छिंदवाड़ा: जीत कर भी हार गया छिंदवाड़ा! कांग्रेस सातों सीट जीती पर प्रदेश में हार गई, भाजपा प्रदेशभर में जीती पर यहां खाता नहीं खोल पाई
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। जिला मुख्यालय में रविवार को रिजल्ट वाले दिन अजीब सा माहौल रहा। न ढोल बाजों की गूंज सुनाई दी, न ही मिठाइयां बांटकर खुशियां मनाई गई और न ही विजय जुलूस सडक़ों पर दिखाई दिए। सातों सीट जीतने वाली कांग्रेस के चेहरों से चमक गायब सी रही। दूसरी तरफ जो भाजपा दूसरे राज्यों में पार्टी की जीत पर यहां अपने कार्यालय में पटाखे जलाकर व मिठाई बांटकर खुशियां मनाते दिखी वह मध्यप्रदेश में पार्टी की बंपर जीत की खुशियां नहीं मना पाई। विधानसभा चुनाव के बाद ऐसा महसूस हो रहा कि जीतकर भी छिंदवाड़ा हार गया।
कांग्रेस के नजरिए से छिंदवाड़ा की हार देखें तो कहा जा सकता है कि छिंदवाड़ा-पांढुर्ना के वोटर यह मानकर चल रहे थे और वोटिंग भी इसी लिहाज से की कि कमलनाथ मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस का घोषित चेहरा हैं, प्रदेश में फिर छिंदवाड़ा की सरकार आएगी। विकास की संभावनाएं फिर बंपर होगी। लाडली बहना, किसान सम्मान निधि, मुफ्त अनाज जैसी योजनाओं के बावजूद और भाजपा के लुभावने संकल्प (घोषणा) पत्र पर ध्यान नहीं दिया। सातों सीट कांग्रेस की झोली में डाली, लेकिन प्रदेश ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया।
भाजपा के लिहाज से छिंदवाड़ा की हार को देखें तो प्रदेश भर में करिश्माई प्रदर्शन के साथ पार्टी प्रत्याशी जीते, १६५ सीटों के बंपर बहुमत के साथ पार्टी की पांचवी बार सरकार बनने जा रही है। ऐसे में पुरजोर कोशिशों के बाद पार्टी छिंदवाड़ा-पांढुर्ना से एक भी सीट नहीं जीती। झटका ऐसा कि प्रदेश में जीत की खुशियां भी नहीं मनी। अब सरकार में भागीदारी तो दूर भाजपाई चेहरा सदन में भी नहीं होगा। बाहरी तौर पर पूर्व विधायकों और संगठन के जरिए ही छिंदवाड़ा का सरकार से संबंध रह पाएगा।
एकतरह से तब भी हारा ही था छिंदवाड़ा:
- वर्ष २०१३ में भाजपा ने जिले में सात में से चार सीटें जीती थी। छिंदवाड़ा, चौरई, जुन्नारदेव और सौंसर से भाजपा के विधायक रहे। पूरे पांच साल सरकार में छिंदवाड़ा की भागीदारी की अटकलें रहीं लेकिन आखिर तक मौका नहीं मिल सका।
- वर्ष २०१८ में छिंदवाड़ा ने सातों सीट जिताकर कमलनाथ के तौर पर प्रदेश को मुख्यमंत्री दिया। महज १५ माह में ही कमलनाथ सरकार खुद के विधायकों के पाला बदलने से गिर गई। साढ़े तीन साल भाजपा की सरकार रही, लेकिन छिंदवाड़ा की सत्ता में भागीदारी नहीं रही।