छिंदवाड़ा: ४५ दिनों में ३६ ने मौत को लगाया गले, युवा और बच्चे उठा रहे आत्महत्या जैसे घातक फैसले
- ४५ दिनों में ३६ ने मौत को लगाया गले
- युवा और बच्चे उठा रहे आत्महत्या जैसे घातक फैसले
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। खेलने-कूदने, खुशियां मनाने और पढऩे की उम्र में बच्चे आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे है। मासूमियत भरी उम्र में मौत को गले लगाने का विचार आना परिवार के लिए खौफनाक है। अधिकांश मामलों में सामने आया है कि गुस्सा, तनाव, अकेलेपन व डिप्रेशन के शिकार बच्चे और युवा ऐसे घातक फैसले ले रहे हैं। ऐसे नाजुक वक्त में माता-पिता या किसी अपने का साथ बेहद जरुरी है।
गुरुवार सुबह आदिवासी हॉस्टल में ९ वीं में अध्ययनरत १४ साल की छात्रा ने फांसी के फंदे पर लटककर अपनी जान दे दी। इस मामले में भी संभावना जताई जा रही है कि वह अकेलेपन और रूखे व्यवहार का शिकार थी, हालांकि पुलिस मर्ग कायम कर मामले की जांच कर रही है। पिछले ४५ दिनों यानी १ जनवरी से १५ फरवरी तक इसी तरह के अवसाद से ग्रसित ३६ लोगों ने जहर पीकर या फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह अपने आप में बड़ा आकंड़ा है।
आत्महत्या करने वालों में युवा अधिक-
जिला अस्पताल से मिले आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो अधिकांश मृतक २० से ३५ साल के बीच में है। जिन्होंने अलग-अलग कारणों से परेशान होकर जहर पीकर या फांसी लगाकर जान दे दी। इसके अलावा १३ साल के बच्चे से लेकर ७० साल तक के बुजुर्गों ने तनाव में आकर आत्महत्या जैसे कदम उठाए है।
आत्महत्या के कारण...
- डिप्रेशन, नशे के आदि, मानसिक बीमारी, व्यक्तित्व विकास से ग्रसित औसतन १५ से २५ प्रतिशत व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करते है।
- गंभीर शारीरिक बीमारी, मानसिक रोगियों में आत्मघाती विचारों की अधिकता होती है।
- बेरोजगारी, आर्थिक तंगी, पारिवारिक कलह, तलाक, प्रेम संबंधों में असफलता, परीक्षा में निराशाजनक परिणाम से अवसाद पैदा होता है।
परिवार को इन बातों का ध्यान रखना होगा-
- माता-पिता को बच्चे की मानसिक स्थिति को समझना होगा।
- यदि बच्चे का अचानक व्यवहार बदलता है और वह अकेला रहने लगे, तो उससे बात करें।
- सभी बच्चों में अपनी विशेषता होती है। उसकी क्षमता को समझे और उस आधार पर उसे पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करें।
- यदि कोई आत्महत्या का प्रयास कर चुका है तो उसे अकेला न छोड़े, निचली मंजिल में रखे और किसी तरह का घातक हथियार घर में न रखें।
- अवसाद ग्रसित मरीज को मानसिक विशेषज्ञ के पास ले जाकर उसका इलाज कराएं। सात से दस दिनों की दवाओं के सेवन से मरीज को आराम लगना शुरू हो जाता है।
- डॉ.पूनम ठाकुर
मानसिक एवं मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ, जिला अस्पताल