जबलपुर: राजकोट में गेमजोन और दिल्ली में अग्नि हादसे के बाद उठी माँग
- हॉस्पिटल, मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की रुटीन मॉनिटरिंग जरूरी
- सिर्फ दिखावे की न रहे फायर सेफ्टी, हर महीने हो मॉक ड्रिल
- जानकारों का कहना है कि लोग फायर सेफ्टी सिस्टम तो लगवा लेते हैं, लेकिन उनकी सतत मॉनिटरिंग नहीं की जाती।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम जोन अग्नि हादसे के बाद रविवार को दिल्ली में बच्चों के हॉस्पिटल में भी भीषण हादसा हो गया। इन हादसों ने लोगों को विचलित कर दिया है। नौनिहालों की दर्दनाक मौत से हर व्यक्ति दु:खी और व्यथित है। इन दोनों दुर्घटनाओं ने व्यवस्था पर कई सवाल भी खड़े किए हैं।
शहर भी इस तरह के हादसों से अछूता नहीं रहा है, पूर्व में जबलपुर में भी कई बड़े अग्नि हादसे हो चुके हैं, जिसमें लोगों को जान गंवानी पड़ी। प्रबुद्धजनों का मानना है कि थोड़ी सी सतर्कता से इस तरह के हादसों को रोका जा सकता है।
लोगों के अनुसार होता ये है कि हादसों के बाद सिस्टम की नींद टूटती है, लेकिन तब तक काफी बेकसूरों को जान से हाथ धोना पड़ जाता है। होना तो ये चाहिए कि हर संस्थान में फायर सेफ्टी सिस्टम की नियमित जाँच की जानी चाहिए।
विशेषकर बड़े संस्थान, मॉल, हॉस्पिटल, इनमें हर 15 दिन में एक मॉक ड्रिल हो जिससे व्यवस्था को परखा जा सके ताकि मौके पर वे काम आ सकें और लोगों की जान बचाई जा सके।
जरूरत पड़ने पर काम नहीं आ पाते उपकरण-
जानकारों का कहना है कि लोग फायर सेफ्टी सिस्टम तो लगवा लेते हैं, लेकिन उनकी सतत मॉनिटरिंग नहीं की जाती। कई बार ऐसा सामने आया है कि हादसों के वक्त अग्निशमन यंत्र, अलार्म और अन्य उपकरण काम नहीं कर पाते।
इसके अलावा कर्मचारियों को ट्रेनिंग भी महज औपचारिकता के लिए दी जाती है। इसलिए ये जरूरी है कि फायर सिस्टम का नियमित रखरखाव होने के साथ सिक्योरिटी गार्ड समेत सभी कर्मचारियों को भी हर समय ट्रेंड किया जाना चाहिए।
आपातकालीन द्वारों की भी हो जाँच-
नियम के अनुसार सभी बड़ी इमारतों और संस्थानों में आपातकालीन द्वार आवश्यक रूप से बनाए जाने चाहिए। संस्थानों में इनका निर्माण भी किया जाता है, लेकिन ज्यादातर लोग लिफ्ट का ही उपयोग करते हैं।
ऐसे में आपातकालीन रास्ते ज्यादातर समय बंद ही रहते हैं। आकस्मिक घटना पर कई बार ये दरवाजे नहीं खुल पाते। इसलिए सभी जगहों पर आपातकालीन रास्तों की भी नियमित जाँच होनी चाहिए।
राजकोट के टीआरपी गेम जोन में आग लगने के बाद सबसे बड़ा ड्रॉ-बैक यही रहा कि यहाँ लोगों के बाहर निकलने के लिए कोई भी वैकल्पिक रास्ता नहीं था। जानकारों का कहना है कि यदि वहाँ पर वैकल्पिक रास्ता होता तो हादसा इतना दर्दनाक नहीं हो पाता।