जबलपुर: पल्मोनरी मेडिसिन: मेडिकल कॉलेज डीन के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक

  • डॉ. भार्गव बने रहेंगे प्रशासनिक प्रमुख, हाई कोर्ट के निर्देश
  • रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष का कार्य भी सम्मिलित है
  • याचिकाकर्ता को प्रशासनिक कार्य नहीं दिया जा रहा था

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-20 10:42 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रभारी डीन डॉ. गीता गुईन द्वारा 16 अगस्त 2023 के उस आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी जिसके तहत डॉ. संजय भारती को रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग का एचओडी बना दिया था।

कोर्ट ने कहा कि डॉ. जितेन्द्र भार्गव स्कूल ऑफ एक्सीलेंस इन पल्मोनरी मेडिसिन के प्रशासनिक प्रमुख बने रहेंगे। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अगली सुनवाई तक सभी अनावेदकों को जवाब पेश करने के निर्देश दिए।

डॉ. भार्गव की ओर से अधिवक्ता समदर्शी तिवारी ने बताया कि संभागायुक्त जबलपुर द्वारा स्कूल ऑफ एक्सीलेंस इन पल्मोनरी मेडिसिन के डायरेक्टर प्रोफेसर जितेंद्र भार्गव को डायरेक्टर के प्रभार से मुक्त कर दिया था।

हाई कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए जितेंद्र भार्गव को पूर्ववत डायरेक्टर पद का कार्य निर्वहन करने का आदेश दिया था। इसमें रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष का कार्य भी सम्मिलित है।

इस बीच डीन द्वारा रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में सोलह अगस्त को डॉ. संजय भारती को विभागाध्यक्ष बना दिया था। डीन द्वारा डायरेक्टर के समस्त प्रशासनिक अधिकार स्वयं ले लिए गए थे जिस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाते हुए डीन के उक्त कृत्य को प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण माना था। इसके बावजूद याचिकाकर्ता को प्रशासनिक कार्य नहीं दिया जा रहा था।

बीसीआई स्पष्ट करे, वेरिफिकेशन कराना है या पुन: नवीनीकरण

स्टेट बार काउंसिल ऑफ मध्यप्रदेश ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर यह स्पष्ट करने कहा है कि अधिवक्ताओं का वेरिफिकेशन कराना है या पुन: नवीनीकरण करना है। स्टेट बार काउंसिल ने शुक्रवार को प्रशासनिक समिति की बैठक के बाद उक्त पत्र भेजा है।

समिति की बैठक अध्यक्ष राधेलाल गुप्ता की अध्यक्षता में आयोजित हुई, जिसमें काउंसिल के वाइस चेयरमैन आरके सिंह सैनी, सदस्य राजेश पांडे उपस्थित रहे।

समिति ने बीसीआई द्वारा वेरिफिकेशन से संबंधित 14 जनवरी, 2024 को जारी पत्र का अवलोकन किया। इसके तहत पूरे देश के समस्त अधिवक्तागणों का वेरिफिकेशन व सत्यापन करवाना आवश्यक माना गया है।

एसबीसी द्वारा उक्त पत्र के आधार पर बैठक आयोजित की गई है, जिसमें पाया गया बीसीआई के पत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एसबीसी को अधिवक्ताओं का वेरिफिकेशन करवाना है या पुन: पाँच साल पूर्ण होने पर नवीनीकरण कराना है।

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