सिकलसेल में "ह्यूमन जीनोम एडिटिंग’ आशा की किरण
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। सिकलसेल में "ह्यूमन जीनोम एडिटिंग’ एक उम्मीदभरी किरण है। दुनिया में जानलेवा सिकलसेल रोग से पीड़ित लाखों लोगों को स्थायी इलाज की आवश्यकता है। भारत में 14 लाख से ज्यादा मरीज इस बीमारी से मुक्त होने का इंतजार कर रहे हैं, इसलिए बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन और जीन एडिटिंग थेरेपी को विकसित करने और प्रचारित करने की जरूरत है। यह उपचार आम पीड़ितों की पहुंच के बाहर है। भारत ने 2017 में उपचार की पद्धति विकसित करने की शुरुआत की है। इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. देबोज्योति चक्रवर्ती निरंतर शोध कर रहे हैं। ऐसा गौतम डोंगरे ने बताया।
लंदन में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन ‘ह्यूमन जीनोम सिक्वेसिंग’ में भारत से प्रतिनिधित्व करने के लिए नागपुर निवासी गौतम डोंगरे को आमंत्रित किया गया। गौतम डोंगरे नेशनल एलायंस ऑफ सिकलसेल के सचिव व ग्लोबल एलायंस ऑफ सिकलसेल डिजीज ऑर्गनाइजेशन के सदस्य हैं। िद सोसाइटी ऑफ लंदन, दि यूएस नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेस एंड मेडिसिन, दि यूके अकादमी ऑफ मेडिकल साइंसेस, दि वर्ल्ड अकादमी ऑफ साइंसेस यूनेस्को के संयुक्त तत्वावधान में यह तीसरा अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन पिछले दिनों आयोजित किया गया था। भारत के प्रतिनिधि के रूप में डोंगरे ने ‘जीन एडिटिंग’ विषय पर अपने विचार रखे।
Created On :   15 March 2023 12:43 PM IST