मोती की खेती ने मराठवाड़ा के गरीब किसानों की बदल दी किस्मत, कमा रहे मोटा मुनाफा
मराठवाड़ा मोती की खेती ने मराठवाड़ा के गरीब किसानों की बदल दी किस्मत, कमा रहे मोटा मुनाफा
- मोती की खेती ने मराठवाड़ा के गरीब किसानों की बदल दी किस्मत
- कमा रहे मोटा मुनाफा
डिजिटल डेस्क, उस्मानाबाद। मराठवाड़ा के पानी की कमी के कारण फसल उगाने में असमर्थ किसानों ने मोती की खेती की ओर कदम बढ़ाया। इस कवायद ने उनकी किस्मत बदल दी। अब वे इससे अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। उस्मानाबाद जिले की तुलजापुर तहसील के शहापुर के एक गांव के किसानों ने मोती की खेती कर अन्य किसानों को भी राह दिखाई है। 2021 की शुरुआत में 10 किसानों ने एक छोटे से तालाब में त्रिवेणी मोती और मछली पालन का कार्य शुरू किया। इससे उन्हें इस साल 14 लाख रुपये की भारी कमाई हुई।
परंपरागत खेती से निराश किसान संजय नरसिंह पवार ने अपने भाइयों विजय एन. पवार और अजय एन. पवार के साथ अपने माता-पिता नरसिंह व शकुंतला व दादी त्रिवेणी पवार के साथ मोती की खेती शुरू की।
संजय पवार ने आईएएनएस को बताया, मैं मोती की खेती करने वाले डॉ. एम. कांबले व औरंगाबाद, चंद्रपुर और सोलापुर के कुछ किसानों से प्रेरित था। इन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया। पवार परिवार के पास जमीन का एक छोटा सा भूखंड था। उस पर उन्होंने अपने स्वंय के संसाधनों व सरकारी मदद से एक एकड़ का तालाब खोदा। जुलाई 2021 में दस किसानों ने मिलकर तालाब में जालों पर 25 हजार सीपियां लगाईं और 14 महीने के इंतजार के बाद, सितंबर 2022 में, 10 हजार जीवित सीप निकले और प्रत्येक में 2 चमकते मोती जड़े हुए थे। इन मोतियों ने उनकी दशा बदल दी।
मोती की चमकदार फसल को 400 रुपये में बेचा गया और 10 किसानों के लिए लगभग 40 लाख रुपये की कमाई हुई। पवार परिवार ने वर्ष 2022 में लगभग 7 लाख रुपए की लागत से 17 लाख रुपये कमाए। जबकि इसके पहले पारंपरिक खेती से परिवार ने 4 लाख रुपये की आय अर्जित की थी। मोती दुनिया भर में 2,500 से अधिक वर्षों से प्रतिष्ठित है और हर वर्ष इसका 18 बिलियन डालर का कारोबार होता है।
पवार औरंगाबाद स्थित इंडो पर्ल के प्रति आभारी हैं, जिसने उन्हें उनके पहले उद्यम में मदद की और खेती का मार्गदर्शन किया। हर महीने मोतियों की देखरेख की। 100 प्रतिशत बीमा की व्यवस्था की और फिर उनके लिए एक खरीदार की व्यवस्था की। उन्होंने कहा कि इस सफलता से उत्साहित होकर इस साल 40 किसानों ने और 50 हजार सीप लगाए हैं और दो और कंपनियों, सोलापुर के जीकेपी पर्ल फार्म और चंद्रपुर में नमो पर्ल फार्म के साथ टाई-अप किया है।
पवार बताते हैं, भारत में सफल फसल दर (जीवित सीप) 50 प्रतिशत है, हालांकि कुछ व्यक्तियों ने 70 प्रतिशत प्राप्त किया है। मुंबई स्थित जयपुर ज्वैलर्स के मालिक व अमेरिका में रहने वाले केतन कक्कड़ ने कहा कि मोती के आभूषणों सहित कीमती पत्थरों के उनके चमकदार संग्रह को 2010 में प्रतिष्ठित स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड स्विमसूट स्पेशल में प्रमुखता से दिखाया गया था। कक्कड़ ने कहा, मोती को शीर्ष 5 कीमती पत्थरों में स्थान दिया गया है - जिसमें हीरा, माणिक, पन्ना और नीलम शामिल हैं।
त्रिवेणी समूह के उपक्रम की सराहना करते हुए शिवसेना (यूबीटी) के किसान चेहरे किशोर तिवारी ने कहा कि वह अब इसे विदर्भ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बढ़ावा देंगे और आशा है कि यह संकटग्रस्त कृषि क्षेत्र के लिए उद्धार साबित हो सकता है और किसानों की आत्महत्या को रोकने में मदद करे। खेती का विवरण देते हुए पवार ने कहा कि तालाब को छाया प्रदान करने और वाष्पीकरण को रोकने के लिए तिरपाल की चादर से ढका हुआ है। एक स्टील की जाली पानी में क्षैतिज रूप से लटकी हुई है, जिसमें एक दर्जन सीप बंधे हुए हैं।
विजय पवार ने कहा, हर महीने, हम तालाब के पानी में लगभग 1 हजार स्पिरुलिना की गोलियां गिराते हैं। ये गोलियां शैवाल के विकास में मदद करती हैं और पीएच स्तर को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से ऑक्सीजन भी देती हैं। पवार कोऑपरेटिव के तकनीकी सलाहकार की मदद मोतियों में भगवान गणेश, भगवान शिव, अशोक चक्र, त्रिशूल, क्रॉस, 786, छत्रपति शिवाजी महाराज की डिजाइन भी बनाते हैं। वर्तमान में अनुमानित 4,000 से अधिक किसान सालाना मोती की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रे हैं।
गौरतलब है कि कृत्रिम मोती जापानी जौहरी कोकिची मिकिमोतो द्वारा 1900 के दशक की शुरुआत में विकसित किया गया और 1950 के दशक तक तक यह लोकप्रिय हो गया। भारत में आंध्र प्रदेश को मोतियों के कारोबार का केंद्र माना जाता है।
सोर्सः आईएएनएस
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