लोकसभा चुनाव 2024: प्रधानमंत्री मोदी की वीवीआईपी सीट है वाराणसी, जानिए वाराणसी सीट का चुनावी इतिहास

प्रधानमंत्री मोदी की वीवीआईपी सीट है वाराणसी, जानिए वाराणसी सीट का चुनावी इतिहास
  • 2009,2014, और 2019 में वाराणसी को बीजेपी ने जीता
  • बीजेपी का गढ़ बन चुकी है वाराणसी लोकसभा सीट
  • मोदी की संसदीय सीट की देशभर में चर्चा

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तरप्रदेश का वाराणसी संसदीय क्षेत्र यूपी राज्य के साथ साथ पूरे देश में सबसे चर्चित क्षेत्र है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एंट्री वाराणसी लोकसभा सीट में हुई है तब से यह क्षेत्र और अधिक वीवीआईपी बन गया है। नरेंद्र मोदी के वाराणसी संसदीय क्षेत्र से सासंद बनने के बाद आस पास इलाके की अन्य सीटें भी चुनाव में प्रभावित होती हैं। यूपी के साथ साथ बिहार की कुछ संसदीय सीटों पर इसका असर पड़ता है। यूपी और बिहार की चुनावी राजनीति में वाराणसी एक केंद्र बन गया है। भाजपा के कई दिग्गज नेता तो पूर्वांचल की राजनीति वाराणसी से ही कंट्रोल करते हैं।

आगामी लोकसभा चुनाव शुरू होने में कुछ महीने ही बचे हैं। देश में सबसे अधिक 80 सीट होने के नाते यूपी सियासी राजनीति में काफी अहम भूमिका निभाता है। कहा भी जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है। वाराणसी संसदीय क्षेत्र यूपी की सबसे अधिक वीवीआईपी सीटों में शुमार है। पीएम मोदी वाराणसी से दो बार लगातार सांसद के तौर पर निर्वाचित हुए हैं। मई 2024 में होने लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के वाराणसी संसदीय सीट से उतरने पर पूरी दुनिया का फोकस इस सीट पर होगा। पिछले चार आम चुनावों से वाराणसी बीजेपी का गढ़ बन चुकी है। 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने बीजेपी उम्मीदवार को मात दी थी। उसके बाद 2009,2014, और 2019 में बीजेपी कैंडिडेट की वाराणसी लोकसभा सीट से जीत हुई है। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी ने यहां से जीत हासिल की थी।

मोदी बनाम केजरीवाल

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी को प्रत्याशी घोषित किया था। चुनावी नतीजों में भाजपा और मोदी की यहां से ऐतिहासिक जीत हुई। मोदी ने आप के प्रत्याशी अरविंद केजरीवाल को साढ़े तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से मात दी थी। तब मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे, जबकि केजरीवाल के खाते में कुल 2,09,238 वोट आए। वहीं कांग्रेस, सपा, बसपा के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई ।

2019 में भाजपा की प्रचंड जीत

2019 के लोकसभा चुनाव में भी वाराणसी संसदीय क्षेत्र से पीएम मोदी की बंपर जीत हुई, इस बार उन्हें 2014 के आम चुनाव से भी अधिक वोट मिले थे। पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने वाराणसी सीट पर एकतरफा जीत हासिल की। भाजपा के पक्ष में इस बार कुल 6,74,664 वोट पड़े। जबकि, समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी शालिनी यादव को कुल 1,95,159 वोट मिले। इसके अलावा कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय के खाते में कुल 1,52,548 वोट डाले गए। खास बात तो यह रही कि 2019 के चुनाव में पीएम मोदी वाराणसी प्रचार करने भी नहीं गए उसके बावजूद पीएम मोदी को प्रचंड जीत मिली।

वाराणसी में सपा-बसपा आज तक नहीं जीते

वाराणसी में अब तक कुल 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं। जिसमें से सात बार कांग्रेस और सात बार भाजपा ने चुनाव जीता है। एक-एक बार सीपीएम और जनता दल के प्रत्याशी भी चुनाव जीत चुके हैं। इसके अलावा भारतीय लोकदल भी एक बार वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुका है। संसदीय चुनावी इतिहास में सपा-बसपा ने यहां से एक बार भी जीत का स्वाद नहीं चखा।

वाराणसी में कुल कितनी विधानसभा सीटें?

वाराणसी लोकसभा सीट में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें वाराणसी उत्तरी, वाराणसी दक्षिण और वाराणसी कैंट, रोहनिया और सेवापुरी की सीट शामिल हैं। इन पांचों विधानसभा सीटों में रोहनिया और सेवापुरी ग्रमीण क्षेत्र की सीटें हैं।

वाराणसी विधानसभा सीटों की वर्तमान स्थिति:

सीट का नाम विधायक पार्टी

वाराणसी उत्तरी रवींद्र जायसवाल भाजपा

वाराणसी दक्षिण नीलकंठ तिवारी भाजपा

वाराणसी कैंट सौरभ श्रीवास्तव भाजपा

रोहनिया सुनील पटेल अपना दल

सेवापुरी नील रतन सिंह पटेल भाजपा

जब बदले के लिए मुख्तार अंसारी ने दिया कांग्रेस को समर्थन

16 वें लोकसभा चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी को उतारने की घोषणा की गई तब कई राजनीतिक पार्टियों का चुनावी समीकरण बिगड़ गया था। नरेंद्र मोदी के सामने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद चुनौती देने के लिए उतर गए थे। उनके अलावा कांग्रेस से अजय राय मैदान में उतरे थे। वहीं सपा ने कैलाश चौरसिया और बसपा ने विजय जायसवाल को वाराणसी सीट से उतारा था।

आइए एक बार 2014 से ठीक पहले 2009 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालते हैं। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय राय की वजह से मुख्तार अंसारी को मुरली मनोहर जोशी के हाथों सिर्फ 17,000 वोटों से हार झेलनी पड़ी थी। इस चुनाव में मुरली मनोहर जोशी को 2,03,122 वोट मिले, मुख्तार अंसारी को 1,85,911 वोट मिले और अजय राय को 1,23,874 वोट मिले थे। इस लोकसभा चुनाव के प्रचार के बीच राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा ने खूब शोर मचाया। कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी और मुरली मनोहर जोशी के बीच कड़ी टक्कर को देखते हुए कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय के समर्थकों ने एन वक्त पर भाजपा को वोट देना शुरू कर दिया था। जिससे मुख्तार अंसारी न जीत पाए। मुख्तार अंसारी ने हार का बदला अगले आम चुनाव में लेने की ठान ली ।

उस चुनाव में मुख्तार अंसारी के साथ जो कुछ भी घटा उसका बदला मुख्तार ने अगले आम चुनाव में लिया। साल 2014 के आम चुनाव में मुख्तार अंसारी ने अजय राय को अपना समर्थन देने का फैसला कर दिया। असल में मुख्तार अंसारी हराना तो मोदी को ही चाहता था। लेकिन उसका असली टारगेट तो अजय राय को हराना था। अजय राय को अपना समर्थन देने से उनको मिलने वाले ब्राह्मण वोटर्स का भी वोट छिन गया। इस तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन सवा लाख वोट पाने वाले अजय राय को मात्र 75 हजार वोट ही मिल सके।

इतने दिग्गज मोदी से पहले जीत चुके

क्या आप जानते हैं कि पीएम मोदी से पहले भी वाराणसी लोकसभा सीट से कई दिग्गज नेता चुनाव जीत चुके हैं? इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री तक का नाम शुमार है। इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं। साल 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रघुनाथ सिंह ने यहां से पहली बार चुनाव जीता। रघुनाथ सिंह को अगले लोकसभा चुनाव में भी बनारस की जनता का साथ मिला और वह 1962 में भी वाराणसी के सासंद चुने गए। फिर साल 1967 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सीपीएम के सत्य नारायण सिंह यहां से चुनाव जीतकर सासंद बनते हैं। हालांकि, वाराणसी में सीपीएम अगले ही चुनाव में ढेर हो गई और 1971 में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री को भारी बहुमत से विजय मिली। आपाकाल हटने के बाद साल 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर बन चुकी थी। इसके कारण कांग्रेस के राजाराम शास्त्री को भारतीय लोक दल (बीएलडी) के चंद्रशेखर से हार का सामना करना पड़ा। 1977 के चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर इतनी हावी थी कि पिछले चुनाव में सवा लाख से भी अधिक वोटों से जीते कांग्रेस के राजाराम को इस चुनाव में मात्र 61,341 वोट ही मिल सके। अगले आम चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई। साल 1980 में कमलापति त्रिपाठी सांसद बने जो कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं। साल 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा चुनाव जीता और इस बार श्याम लाल यादव सासंद बनाए गए। फिर साल 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और इस बार जनता दल (जेडी) के नेता और पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री सांसद बने। अगले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का उदय होता है। साल 1991 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से भाजपा के प्रत्याशी शीश चंद्र दीक्षित चुनाव जीतते हैं। वाराणसी सीट से 1996 के आम चुनाव में फिर से भाजपा की जीत हुई । इस बार शंकर प्रसाद जायलवाल निर्वाचित हुए। भाजपा के शंकर प्रसाद जायसावाल अगले दो लोकसभा चुनाव तक वाराणसी सीट से चुनाव जीते। इस तरह वे 1996, 1998 और 1999 में वाराणसी सीट से सांसद के तौर पर काबिज रहे। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई और वाराणसी सीट कांग्रेस के राजेश मिश्रा को जीत मिली। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी चुनाव लड़ने वाराणसी आए और उन्हें जीत मिली। इसके बाद साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी से चुनाव जीता।

कैसा है जातीय समीकरण?

वाराणसी के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर सबसे अधिक कुर्मी वोटरों की संख्या है। रोहनिया और सेवापुरी में कुर्मी मतदाता बहुसंख्यक आबादी में हैं। इनके अलावा, ब्राह्मण और भूमिहारों की भी अच्छी खासी आबादी है। वाराणसी में वैश्य, यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होते है। वाराणसी में 3 लाख से अधिक गैर यादव ओबीसी मतदाता हैं। 2 लाख से अधिक कुर्मी मतदाता हैं। लगभग 2 लाख मतदाता वैश्य जाति के हैं। करीब डेढ़ लाख भूमिहार वोटर्स हैं। इसके अलावा, एक लाख यादव और एक लाख अनुसूचित जातियों (एससी) के मतदाता हैं।

Created On :   10 Feb 2024 12:01 PM GMT

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