कमलेश शाह राजा ही रहेंगे या बनेंगे मंत्री!: कांग्रेस से भाजपा में आए बाकी नेताओं के भी पुनर्वास का इंतजार

  • कमलेश शाह राजा ही रहेंगे या बनेंगे मंत्री!
  • कांग्रेस से भाजपा में आए बाकी नेताओं के भी पुनर्वास का इंतजार

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-21 06:55 GMT

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव को एक माह से अधिक का समय गुजर चुका है। १३ जुलाई को हर्रई जागीर के राजा कमलेश प्रताप शाह को विधायक निर्वाचित होने का प्रमाणपत्र दिया गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान कमलेशप्रताप शाह ने कांग्रेस और विधायक पद से इस्तीफा दिया था। तब से उनके मंत्री बनने के कयास लगाए जा रहे हैं। उपचुनाव के दौरान यह कयास चरम पर पहुंच गए थे। परिणाम घोषित हुए महीने भर बीतने के बाद भी कमलेशप्रताप शाह मंत्री नहीं बन पाए हैं। खासबात यह कि वे निर्वाचित विधायक तो हैं, लेकिन विधानसभा में उन्हें अभी सदस्यता की शपथ भी नहीं दिलाई गई है। उनके समर्थकों के मुताबिक सदस्यता की शपथ के लिए लेटर आने का इंतजार हो रहा है। हालांकि निर्वाचन के बाद ६ माह की अवधि तक सदस्यता की शपथ दिलाई जा सकती है।

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अब तक मंत्री नहीं बन पाने की यह वजह हो सकती है...

- उपचुनाव के दौरान ही उन्हें मंत्री बनाए जाने की खबरें चल पड़ी थी, लेकिन रामनिवास रावत को मंत्री बनाए जाने के बाद भाजपा के ही सीनियर विधायकों के मुखर होने से बनी परिस्थिति के चलते श्री शाह की ताजपोशी पर विचार तक नहीं करने दिया। बाद मंत्री की विभाग को लेकर नाराजगी भी ने परिस्थिति को और बिगाड़ दिया।

- वर्ष २००३ के आम चुनाव में कांग्रेस में रहते हुए कमलेशप्रताप शाह २५ हजार से अधिक मतों से जीते थे। इसके महज ७ माह बाद हुए अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में वे बमुश्किल ३०२७ वोटों के अंतर से जीत पाए। वह भी तब जब पूरी सरकार और भाजपा उनकी जीत के लिए जुटी। भाजपाई इसे पार्टी की जीत ज्यादा मान रहे हैं।

- कहीं हर्रई व अमरवाड़ा नया पॉवर सेंटर न बन जाए, यह एक वजह भी चौथी बार के विधायक कमलेशप्रताप शाह के मंत्री न बन पाने में रोड़ा मानी जा रही है। यही कारण है कि अब तक स्थानीय स्तर से शाह को मंत्री बनाने की मांग नहीं उठ पाई है। कहा यह भी जा रहा है कि कम लीड नैतिक दबाव के चलते शाह भी मैदान में उतरकर दावा नहीं कर पा रहे हैं।

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पुनर्वास का इंतजार करने वालों की लंबी कतार:

लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होने वालों में पूर्व विधायक, जिपं उपाध्यक्ष, जिपं सदस्य, नपाध्यक्ष, महापौर, सभापति, पार्षद सहित कांग्रेस संगठन के कई वरिष्ठ पदाधिकारी भी शामिल रहे। हर नेता कुछ कमिटमेंट, कुछ आश्वासन और अधिकांश सपनों के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें जो जनप्रतिनिधि हैं वे तो लगभग नई पार्टी के मुताबिक सेट हो गए हैं। वहीं सक्रियता में पुरानों से ज्यादा नए भाजपाई दिखाई तो दे रहे हैं लेकिन अब तक मन मुताबिक पुनर्वास नहीं हो पाया है।

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