कब्रें जिनमें शव के साथ रखे जाते थे घोड़े,बैल और सोने चांदी के आभूषण

कब्रें जिनमें शव के साथ रखे जाते थे घोड़े,बैल और सोने चांदी के आभूषण

Bhaskar Hindi
Update: 2019-12-17 08:20 GMT
कब्रें जिनमें शव के साथ रखे जाते थे घोड़े,बैल और सोने चांदी के आभूषण

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर ईसा पूर्व 2500 साल पहले महापाषाण काल से जुड़ा हुआ है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में यहां उस कालखंड की 1496 कब्रें मिली हैं। इस तरह की कब्रें भारत में सबसे ज्यादा विदर्भ में 91 स्थानों पर पाई गई हैं। इसमें नागपुर जिले में सर्वाधिक हैं। चंद्रपुर, भंडारा जिले में भी ऐसे ही महापाषाण काल की कब्रें मिली हैं। हिंगना तहसील अंतर्गत रायपुर और टाकलघाट सहित कलमेश्वर मार्ग पर माहुरझरी, सावनेर के खापा, नायकुंड और भागीमारी गांवों में इस तरह के कब्र बड़े पैमाने पर मिले हैं। यह सभी जानकारियां महाराष्ट्र शासन के महाराष्ट्र राज्य गैजेटियर में प्राचीनकाल इतिहास के खंड-1 के पेंज नंबर 95 से 115 से ली गई हैं।

गोल आकार की कब्रें
ये कब्रों का आकार गोल है। उस समय के अनुसार कब्र में मनुष्य के शव के साथ जीवनोपयोगी वस्तुएं रखी जाती थीं। शव दफनाने के बाद कब्र के आसपास चट्टानों जैसे गोल आकार के पत्थर रखे जाते थे। इनका व्यास 10 सेमी से 30 सेमी के आसपास है। सभी की गोलाई एक जैसी नहीं है। रायपुर में हुई खुदाई में कब्र के अंदर का क्षेत्रफल 140 सेमी लंबा और 125 सेमी चौड़ा है।

घरों का क्षेत्रफल
ढाई हजार साल पहले महापाषाण युग में नागपुर जिले के टाकलघाट में 22500 चौ.मी. क्षेत्र में 600 लोग रहते थे। नायकुंड में 1 लाख चौ.मी. में 2500 लोग रहने का अनुमान है, वहीं भागीमारी में 82 हजार चौ.मी. में 2000 लोग रहने की बात शोधकर्ताओं ने कही है। इसी तरह वर्धा जिले के खैरवाड़ा में 1 लाख 7 हजार चौ.मी. क्षेत्र में 2500 लोगों की बस्ती होने की बात कही गई। एक एकड़ में 100 लोग रहने का अनुमान लगाया गया है।

पूर्व-पश्चिम दिशा में द्वार  महापाषाण युग में गांव के लोग चौरस घर बनाकर और निमभटके लोग गोल झोपड़ी बनाकर रहते थे। हिंगना तहसील के टाकलघाट गांव की बस्ती ईसा पूर्व 505 से 605 साल पुरानी है। इसके अलावा 2524 से 2624 साल पुरानी बस्ती होने की बात कही गई है। शोध में बताया गया है कि 3 चौरस मीटर के दो कमरों में पूर्व, पश्चिम दिशा से एक द्वार थे। रायपुर, जुनापनी में पत्थर पर टोकरी के निशान मिले हैं। इस तरह के कब्र यूरोप में भी पाए गए हैं।

कब्र के अंदर अवशेष
महापाषाण काल की इस स्मारक का उत्खनन करने पर कब्र से इंसानों की हड्डियां, घोड़े, मवेशी जैसे बैल, भैस, मेंढी, पंछियों की हड्डियां मिली हैं। मिट्टी के बर्तन, कंघी, तलवार, भाले, त्रिशूल, हसिया,  घोड़े के मुंह के कवच, सोने, चांदी के आभूषण आदि सामान इन कब्रों में मृत व्यक्ति के साथ मिले हैं। माहुरझरी में 12 में से 4 कब्रों में घोड़े के अवशेष और अलंकार खापा में मिले हैं।

एक ही कब्र में कई शव
 इस गोल आकार की कब्रों में कहीं-कहीं एक से अधिक व्यक्ति के दफनाने की पुष्टि हुई है। माहुरझरी में एक ही गड्ढे में दो-दो शव मिलने का खुलासा हुआ है। गोल पत्थरों के बीच सबको दफन कर सकें, इतना गड्ढा कर उसमें मृत व्यक्ति या उसकी अस्थि को दफनाया गया। साथ ही उसके जीवनोपयोगी सामान और प्राणी को भी दफनाया गया है। ऊपर से ढीग लगाकर कब्र पर गोल बड़े पत्थर रखे गए हैं।

प्रतिष्ठित व्यक्तियों की स्मारक
 उत्खनन के दौरान कुछ स्मारकों से अंलकार भी मिले हैं। इन स्मारकों को किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति का माना गया है। किसी विशेष स्मारक में से घोड़े की हड्डियां, घोड़े के आभूषण, मिट्टी के बर्तन, औजार, मवेशियों के अवशेष आदि मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया कि समाज का प्रमुख या विशेष व्यक्ति लड़ाई में या प्राणियों के हमले में मरने की वजह से उसका शरीर नहीं मिलने पर उसकी अस्थियों के साथ यह महत्वपूर्ण सामग्री व प्राणियों को दफन किया गया है। रायपुर गांव के वागदरा, इसासनी स्थित  विशेष स्मारकों के पास गोल आकार में पत्थरों की बड़ी-बड़ी चट्टानें रखी हुई हैं। अन्य कब्रों के पास बड़े पत्थर गोलाई में रखे गए हैं।

होते थे कुशल लोहार
विदर्भ और आंध्रप्रदेश में कोलाम लोगों के उदाहरण मिलते हैं। कोलाम यह निमभटके लोग होकर शिकार और खेती पर जीवन जीते थे। जिस खेड़े में ये मुकाम करते थे, उस गांव के प्रमुख से इजाजत लेते थे। गांव से थोड़ी दूर पहाड़ी क्षेत्र पर रहने के लिए इन्हें जगह दी जाती थी। वहां गाेल झोपड़ी बनाकर 4-5 साल रहते थे। ये लोग कुशल लोहार थे। ग्रामवासियों को लोहे के अौंजार देकर मिट्टी के बर्तन लेते थे, जो उत्खनन में मिले हैं।

पशुपालन करते थे
 महापाषाण काल के लोगांे का मुख्य आहार मांस था। वह बारिश में खेती करने के लिए एक जगह रहते थे। बाकी आठ महीने भटकते रहते थे। उदर निर्वाह के लिए पशुपालन और खेती  पर निर्भर थे। जंगली जानवरों का शिकार कर खाते थे। खेत से बटाना, उडद, गेहूं, कुलथ आदि अनाज पैदा करते थे। इसका प्रमाण भागीमारी में जले हुए अनाज से मिला है। टाकलघाट, नायकुंड की बस्ती से गाय, भैस, मेंढी, बकरी, कुत्ता, डुकर आदि पालतू प्राणियों की हड्डियां िमली हैं। जगली प्राणियों में चितल, सांभर, रानडुकर आदि के अवशेष िमले हैं। खापा में कब्र के अंदर प्राणियों की हड्डियां मिली हैं। 

सोने-चांदी के आभूषण
उत्खनन में तांबे की चूड़ियां मिली हैं। घोड़े के गले में तांबे का घंटा खापा माहुरझरी में मिला है। घोड़े के मुंह पर लगने वाले तांबे का पतला अलंकार मिला हैै। जुनापानी में सोने-चांदी की चूड़ी और वेढणी मिली है। विदर्भ में सोना मिलने की जगह भंडारा में बताई गई है।  

बनाते थे लाेहे के औजार
 उस वक्त लोहा और तांबे के औजारे हुआ करते थे। माहुरझरी में मिली खंजर में तांबे की मुट्ठी और लोहे का नोकदार पत्ता था। लौहयुग के प्रारंभ के बाद भी तांबे का उपयोग होता था। विविध प्रकार के औजार और धार्मिक विधि के लिए तथा दैनंदिन व्यवहार की वस्तुएं बनाई जाती थीं। शस्त्रों में तलवार, खंजर, भाले, तिराग्रे, कुल्हाड़ी, त्रिशूल आदि शामिल है।

मैंने की है कब्रों की खुदाई
मैं यहां रोजाना अपने मवेशियों को चराने के लिए लेकर आता था। 5-6 साल पहले 2 अधिकारी आए थे। उन्होंने हमसे यहां की इस कुछ समाधियों की खुदाई कराई थी। मेरे साथ काशीनाथ भगत भी खुदाई करते थे और दो महिला मजदूर भी थीं। 5-6 गड्ढों की खुदाई की थी। उसमें मानव के कंकाल, दांत, हड्डियां आदि साहित्य िनकला था। यहां पर और भी समाधियां थीं, जो िक नष्ट होती जा रही हैं।
कवडू जाधव, रायपुर हिंगना, निवासी

रायपुर की कब्रें इसासनी वागदरा में
महापाषाण युग में जिस रायुपर का उल्लेख किया गया है, वह गांव हिंगना तहसील का प्रमुख गांव है, जिसे सब हंिगना ही समझते हैं। इस गांव की सीमा पर लगे पहाड़ी क्षेत्र वागदरा इसासनी में ऐसी असंख्य कब्रे हैं। रायपुर गांव में प.स. कार्यालय के सामने भी इस तरह भी कब्र होने की बात कही जाती थी। रायपुर गांव का महापाषाण युग का कब्रिस्तान इसासनी, वागदरा में पहाड़ी क्षेत्रों में फैला है, जहां बिल्डरों ने फ्लॉट डालकर स्मरकों के पत्थर हटा दिए। यह सम्मानित लोगों की स्मारकें हैं। अभी 20-25 स्मारक बचे हुए हैं, जिसका जतन जरूरी है। मुझे यहां घोड़े की आंख का पान, घंटी आदि मिले हैं, जिसका मैंने जतन किया है।
धर्मेश पाटील, संस्थापक, सत्य शोधक समाज, रिसर्च ग्रुप 

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