जबलपुर: पति संग रहने से मना करने वाली पत्नी भरण-पोषण की पात्र नहीं

  • पति द्वारा नोटिस मिलने के बाद उसने प्रकरण प्रस्तुत कर भरण-पोषण की माँग कर दी।
  • कोर्ट ने सेवानिवृत्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की क्रमोन्नति वापस लेने का आदेश निरस्त कर दिया।
  • शासन ने पूर्वव्यापी तिथि से क्रमोन्नति वापस लेने का आदेश जारी किया।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-10 10:25 GMT

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। कुटुम्ब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश केएन सिंह की अदालत ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि पति के साथ रहने से मना करने वाली पत्नी भरण-पोषण की पात्र नहीं है।

जबलपुर निवासी सचिन तंतुवाय की ओर से अधिवक्ता जीएस ठाकुर व अरुण कुमार भगत ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि सचिन की पत्नी 15 दिसंबर, 2020 से ससुराल से मायके में रहने लगी है। पति द्वारा नोटिस मिलने के बाद उसने प्रकरण प्रस्तुत कर भरण-पोषण की माँग कर दी।

यही नहीं 26 नवंबर, 2020 को दहेज प्रताड़ना का प्रकरण दर्ज करा दिया, साथ ही बारह लाख रुपये का चेक अनादरित होने का परिवाद भी प्रस्तुत किया। पत्नी ने अपने न्यायालयीन कथनों में साफ किया है कि मुझे पति के साथ नहीं रहना है। उपरोक्त तर्कों एवं प्रस्तुत किए गए न्यायदृष्टांत से सहमत होकर अदालत ने पत्नी का भरण-पोषण का आवेदन निरस्त कर दिया।

महिला को बंधक बनाकर लूट करने के आरोपी को 7 वर्ष का कारावास

अपर सत्र न्यायाधीश अभिषेक कुमार सक्सेना की अदालत ने मुस्कान हाइट अपार्टमेंट के एक फ्लैट में महिला को बंधक बनाकर लूट करने के आरोपी जॉनसन उर्फ हैप्पी सागर को 7 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही एक हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया।

जिला लोक अभियोजन अधिकारी अजय जैन ने बताया कि 27 जनवरी 2017 को आरोपी उक्त अपार्टमेंट में घुसा और महिला को बंधक बनाकर 10 हजार रुपए, सोने के जेवर और मोबाइल लूटकर भाग गया। पीड़ित महिला ने ओमती पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।

सुको आदेश के विपरीत क्रमोन्नति का लाभ वापस लेना अवैधानिक

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत आकस्मिक वेतन पाने वाले कर्मचारी से क्रमोन्नति का लाभ वापस लेना अवैधानिक है। इस मत के साथ कोर्ट ने सेवानिवृत्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की क्रमोन्नति वापस लेने का आदेश निरस्त कर दिया।

जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने शासन पर 10 हजार रुपए की कॉस्ट (लिटिगेशन व्यय) भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि यह कॉस्ट संबंधित दोषी अधिकारी से वसूली जाए और 30 दिन के भीतर याचिकाकर्ता को भुगतान की जाए।

जबलपुर निवासी मुन्नी बाई बागडे की ओर से अधिवक्ता सचिन पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता चतुर्थ श्रेणी सेवानिवृत्त कर्मचारी है। वह आकस्मिक निधि पाने वाली कर्मचारी थी।

क्रमोन्नति के आधार पर तय किया गया उसका वेतन निर्धारण किया गया था। शासन ने पूर्वव्यापी तिथि से क्रमोन्नति वापस लेने का आदेश जारी किया।

कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों द्वारा जानबूझकर इस तरह अदालतों के आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है। अधिकारियों के ऐसे कृत्य के कारण कर्मचारियों को कोर्ट की शरण लेनी पड़ती है।

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