जबलपुर: मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं केंचुए

  • यूटाइफियस की कास्टिंग मिट्टी की उठी हुई रेखाओं के समान होती है।
  • ये भूमि को एक प्रकार से जोतकर किसानों के लिए उपजाऊ बनाते हैं।
  • वर्मकास्टिंग की ऊपरी मिट्टी सूख जाती है, फिर बारीक होकर भूमि की सतह पर फैल जाती है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-29 13:47 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मिट्टी के महत्वपूर्ण जीवों में केंचुआ एक है। केंचुए में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने की क्षमता होती है। इसलिए मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें किसान का मित्र, खेत का हल चलाने वाला, धरती की आँत, पारिस्थिति के इंजीनियर और जैविक संकेतक के रूप में भी जाना जाता है।

उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केंचुए किसानों के सच्चे मित्र और सहायक हैं। श्री आम्रवंशी के मुताबिक भारत में कई जातियों के केंचुए पाए जाते हैं।

इनमें से केवल दो ऐसे हैं जो आसानी से प्राप्त होते हैं। एक है फेरिटाइमा और दूसरा है यूटाइफियस। फेरिटाइमा पॉसथ्यूमा सारे भारत वर्ष में मिलता है। फेरिटाइमा की वर्म कास्टिंग मिट्टी की पृथक गोलियों के छोटे ढेर जैसी होती है और यूटाइफियस की कास्टिंग मिट्टी की उठी हुई रेखाओं के समान होती है।

इनका मिट्टी खाने का ढंग लाभदायक है। ये भूमि को एक प्रकार से जोतकर किसानों के लिए उपजाऊ बनाते हैं। वर्मकास्टिंग की ऊपरी मिट्टी सूख जाती है, फिर बारीक होकर भूमि की सतह पर फैल जाती है।

इस तरह जहाँ केंचुए रहते हैं वहाँ की मिट्टी पोली हो जाती है, जिससे पानी और हवा भूमि के भीतर सुगमता से प्रवेश कर सकती है। इस प्रकार केंचुए हल के समान कार्य करते हैं।

उपसंचालक किसान कल्याण ने बताया कि एक एकड़ में लगभग 10 हजार से ऊपर केंचुए रहते हैं। ये केंचुए एक वर्ष में 14 से 18 टन या 400 से 500 मन मिट्टी भूमि के नीचे से लाकर सतह पर एकत्रित कर देते हैं।

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