि पर रखी जाएगी नजर

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-16 17:49 GMT

डिजिटल डेस्क जबलपुर। जबलपुर के जंगलों में अब तेंदुओं के साथ बाघों का कुनबा भी जल्द ही अपना वजूद स्थापित करेगा। बाघों के पुनर्वास योजना के तहत करीब 20 िदन पूर्व पन्ना टाइगर िरजर्व नेशनल पार्क से लाए गए मेल-फीमेल बाघ के जोड़े को जबलपुर के पाटन से लगे मेरेगाँव के जंगल में छोड़ा गया है। चूँकि पाटन का 27 मील का जंगल बाघों का पुराना गलियारा और पसंदीदा क्षेत्र रहा है। इसलिए उम्मीद जताई जा रही है िक यहाँ एक बार िफर बाघों का कुनबा बढ़ेगा।

दरअसल पन्ना टाइगर िरजर्व नेचर का एक बड़ा हिस्सा केन-बेतवा डैम के निर्माण को लेकर डूब क्षेत्र में आ रहा है। जिसको लेकर यहाँ बसने वाले बाघों के पुनर्वास को लेकर कई सालों से शिफ्टिंग की तैयारी की जा रही थी। इसके लिए कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा सर्वे किए जा रहे थे। इनमें से एक वाइल्ड लाइफ टाइगर कंजरवेशन ग्रुप ने सैटेलाइट सर्वे किया था, जिसमें जबलपुर से लगे नौरादेही के जंगल को बाघों के पुनर्वास के लिए अनुकूल पाया गया। लिहाजा केन्द्रीय वन मंत्रालय समेत सभी विभागों की अनुमति के बाद मेरेगाँव के जंगल को चिहिन्त करके यहाँ बाघ-बाघिन को छोड़ा गया है। इसके लिए एक टीम लगातार मॉनिटरिंग भी करेगी जो कॉलर आईडी के जरिए बाघ-बाघिन की हर गतिविधि पर नजर रखेगी।

बगदरी फॉल तक पहुँचने का आकलन

इस मामले में रिसर्च करने वाली वाइल्ड लाइफ टाइगर कंजरवेशन ग्रुप की डॉ. दीपा कुलश्रेष्ठ के अनुसार बाघ एक दिन में 2 सौ से ढाई सौ किलोमीटर तक का सफर कर सकते हैं। बाघ मैदानी इलाकों से ज्यादा पहाड़ी रास्तों को आवागमन के लिए पसंद करते हैं। चूँकि नौरादेही का जंगल पाटन-तेंदूखेड़ा से लगी पहाडिय़ों से जुड़ा हुआ है। पाटन का 27 मील, प्राचीन समय से बाघों का रहवास रहा है। शेर प्रजाति के सभी वन्य प्राणियों में एक िवशेष बात होती है कि वो अपने पूर्वजों के पुराने गलियारों को खोजते हुए जरूर पहुँचते हैं। इसलिए आकलन लगाया जा रहा है िक नौरादेही में छोड़े गए बाघ-बाघिन पाटन के पास बगदरी फॉल की पहाडिय़ों तक जरूर पहुँचेंगे। जिससे जबलपुर का जंगल एक बार फिर बाघ मूवमेंट एरिया से मशहूर हो जाएगा।

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