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दिल्ली में आजादी बाद से वॉटर बॉडीज की संख्या घटी, बढ़ती आबादी से हुई विलुप्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली को झीलों का शहर बनाने के लिए 250 जलाशयों और 23 झीलों को जीवंत किया जा रहा है लेकिन इतिहासकारों की मानें तो जिन गड्ढों में पहले पानी इकट्ठा हुआ करता था, उधर लोगों के बसने से धीरे धीरे जलाशयों और झील विलुप्त होती चली गई। जानकारी के अनुसार, दिल्ली में करीब एक हजार वॉटर बॉडीज हुआ करती थीं, जिनकी संख्या घटकर अब करीब 400 रह गई है।
इतिहासकारों की मानें तों 1947 के दौरान दिल्ली की आबादी 9 लाख थी, 3 लाख मुसलमान थे। बाद में 1948 के आखिर तक आबादी 6 लाख रह गई। उसके बाद माइग्रेंट के आने से दिल्ली की आबादी 14 लाख हो गई। दिल्ली में आजादी के बाद से बढ़ती आबादी के कारण झीलों व तालाबों का गायब होना शुरू हुआ और टाउन प्लानर्स ने जमीन के प्राकृतिक स्रोत को बदलने का प्रयास किया जो संभव नहीं था। वहीं पानी वाली जगहों पर लोगों को बसाने के कारण झीलें गायब हुई।
इतिहासकार सुहेल हाश्मी नें आईएएनएस को बताया कि, 1947 में दिल्ली में करीब 200 से अधिक वॉटर बॉडीज थी, दिल्ली अरावली के ऊपर बसी है, इसलिए दिल्ली चट्टानी है। करीब हर गांव में एक या दो तालाब थे, उसके बाद बड़ी बड़ी वॉटर बॉडीज रही हैं।
दिल्ली में एक अनंगपाल ने एक तालाब बनाया था, कुछ वक्त तक उसका कुछ पता नहीं था लेकिन अब एक झील मिली है जिसे अनंग ताल झील कहते हैं। इसके बाद उनके भाई सूरज पाल का बनाया हुआ सूरज कुंड झील है।
खिड़की मस्जिद के पास फिरोज तुगलक ने एक झील बनाई थी, जहां अब डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है। 1920 तक यहां झील थी, तो इस तरह की झील बहुत थी। देश के आजाद होने के बाद झीलों पर अवैध कब्जा हुआ और घर बनते चले गए। इस कब्जे में सभी लोग शामिल रहे हैं।
उन्होंने आगे जिक्र किया कि, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एन्ड कलचरल हेरिटेज की एक 1994 के करीब की एक रिपोर्ट है, जिसमें खोई हुई वॉटर बॉडीज का जिक्र है कि यदि इनको पुनर्जीवित कर दिया जाए तो दिल्ली में पानी की कमी पूरी हो जाएगी।
उन्होंने आगे कहा, मॉडल टाउन, जहांगीरपुरी और नजफगढ़ में एक एक बहुत बड़ी झील थी, जो अंग्रेजो के समय में सूख गई थी। इसमें स्वागत मॉडल टाउन वाली झील थोड़ी विकसित होने लगी है।
इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज से मनु भटनागर के मुताबिक, 1950 के दौरान शरणार्थी की संख्या में इजाफा हुआ, क्यूंकि यही सुविधा मिलती थी तो अन्य लोग भी यहीं बसने लगे। दिल्ली की वॉटर बॉडीज छोटी हैं, इसमें कुछ झील थी, तो इनका दायरा कम होने लगा वहीं उस समय इनकी अहमियत भी कम समझी जाती थी। उस वक्त पानी की कमी नहीं थी। दिल्ली में करीब 400 वॉटर बॉडीज हैं, जो की अच्छी स्तिथि में नहीं हैं।
दिल्ली सरकार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को झीलों के शहर के तौर पर बनाने का प्रयास कर रही है। बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए जलाशयों को जीवित किया जा रहा है। झीलों पर पिकनिक स्पॉट, दर्शनीय स्थल, खेलकूद के अलावा सुबह-शाम सैर और शारीरिक व्यायाम करने वाले लोगों के लिए भी एक बेहतर जगह होगी। झील कार्बन भंडारण के लिए एक सिंक के रूप में भी काम करेगी। पौधों, पक्षियों और जानवरों की कई प्रजातियों के लिए आशियाना बनेगी। झील से आसपास की आबोहवा भी साफ होगी।
इससे महानगर की बढ़ती आबादी के लिए पानी की डिमांड और सप्लाई के अंतर को कम करने के अलावा गर्मी के चरम के दौरान तापमान को कम करने में भी मदद मिलेगी। आसपास के लोगों को भी राहत मिलेगी और वातावरण में सुधार के साथ हरियाली भी बढ़ेगी।
दिल्ली सरकार अपने पहले चरण में सरकार की ओर से 250 जलाशयों और 23 झीलों को जीवंत किया जा रहा है। इसका उद्देश्य शहरी बाढ़ को रोकना और अवरुद्ध नालियों से बचने के लिए विभिन्न जलाशयों का निर्माण करना है। दिल्ली सरकार सस्टेनेबल मॉडल का उपयोग करके झीलों का कायाकल्प कर रही है। झीलों के आस-पास पर्यावरण तंत्र को जीवंत करने के लिए देसी पौधे लगाए जा रहे है। साथ ही सभी जल निकायों को सुंदर रूप देने की दिशा में लगातार मेहनत की जा रही है।
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Created On :   18 Sept 2022 12:00 PM IST