हाईकोर्ट ने कहा: जानबूझकर की गई अदालत के आदेश की गलत व्याख्या, नायब तहसीलदार पर 50 हजार रु. की कॉस्ट

  • हाईकोर्ट ने कहा- जब तक डिक्री नहीं हो, जबरन खाली नहीं करा सकते कब्जा
  • कोर्ट ने उन्हें यह राशि एक माह के भीतर हाईकोर्ट रजिस्ट्री में जमा कराने के निर्देश दिए।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-12 13:46 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नायब तहसीलदार गोरखपुर, जबलपुर के उस कृत्य को अवैधानिक करार दिया जिसमें उन्होंने अदालत के आदेश की गलत व्याख्या करते हुए याचिकाकर्ता को कब्जा खाली कराने का नोटिस जारी किया था।

जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने कहा कि नायब तहसीलदार ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है। यह वास्तविक गलती नहीं, जानबूझकर किया गया कृत्य है। हाईकोर्ट ने नायब तहसीलदार गोरखपुर पर 50 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई।

कोर्ट ने उन्हें यह राशि एक माह के भीतर हाईकोर्ट रजिस्ट्री में जमा कराने के निर्देश दिए। ऐसा नहीं करने पर रजिस्ट्रार जनरल को उनके खिलाफ रिकवरी और अवमानना की कार्रवाई करने कहा।

जबलपुर निवासी प्रवीण गुप्ता की ओर से अधिवक्ता अजय मेहता ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि अनावेदक मुकेश तायडे व मनोज कुमार ने याचिकाकर्ता की माँ शकुंतला से गोरखपुर में संपत्ति खरीदी थी।

इस संपत्ति से याचिकाकर्ता व उसकी बहनों ने अपना हक छोड़ दिया था। मुकेश व मनोज ने कब्जा खाली कराते समय पुलिस सुरक्षा की माँग करते हुए हाईकोर्ट में मामला लगाया। हाईकोर्ट ने 16 जनवरी 2024 को पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए थे कि मुकेश के अभ्यावेदन पर निर्णय लें।

कोर्ट के इसी आदेश को आधार बनाते हुए नायब तहसीलदार ने 30 जनवरी 2024 को प्रवीण को नोटिस जारी कर कब्जा खाली करने कहा था। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक संपत्ति की डिक्री पारित नहीं की जाती, तब तक उसे जबरन खाली नहीं कराया जा सकता। इस मत के साथ हाईकोर्ट ने तहसीलदार के नोटिस को निरस्त कर दिया।

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