जबलपुर: करोड़ों की लागत से बायो-सीएनजी संयंत्र बना, फिर भी नहीं मिट पा रहा गंदगी का दाग
- नदी में समा रहा डेयरियों से निकलने वाला अपशिष्ट, मिटने की कगार पर है अस्तित्व
- घुट रहा है परियट नदी का दम
- बायो-सीएनजी संयंत्र की स्थापना कुछ समय पूर्व की गई है
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। चार दशक पहले तक अपने निर्मल जल से आसपास के ग्रामीणों का कंठ तर करने वाली परियट नदी अब खुद तड़प रही है। डेयरियों से निकल रही गंदगी से न केवल परियट नदी का दम घुट रहा है बल्कि इसका अस्तित्व भी मिटने की कगार पर है।
यह महज गोबर की नदी बनकर रह गई है और हालात ये हैं कि दुर्गंध के कारण नदी के आसपास खड़े होना भी दूभर है। लोग इस बात से हैरान हैं कि नदी को बचाने के लिए बायो-सीएनजी प्लांट लगाया गया।
इसमें करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए। इसके बाद भी परियट नदी में समा रही गंदगी पर अंकुश नहीं लग पाया। यही हालात रहे तो परियट नदी का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा और वह महज इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह जाएगी।
धीरे-धीरे बढ़ती चली गई डेयरियों की तादाद
आज से करीब 3 दशक पूर्व नगर निगम एवं जिला प्रशासन द्वारा शहर से बाहर दूध डेयरियों का संचालन करने पनागर रोड पर संबंधित डेयरी संचालकों को जगह आवंटित की गई थी। शुरुआती दिनों में महज आधा सैकड़ा डेयरियाँ ही यहाँ संचालित होती थीं।
लेकिन समय बीतने के साथ अब 3 सैकड़ा छोटी-बड़ी डेयरियाँ, पनागर, परियट, इमलिया, केवलारी, कंदराखेड़ा एवं करौंदा नाला क्षेत्र के आसपास संचालित हो रही हैं। इन्हीं डेयरियों से निकलने वाला मवेशियों का मल-मूत्र एवं अन्य अवशिष्ट प्रतिदिन बड़ी मात्रा में प्रवाहित होकर सीधे परियट नदी में ही समा रहा है।
ग्रामीणों ने बयाँ किया दर्द
परियट नदी के किनारे बसे ग्राम महगवाँ निवासी संजय उपाध्याय व केशव पटेल का कहना है कि चार दशक तक लोग न केवल परियट नदी में नहाते थे, बल्कि घरों में दाल पकाने और पीने तक के लिए इसके पानी का उपयोग किया जाता था।
अब दुर्गंध की वजह से नदी के पास खड़े होना तक मुश्किल हो रहा है। पिपरिया निवासी लकी शुक्ला का कहना है कि नदी को पुनर्जीवित करने और उसकी स्वच्छता को वापस लौटाने के लिए ईमानदार प्रयास किए जाने चाहिए।
महज 15 प्रतिशत काम कर रहा संयंत्र
जानकारों की मानें तो स्मार्ट सिटी एवं जबलपुर दुग्ध संघ के संयुक्त प्रयासों से करीब 21 करोड़ की लागत से पनागर रोड पर बायो-सीएनजी संयंत्र की स्थापना कुछ समय पूर्व की गई है। स्मार्ट सिटी द्वारा प्रदत्त 18 करोड़ की राशि से बने 150 मीट्रिक टन प्रति दिवस क्षमता वाले उक्त संयंत्र का वर्चुअल उद्घाटन पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा बीते 27 सितम्बर को किया जा चुका है।
लेकिन लाइसेंस एवं संबंधित उपकरणों की पूर्ण उपलब्धता के अभाव में यह संयंत्र अभी मात्र 15 प्रतिशत गोबर को ही परियट नदी से अलग कर गैस बनाने का कार्य कर रहा है।
पूर्णत: चालू होने पर हो सकेगा सीएनजी का विक्रय
बताया जाता है कि बायो-सीएनजी संयंत्र जब पूरी तरह से चालू हो जाएगा तब डेयरियों से निकलकर परियट नदी में बह रहे गोबर से रोजाना 2400 किलो सीएनजी बनकर तैयार हो सकेगी। इसके बाद सीएनजी का सस्ती दरों पर विक्रय भी किया जाएगा तो वहीं परियट नदी को भी गोबर की मार से बचाने संबंधी प्रयास सफल हो सकेंगे।
लेकिन स्मार्ट सिटी नगर निगम एवं जिला प्रशासन से जुड़े अधिकारियों की उदासीनता से यह संयंत्र अभी तक पूर्ण रूप से चालू नहीं हो सका है।
इस संबंध में जब स्मार्ट सिटी एवं जबलपुर दुग्ध संघ के अधिकारियों से बात की गई तो उनका कहना था कि आगामी 15 मार्च तक सीएनजी संयंत्र चालू करने के प्रयास किए जा रहे हैं।