कंजक्टिवाइटिस: लक्षण नजर आने पर बच्चाें को स्कूल न भेजें पेरेंट्स
आई फ्लू की चपेट में नौनिहाल, देखने से नहीं, संपर्क में आने से फैलता है
डिजिटल डेस्क,जबलपुर।
अधिक उम्र के लोगों के साथ कंजक्टिवाइटिस की चपेट में अब बच्चे भी हैं। आई फ्लू के प्रति बच्चों में जागरूकता न होने कारण वे जल्दी इसकी चपेट में आ रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इस मामले में पेरेंट्स को जिम्मेदारी समझनी होगी। अगर बच्चे की आँखें लाल और गुलाबी हैं, खुजलाहट के साथ पानी आना जैसी समस्याएँ हैं तो उसे स्कूल न भेजें। यही नहीं भीड़ वाली जगहों पर और स्वीमिंग के लिए भी बच्चे को न भेजें। ऐसा करने से अन्य बच्चे एवं दूसरे लोग उनके संपर्क में आने से बचेंगे। बीमारी फैलने का सबसे आम तरीका यह है कि जब संक्रमित लोग बार-बार अपनी आँखों को छूते हैं और अपने हाथों को साफ करना भूल जाते हैं। यह वायरस संपर्क या तरल के जरिए फैलता है। इसलिए हाईजीन मेंटेन करना बहुत जरूरी है। जानकारी न होने पर बच्चे बार-बार आँखों पर हाथ लगाते हैं, जो कि दूसरे बच्चों में संक्रमण का कारण हो सकता है। ऐसे में बच्चों के हाथ साबुन से धुलाएँ अथवा सेनिटाइज भी कर सकते हैं। बच्चों को ऐसा करने के लिए प्रेरित भी करें। चिकित्सक की सलाह के बिना कोई आई ड्रॉप न डालें।
एक-दूसरे को देखने से नहीं फैलता आई फ्लू
मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अव्यक्त अग्रवाल ने बताया कि आई फ्लू एक दूसरे को देखने से नहीं फैलता। यह एक भ्राँति है। यह संपर्क में आने से ही फैलता है। ऐसे में हाथों को साफ रखना जरूरी है। लक्षण नजर आने पर पेरेंट्स बच्चे को स्कूल न भेजें। टीचर्स को भी इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्लास में कोई बच्चा आई फ्लू के लक्षणों के साथ तो नहीं आ रहा। ऐसा होने पर पेरेंट्स को सूचित करें और कुछ दिन के लिए उसे स्कूल न आने दें। इससे बच्चे को भी घर पर देखभाल मिलेगी और दूसरे बच्चे भी सुरक्षित रहेंगे।
साफ-सफाई रखें, हाथों को बार-बार धोएँ।
आँखों को हाथों से न छुएँ, हाथ धोकर ही छुएँ।
स्वीमिंग पूल व तालाबों के प्रयोग से बचें।
निजी उपयोगी की सामग्री किसी से साझा न करें।
पेरेंट्स को अवेयर रहने की जरूरत
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय प्रताप सिंह ने बताया कि लगभग 10 में से 4 बच्चे आई फ्लू की प्रॉब्लम के साथ आ रहे हैं। बच्चों की आई फ्लू की चपेट में आने की बड़ी वजह स्कूल जाने के रूप में सामने आई है। जहाँ वे किसी अन्य संक्रमित बच्चे के संपर्क में आ जाते हैं। 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लेकर पेरेंट्स को अवेयर रहना चाहिए। छोटे बच्चों में इतनी समझ नहीं होती कि वे आँखों को टच न करें। यहाँ पेरेंट्स की भूमिका अहम हो जाती है।