मंगल ग्रह पर मौजूद दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी को लेकर वैज्ञानिकों ने किया चौकाने वाला खुलासा, जानें इससे जुड़ा रहस्य
- मंगल ग्रह को लेकर वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा
- ग्रह पर मौजूद ज्वालामुखी से निकला था गर्म लावा
- जिससे हुआ झुर्रीदार टुकड़े का निर्माण
डिजिटल डेस्क, भोपाल। पृथ्वी की तरह ही अंतरिक्ष भी कई रहस्यों से भरा हुआ है। हमारे सौरमंडल में मौजूद कई ग्रहों में ऐसे-ऐसे राज छुपे हुए हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक जानना चाहते हैं। वह आए दिन अपने शोधों से इन ग्रहों के बारे में बड़े खुलासे करते रहते हैं। इस बीच शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह के बारे में एक चौकाने वाला खुलासा किया है। कहा जाता है कि मंगल पर करोड़ो साल पहले पानी मौजूद था। यहां भी धरती के जैसे ही कई महासागर मौजूद थे। ऐसा भी माना जाता है कि इन महासागरों के मध्य कई बड़े ज्वालामुखी भी थे। वैज्ञानिकों की इस थ्योरी को अब मान्यता मिलती दिख रही है। क्योंकि शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह में मौजूद सौर मंडल के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी ओलंपस मॉन्स के बारे में अध्ययन किया है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि पहाड़ के उत्तरी भाग के करीब हजारों लाखों साल पहले पहाड़ के शिखर से बहुत ही गर्म लावा निकला था। जिससे भूमि का एक झुर्रीदार टुकड़े का निर्माण हुआ होगा। शोधकर्ताओं का मानना है कि पहाड़ के आधार पर लावा बर्फ और पानी में चले गए होंगे जिसकी वजह से भूस्खलन हुआ। इनमें से कई भूस्खलन तो ज्वालामुखी प्वाइंट से करीब 1 हजार किमी दूर तक हुए हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि करोड़ों सालों में कठोर होने के कारण यह सिकुड़ गए होंगे। लेकिन मंगल ग्रह पर बनी इस तरह की धारीदार विशेषताओं पर अभी भी शोध रहा है। इस बीच सबसे बड़ा सवाल उभरकर यह सामने आ रहा है कि आखिर इन धारीदार आकृतियों के निर्माण में पानी की क्या भूमिका थी? बता दें कि वर्तमान समय में मंगल ग्रह एक रेगिस्तानी ग्रह बन चुका है। इसके ध्रुवों पर बर्फ के अवशेषों के अलावा पानी कहीं भी मौजूद नहीं है।
मंगल की सतह की नई तस्वीरों में शोधकर्ताओं ने कुछ टूटे टुकड़ों को देखा है, जिन्हें लाइकस सुलसी के नाम से जाना जाता है। इन तस्वीरों को यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी के आर्बिटर ने खींचा था जो कि मंगल पर बीते कई सालों से पानी की खोज कर रहा है। इन तस्वीरों में शोधकर्ताओं को ज्वालामुखी के आसपास कई भूवैज्ञानिक सबूत मिले हैं। जिनसे कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि वह चट्टानों या फिर एक एक ढलानुमा तटरेखा के बारे में जानकारी देते हैं जहां एक बड़ा गड्ढा स्थित है।