राजनीति में भरोसा कम ही कायम रह पाता है - अटल बहादुर सिंह

Trust in politics is rarely sustained - Atal Bahadur Singh
राजनीति में भरोसा कम ही कायम रह पाता है - अटल बहादुर सिंह
राजनीति में भरोसा कम ही कायम रह पाता है - अटल बहादुर सिंह

डिजिटल डेस्क, नागपुर। महानगरपालिका की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में रहे पूर्व महापौर अटलबहादुर सिंह का मानना है कि राजनीति में भरोसा कम ही कायम रह पाता है। समर्थन देने का भरोसा देकर भी दांव चले जाते हैं। लक्ष्य केवल सत्ता रहता है। शहर की पहली महिला महापौर कुंदा विजयकर चुनी गई थीं।  महापौर पद आरक्षित नहीं था। विजयकर ऐसे दौर में महापौर चुनी गईं थीं, जब महिला जनप्रतिनिधियों को राजनीति में कम ही स्थान मिल पाता था। विजयकर के महापौर चुने जाने के मामले का स्मरण करते हुए श्री सिंह कहते हैं कि महिला महापौर चुनने  के लिए भी जमकर राजनीति हुई थी। समान नाम की महिला को सहयोगी संगठनों ने उम्मीदवार बना दिया था। अन्य सहयोगियों को भरोसा दिलाया गया, तब कुंदा विजयकर महापौर चुनी गई थीं। 

संपादकीय सहयोगियों से चर्चा
श्री सिंह दैनिक भास्कर के संपादकीय सहयोगियों से चर्चा कर रहे थे। 1998 में श्री सिंह के नेतृत्व के लोकमंच व राष्ट्रीय जनता दल के सहयोग से कुंदा विजयकर महापौर चुनी गई थीं। यह वह दौर था, जब मनपा में किसी की दल को बहुमत नहीं था। रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया का प्रभाव था। प्रकाश आंबेडकर, रा.सु गवई, जोंगेद्र कवाड़े व रामदास आठवले के समर्थकों का गुट सक्रिय था। संख्याबल के आधार पर रिपाई के नगरसेवक मनपा की सत्ता के लिए निर्णायक होते थे। श्री सिंह बताते हैंं कि महापौर चयन को लेकर शरद पवार व रा.सु गवई के अलावा अन्य नेताओं ने चर्चा की थी। बैठक में नाम तय हुआ था।

सहयोग का भरोसा दिलाया गया था। लेकिन मतदान के पहले रिपाई के एक गुट ने कुंदा गजभिये को उम्मीदवार बनाया। संबंधित नेताओं से कहा गया कि महापौर पद के लिए कुंदा नाम पर सहमति बनी है, वह कुंदा विजयकर हैं, न कि गजभिये। बात नहीं सुनी गई। तब उपमहापौर पद के रिपाई के उम्मीदवार सूर्यकांत भगत से बात की गई। समर्थन के लिए भरोसे पर निर्भर रहने के बजाय मतदान के समय कुंदा विजयकर ने मतदान केंद्र पर मतदान पत्र दिखाते हुए भगत से कहा गया कि उन्हें ही मतदान किया गया है। मतदान को सार्वजनिक करने के मामले में न्यायालयीन अड़चन आने की नसीहत मिली थी, लेकिन किसी की परवाह नहीं की गई। लिहाजा भगत समर्थक नगरसेवकों ने भी महापौर पद के लिए कुंदा विजयकर को मतदान किया।

सभागृह में पिस्टल
एक किस्से का जिक्र करते हुए श्री सिंह कहते हैं कि सुलझे हुए राजनीतिज्ञों को  संरक्षक की भूमिका में अक्सर रहना पड़ता है। शेषराव वानखेड़े विधानपरिषद के सभापति थे, तब सदस्य प्रमोद नवलकर पिस्टल लेकर सभागृह में बैठे थे। अन्य सदस्यों ने हंगामा किया। सभापति ने नसीहत देते हुए पिस्टल अपने पास रख ली। सभागृह की कार्यवाही समाप्त होने के बाद नवलकर को पिस्टल लौटा दी। मामले की जांच नहीं की। 

गदा लेकर दौड़े धोटे
विदर्भवादी नेता जांबुवंतराव धोटे की राजनीति का जिक्र करते हुए कहते हैं कि धोटे के लिए वास्तविकता व अभिनय मंे अधिक अंतर नहीं रहता था। रामलीला में धोटे हनुमान का पात्र निभा रहे थे। किसी की बात पर उन्हें गुस्सा आया। वे गदा लेकर उस व्यक्ति के पीछे दौड़े। सड़क पर व्यक्ति का पीछा करके उसकी पिटाई की गई थी। कई दर्शकों के लिए वह वाकया अभिनय से अधिक नहीं था।

अपनी गलती याद
अनुशासन पालन के मामले पर श्री सिंह कहते हैं-एक बार स्कूटर से जाते समय मीठा नीम दरगाह के पास हादसा हुआ था। वह मेरी गलती थी। 

शिक्षा अधिक महत्वपूर्ण
संसाधन से अधिक शिक्षा को अधिक महत्वपूर्ण ठहराते हुए वे कहते हैं, पहले मनपा शालाओं में 70 हजार बच्चे अध्ययन करते थे। अब 20 हजार के करीब है। बच्चों को फुटपाथ नहीं पोशाक, बैग आदि देने की आवश्यकता है। 

Created On :   6 March 2020 12:58 PM IST

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