जबलपुर: शुल्क वसूलना है तो इंदौर-भोपाल से तुलना और सुविधाएँ देने के नाम पर चुप्पी
- राइट टाउन स्टेडियम के बेवजह व्यवसायीकरण का मुद्दा गर्म
- सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद स्टेडियम की उपयोगिता भी सीमित हो गई है।
- इंदौर-भोपाल के लोग शुल्क का भुगतान करने में सक्षम हैं और वहाँ निःशुल्क श्रेणी के भी ढेर विकल्प हैं
डिजिटल डेस्क। जबलपुर में ये मुद्दा गर्म है कि मॉर्निंग वॉकर्स से राइट टाउन स्टेडियम में शुल्क वसूला जाये या नहीं? जबलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने तो बिना सोचे-समझे फरमान ही जारी कर दिया है कि राइट टाउन स्टेडियम (पंडित रविशंकर शुक्ल क्रीड़ांगन) में सुबह पैदल चलना है तो 354 रुपये मासिक शुल्क देना पड़ेगा और आनन-फानन में जो ठेकेदार नियुक्त किया गया है, उसने भी कड़ाई से वसूली शुरू कर दी है।
दशकों से स्टेडियम का उपयोग करने वाले विरोध कर रहे हैं तो उनको तर्क दिया जा रहा है कि भोपाल और इंदौर में भी मॉर्निंग वॉकर्स से शुल्क लिया जाता है, चूँकि जनप्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है, वो जनता की लड़ाई लड़ने तैयार नहीं हैं, इसलिए अब दिमाग में प्रश्न आ रहा है कि क्या जबलपुर की तुलना भोपाल या इंदौर से की जा सकती है।
हकीकत में प्रदेश की राजधानी भोपाल और आर्थिक राजधानी इंदौर की जबलपुर से कोई तुलना नहीं है, सफाई में देश में नंबर वन इंदौर और हरियाली से परिपूर्ण भोपाल में मॉर्निंग वॉकर्स के लिये साफ-सुथरे फुटपाथ और ढेर सारे सुविधाजनक पार्क हैं, वहीं जबलपुर में फुटपाथ न केवल गंदगी से भरे-पूरे हैं, बल्कि जगह-जगह टपरे लगे हैं।
अतिक्रमण हैं तो मॉर्निंग वॉक कैसे किया जा सकता है। ऐसे में यदि इंदौर-भोपाल में बने स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स में मॉर्निंग वॉकर्स से शुल्क वसूला भी जा रहा है तो वो तर्क जबलपुर पर लागू करना ज्यादती है, क्योंकि यहाँ सुविधाओं का नितांत अभाव है।
इंदौर-भोपाल में यदि सुविधाओं पर नजर डालें तो वहाँ कई तरण-ताल सरकार ने बनवा रखे हैं। पिछड़े जबलपुर में एकमात्र तरण-ताल गर्मी आ जाने पर भी चालू नहीं हो पाता। भोपाल में बड़ी झील, सैर-सपाटा, वन विहार, भदभदा, केरवा डैम, कोलार डैम, कमला पार्क, कमला नेहरू बाल उद्यान, चिनार पार्क, एकांत पार्क, वर्धमान पार्क, न जाने पब्लिक के लिए कितने साधन हैं, वहीं इंदौर में रीजनल पार्क, मेघदूत गार्डन, नेहरू पार्क, छत्री बाग, तफरीह एग्रो पार्क, सफारी एडवेंचर पार्क, ट्रैफिक पार्क आदि दर्जन भर से ज्यादा स्थान आम जनता के लिए हैं।
जबलपुर में इस स्तर के कोई पार्क तो बनाये नहीं जा सके हैं, वहीं ले-देकर शहर में भँवरताल पार्क और कैंट में किंग्स गार्डन हैं, जहाँ भी मॉर्निंग वॉकर्स से शुल्क वसूली के असफल प्रयास हो चुके हैं। मॉर्निंग वॉकर्स यदि रिज रोड पर वॉक करने जाना चाहें तो उनसे कड़ी पूछताछ के साथ पहचान पत्र माँगा जाता है, ऐसे में दशकों से जो लोग राइट टाउन स्टेडियम में निःशुल्क वॉक कर रहे थे, अचानक उनसे शुल्क माँगा जाना कहाँ तक उचित है।
राइट टाउन स्टेडियम का व्यवसायीकरण करने से पहले स्मार्ट सिटी को सोचना चाहिए था कि शहर के बीच ये एक ऐसा स्थान था जहाँ बड़े-बुजुर्ग, महिलाएँ मॉर्निंग-ईवनिंग वॉक करते थे, बच्चे क्रिकेट-फुटबॉल आदि खेल खेलते थे, खिलाड़ी सिंडर ट्रैक पर दौड़ते थे, बॉक्सर और एथलीट प्रैक्टिस करते थे। 26 जनवरी और 15 अगस्त को परेड होती थी, पंजाबी दशहरे पर रावण जलाया जाता था, आवश्यकता पड़ने पर कार्यक्रम होते थे, बड़े नेताओं की सभाएँ हुआ करती थीं अर्थात् स्टेडियम सर्व सुलभ था, पर अचानक कमर्शियल प्लान बनाया और यहाँ टर्फ बिछाकर हजारों लोगों को लाभ लेने से वंचित कर दिया गया।
अब जब वॉक करने वालों से शुल्क माँगा जा रहा है तो निस्संदेह स्टेडियम के मिनी स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स में अन्य खेल वालों से भी जमकर वसूली करने का प्लान होगा। दशकों से जो स्टेडियम तमाम खेल गतिविधियों का निःशुल्क केंद्र था, उसे कमर्शियल वेंचर बना देने से उन गतिविधियों पर हमेशा के लिए विराम सा लग गया है और सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद स्टेडियम की उपयोगिता भी सीमित हो गई है।
इतना पैसा यदि रानीताल स्टेडियम पर खर्च किया जाता तो राइट टाउन स्टेडियम का इस्तेमाल करने वाले भी खुश रहते और एक वृहद् स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स भी बन जाता।
दरअसल, जबलपुर की इंदौर और भोपाल से कोई तुलना नहीं है, ये दोनों महानगर साधनों और संसाधनों की दौड़ में जबलपुर से बहुत आगे निकल गये हैं। दोनों महानगरों ने व्यावसायिक दौड़ में भी जबलपुर को पीछे छोड़ दिया है। ऐसे में पेइंग कैपेसिटी भी एक मुद्दा है।
इंदौर-भोपाल के लोग शुल्क का भुगतान करने में सक्षम हैं और वहाँ निःशुल्क श्रेणी के भी ढेर विकल्प हैं, पर जबलपुर में विकल्प तो हैं नहीं, ऊपर से शुल्क लगाकर मॉर्निंग वॉकर्स को परेशान किया जा रहा है।
दुर्भाग्य ये भी है कि जबलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की इस ज्यादती के खिलाफ जनप्रतिनिधि एकजुट होकर आवाज नहीं उठाना चाहते। यदि इंदौर-भोपाल में ऐसा अन्याय हुआ होता तो वहाँ के जनप्रतिनिधि प्रशासन को घुटने टेकने मजबूर कर देते।
सीधी बात ये है कि जबलपुर के बाशिंदों को मॉर्निंग वॉक के लिए निःशुल्क सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अगर इंदौर-भोपाल से तुलना करनी है तो शासन-प्रशासन को चुप्पी छोड़कर पहले जबलपुर को वैसा साधन-संपन्न बनाया जाये फिर शुल्क वसूलने की सोची जाए।