जबलपुर: मुनाफा कमाने के चक्कर में मँगवाई जाती हैं मूर्तियाँ, जो पर्यावरण के लिए हैं घातक

शहर में बाहर से आती हैं प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाएँ, इन पर लगे रोक

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-09 10:28 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर।

शहर के मूर्तिकारों का दावा है कि वे प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियाँ नहीं बनाते हैं। ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि प्रतिवर्ष आखिर बड़ी संख्या में पीओपी की मूर्तियाँ आखिर कहाँ से आती हैं। सूत्रों का कहना है कि बुरहानपुर, अमरावती एवं नागपुर से बड़ी संख्या में पीओपी की मूर्तियाँ शहर लाई जाती हैं। शहर के व्यापारी ही ऑर्डर देकर इन मूर्तियों का निर्माण कराते हैं। निर्माण के बाद बस, ट्रेन व निजी साधन से ये मूर्तियाँ बक्सों में पैक करके शहर पहुँचाई जाती हैं। पर्यावरण के हित चिंतकों का कहना है कि बाहर से आने वाली पीओपी की इन प्रतिमाओं पर प्रशासन को तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए।

पानी में नहीं घुलतीं ये प्रतिमाएँ

चूँकि आम लोग प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियाँ नहीं पहचान पाते, इसलिए वे इन्हें खरीद भी लेते हैं। वहीं प्रशासन के पास ऐसा कोई उपकरण नहीं है जिससे प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों की पहचान की जा सके। केवल पानी में डुबाेकर मूर्तियों की पहचान की जाती है। प्रतिमा घुल जाए तो मिट्टी की बनी है, नहीं घुले तो पीओपी से निर्माण किया गया है।

80 फीसदी प्रतिमाएँ बाहर से आ रहीं

शहर के मूर्तिकार प्रह्लाद बताते हैं कि शहर में करीब 200 कारीगर हैं, जो प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं। गणेशोत्सव के दौरान करीब 10 हजार प्रतिमाएँ स्थानीय कारीगरों द्वारा गढ़ी जाती हैं, जबकि शहर भर में करीब एक लाख प्रतिमाएँ रखी जाती हैं। इनमें 80 से 90 फीसदी प्रतिमाएँ बाहर से आती हैं। प्रतिमाओं को बार्डर पर ही चेकिंग कर शहर आने से रोका जा सकता। ऐसे में व्यापारियों को खुद आगे आकर पीओपी की प्रतिमाओं का बहिष्कार करना चाहिए।

एक्सपर्ट व्यू

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. आरके श्रीवास्तव कहते हैं प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाएँ जिप्सम, चूना व सीमेंट से बनाई जाती हैं। इनमें खतरनाक केमिकल मिश्रित रंगों का उपयोग किया जाता है, जिनमें मेटल सहित अन्य तत्व होते हैं, जो दिखने में तो आकर्षक होते हैं, लेकिन जब इन्हें विसर्जित किया जाता है तो पानी को जहरीला बना देते हैं।

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