हिंदी दिवस विशेष: प्रसिद्ध साहित्यकारों व विचारकों का छिंदवाड़ा में हो चुका है आगमन

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-14 13:57 GMT

 डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। आधुनिक हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक पद्म विभूषण महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। महाकवि निराला ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती भी कहा था। वर्ष १९६५ में अगस्त माह में महादेवी वर्मा का छिंदवाड़ा आगमन हुआ था। इस दौरान वे हिन्दी प्रचारिणी समिति के पुस्तकालय, वाचनालय को देखने पहुंची थीं। यहां पर रजिस्टर में उन्होंने संदेश लिखा था कि-‘ छिंदवाड़ा की जनता वस्तुत: बधाई की पात्र है, जो अपनी सीमा में सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का विकास करती चलती है।’ साहित्य जगत में विशेष स्थान रखने वाले छिंदवाड़ा में महादेवी वर्मा सहित देश-विदेश के अनेक मूर्धन्य साहित्यकारों का आगमन समय-समय पर हुआ है। छिंदवाड़ा आए प्रसिद्ध साहित्यकारों द्वारा लिखे गए संदेश हिंदी प्रचारिणी में संग्रहित किए गए हैं। वर्ष १९७० में छिंदवाड़ा आए प्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश्वर ने यहां के रजिस्टर में अपने संदेश में छिंदवाड़ा आगमन के संबंध में लिखा था कि सतपुड़ा के बारे में भूगोल में पढ़ा था। जब नागपुर से छिंदवाड़ा आया तो सतपुड़ा की एक श्रेणी पार करके अजीब सी अनुभूति से भर गया...अपने देश के विभिन्न हिस्सों को देखने की लालसा और उस अनुभव की इच्छा हमेशा भीतर उमड़ती रहती है, पर अनजाने स्थानों में पहुंचकर कभी खोया-खोया सा महसूस करने लगता हूं। और तभी कहीं किसी दूर दराज हिस्से में कोई हिंदी सेवी संस्था, कोई हिंदी प्रचारक, कोई हिंदी मंदिर मिल जाता है तो लगता है अपने घर के आंगन में पहुंच गया।

बेल्जियम के कामिल बुल्के ने रामकथा पर किया था शोध

बेल्जियम के डॉ. कामिल बुल्के भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भारत आए। यहां पर उन्होंने हिंदी में साहित्य सृजन किया। उन्होंने रामकथा पर शोध भी किया था। भारत यात्रा के दौरान २८ अगस्त १९६६ को उनका छिंदवाड़ा आगमन हुआ था। इस दौरान यहां के साहित्यकारों ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था। इस संबंध में डॉ. कामिल बुल्के ने संदेश लिखा था-‘छिंदवाड़ा में हिंदी के प्रति जो उत्साह है वह आज के सफल आयोजन से स्पष्ट हो जाता है’

शहर में साहित्यकारों की प्रतिमाएं हैं स्थापित

अपनी रचनाओं से देशवासियों में स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी वर्ष १९२२ में छिंदवाड़ा आए थे। वहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व मूर्धन्य साहित्यकार सेठ गोविंददास का वर्ष १९५६ में छिंदवाड़ा आगमन हुआ था। माखनलाल चतुर्वेदी एवं सेठ गोविंददास की 

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