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अशांति के बीच, धूमधाम से मनाया जाएगा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव का प्रतीक करगा उत्सव
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- 16 अप्रैल को उत्सव की तैयारी
डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। सामाजिक अशांति और मुस्लिम व्यापारियों एवं मूर्तिकारों के बहिष्कार के आह्वान के बीच, भारत की सिलिकॉन वैली बेंगलुरु वार्षिक करगा उत्सव मनाने के लिए तैयार है, जिसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव और अखंडता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
करगा उत्सव 200 से अधिक वर्षों से मनाया जा रहा है, जिसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रेम एवं सद्भाव का प्रतीक भी माना जाता है। हिंदू संगठनों द्वारा मुस्लिम समुदाय के सदस्यों और दरगाह से जुड़े अनुष्ठानों को उत्सव से हटाने के दबाव के बावजूद, 16 अप्रैल को पूर्ण पैमाने पर उत्सव की तैयारी चल रही है। करगा उत्सव समिति ने कहा है कि चाहे कुछ भी हो, सभी परंपराओं को करगा उत्सव के दौरान जारी रखा जाएगा।
उत्सव के हिस्से के रूप में, परंपराओं के अनुसार, मुस्लिम धार्मिक नेताओं और मौलवियों का एक समूह गुरुवार को श्री धर्मराय स्वामी मंदिर में पहुंचा और करागा उत्सव समिति के सदस्यों को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कमेटी को बेंगलुरु के बालेपेट स्थित मस्तान साब दरगाह पर जुलूस निकालने का न्योता दिया। करगा उत्सव समिति के अध्यक्ष सतीश ने कहा कि उत्सव पहले की तरह ही आयोजित किया जाएगा और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। सैकड़ों वर्षों की परंपरा के अनुसार जुलूस बालेपेट में मस्तान साब दरगाह तक जाएगा। उन्होंने कहा, मस्तान साब दरगाह के मौलवी ने मंदिर में आकर इस बारे में बात की थी।
भाजपा विधायक उदय गरुड़चार ने भी हिंदू-मुस्लिम एकता की प्रतीक परंपराओं को बनाए रखने के लिए अपना समर्थन देने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा, यह सवाल सामने आया है कि करगा जुलूस मस्तान साब दरगाह जाना चाहिए या नहीं। यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और इसे उसी तरह बनाए रखा जाना चाहिए। विधायक गरुड़चार ने आगे कहा है कि एक हिंदू के रूप में वह मस्तान साब दरगाह जाने के लिए करगा जुलूस में हिस्सा लेंगे। करगा देवता की पूजा के लिए दरगाह का प्रबंधन भी तैयार है। उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। हिंदू कार्यकर्ताओं का कहना है कि दरगाह पर जाने वाले करगा जुलूस की रस्म हिंदू समुदाय पर जबरदस्ती थोपी गई और इसे रोका जाना चाहिए।
करगा उत्सव बेंगलुरु के श्री धर्मरायस्वामी मंदिर में नौ दिनों तक आयोजित किया जाता है। करगा के दिन शाम ढलने के ठीक बाद, महिला पोशाक पहने एक पुजारी एक रंगीन जुलूस का नेतृत्व करता है। जुलूस में तलवारें लहराने वाले थिगलर समुदाय (एक योद्धा समुदाय के लोग) के सैकड़ों सदस्य, बच्चों सहित शामिल होंगे। महिलाएं और भक्त अपने सिर पर मिट्टी के बर्तन लेकर चलते हैं। पुजारी फूलों से सजी पिरामिड जैसी आकृति को ले जाता है और जुलूस का नेतृत्व करता है। जुलूस मस्तान साब दरगाह में 18वीं सदी के एक मुस्लिम संत की समाधि पर जाता है। आदिशक्ति के रूप में द्रौपदी की वापसी को चिह्न्ति करने के लिए हर साल करगा उत्सव मनाया जाता है।
आदिशक्ति के प्रतीक करगा को ले जाने वाला पुजारी, दरगाह के अंदर प्रदक्षिणा (घड़ी की दिशा में परिक्रमा करने का संस्कार) के तीन चक्कर लगाएगा। इसके बाद मुस्लिम समुदाय के सदस्य करगा देवता की पूजा करेंगे। करगा उत्सव में सभी जातियों के लोग भाग लेते हैं। पिछले दो वर्षों में, करगा उत्सव को कोरोना महामारी के कारण बेहद साधारण समारोह के रूप में मनाया जा रहा है। हालांकि, इस साल, हिजाब, हलाला जैसे विवादों के बीच बेंगलुरु पूर्वजों के उस त्योहार की प्रतीक्षा कर रहा है, जो सांप्रदायिक सद्भाव और शांति का प्रतीक है।
(आईएएनएस)
Created On :   7 April 2022 9:30 PM IST