लोकसभा चुनाव 2024: यूपी की सियासत से कटा बाहुबली नेताओं का पत्ता, पहले राजनीतिक दल उठाते थे फायदा, इस बार होगा माफिया मुक्त चुनाव!
- इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान कम दिखेंगे बाहुबली नेता
- लगातार बाहुबली नेताओं का हो रहा है सफाया
- कई पार्टियां अब बाहुबली नेताओं से बना रही हैं दूरी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में राजनीति में अपराध के गठजोड़ का फायदा सियासी दल लंबे समय से उठाते आ रहे हैं। यहां जीत के लिए पार्टी की ओर से अपराधियों को टिकट देना कोई नई बात नहीं है। जिसका फायदा अपराधी भी उठाते हैं। साथ ही, वह अपना अपराधिक और आर्थिक साम्राज्य मजबूत करने के लिए इसका पूरा लाभ भी उठाते हैं। अपराधी बहुत से लोगों के लिए वह एक मसीहा होता है। जब अपराधी किसी ऐसे धर्म या जाति का हो, जिनकी आबादी उसके क्षेत्र में अधिक है, फिर उसके चाहने वालों की संख्या और बढ़ जाती है। इसका फायदा राजनीतिक दलों को वोट बटोरने में होता है। उत्तर प्रदेश भी लंबे समय तक ऐसे अपराधियों और बाहुबली नेताओं का गढ़ रहा है। जिसका फायदा लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उठाया। लेकिन समय के साथ राजनीति और अपराध के इस गठजोड़ में विराम देखने को मिला है। एक रिपोर्ट बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 सीटों पर 979 उम्मीदवारों में से 220 पर आपराधिक मामले दर्ज थे। लेकिन 2017 के बाद जैसे कानून ने इन अपराधियों पर शिकंजा कसा है, माना जा रहा है कि यह उत्तर प्रदेश में पहला आम चुनाव होगा जिसमें अपराधी और बाहुबली नहीं दिखाई देंगे। विकास दुबे, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी के अलावा भी ऐसे अपराधी थे, जिन्होने सियासी दलो की मदद से खूब मेवा खाया। आज के इस ऑर्टिकल में हम आपकों यूपी के ऐसे ही अपराधियों के बारे में बताएंगे। इसके साथ ही हम आपकों "राजनीति और अपराध के गठजोड़'' की शुरुआत और अंत के बारे में भी बताएंगे।
गोरखपूर से शुरू हुई थी कहानी
राजनिति में अपराधीकरण की शुरुआत उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बसे गोरखपूर शहर से हुई थी। जिसका कसूरवार गोरखपूर के हरिशंकर तिवारी को माना जाता है। वहीं, पश्चिमी यूपी में डीपी यादव को इसका सूत्रधार कहा जाता है। इन्हें भी राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त था। हरिशंकर तिवारी को देश का पहला बाहुबली भी कहा जाता है। माना जाता है कि बीजेपी, कांग्रेस और बसपा के कार्यकाल में उनको सत्ता का पूरा आर्शीवाद मिला। उन्होंने जेल में रहकर चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश की चिल्लूपार सीट से 22 साल तक विजयी रहे। इसके साथ ही तीनों सरकारों ने जीत के बाद हरिशंकर तिवारी को कैबिनेट मंत्री भी बनाया। बीजेपी से दो बार कैबिनेट मंत्री रहे हरीशंकर तिवारी को सपा नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने भी मंत्री पद देकर उसका सियासी कद बढ़ाया था। इसके बाद तो मानो बाहुबली नेताओं की होड़ मच गई। मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, बृजेश सिंह से लेकर विजय मिश्रा, धनंजय सिंह, रिजवान जहीर, अमरमणि त्रिपाठी जैसे माफियाओं ने अपने कदम राजनीति की दुनिया में रखा। लोकसभा से लेकर विधानसभा ही नहीं बल्कि निकाय चुनावों में भी राजनितिक दल गुंडे माफिया नेताओं को अपनी जीत का प्यादा बना लिया। फिर क्या था समय-समय पर गोलियों की गरगराहट, खून से सने चेहरे, महिलाओं के बलात्कार जैसे तमाम अपराधिक गतिविधियां उत्तर प्रदेश में पैर पसारने लगे।
धनंजय सिंह
नाम धनंजय सिंह... उत्तर प्रदेश की सियासत में एक ऐसा नामी चेहरा। जिसके क्षेत्र में सियासत उसके नाम से चलती थी। हत्या, हत्या के प्रयास, सरकारी टेंडरों में वसूली व डकैती जैसे अनेकों मुकदमे इस अपराधी के नाम पर दर्ज है। धनंजय सिंह ने छात्र राजनीति से अपराध की दुनिया में एंट्री ली थी। कहा जाता है कि धनंजय सिंह पर बसपा की विशेष नजर थी। 1998 तक धनंजय सिंह 50 हजार का इनामी बदमाश बन चुका था। इसके साथ ही धनंजय ने 2002 में रारी क्षेत्र में निर्दलीय चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत भी हासिल की।
विजय मिश्र
विजय मिश्र पर हत्या, हत्या के प्रयास, वसूली जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज थे। जिसको सपा ने पनाह दे रखी थी। देखते ही देखते सपा के बड़े नेताओं के साथ उसका उठना-बैठना शुरू हो गया। आगे चलकर सपा में उसको सपा प्रमुख मुलायम सिंह के कैबिनेट का सदस्य भी बनाया गया।
बृजेश सिंह
बृजेश सिंह का नाम लगभग 41 से अधिक अपराधिक मामले दर्ज हैं। मकोका गैंगस्टर और टाडा गैंगस्टर में भी बृजेश का नाम आता है। बृजेश सिंह का नाम सामूहिक हत्या, गैंगवार व अपहरण जैसे तमाम मामलों में आता है। बृजेश सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजनिति में अपनी जगह बनाई थी। वर्तमान में बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा एमएलसी हैं।
रमाकांत यादव
सपा नेता और फूलपुर पवई (आजमगढ़) से सपा विधायक रमाकांत यादव के भी नाम 46 से अधिक अपराधिक मामलों में नामजत है। रमाकांत के ऊपर हत्या, जहरीली शराब का कारोबार, अपहरण, लूट जैसे तमाम मामले दर्ज हैं। 1985 में सबसे पहले कांग्रेस के टिकट पर वह विधानसभा का चुनाव जीता था। उसके बाद सपा, बसपा, बीजेपी ने भी रमाकांत यादव को पनाह दी थी। हालांकि, वह जहरीली शराब कांड में अभी भी जेल में है।
डीपी यादव
धर्मपाल यादव उर्फ डीपी यादव पर सपा संस्थापक मुलायम सिंह की विशेष कृपा थी। डीपी यादव को देश का सबसे बड़ा शराब माफिया कहा जाता है। डीपी यादव ने कांग्रेस के जरिए सियासत की दुनिया में कदम रखा था। 1993 में सपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा और बुलंदशहर विधानसभा से जीत दर्ज की। वहीं, 1996 में बसपा के टिकट पर संभल लोकसभा सीट पर भी जीत हासिल की।
अमरमणि
हरिशंकर तिवारी की छत्रछाया से निकला अमरमणि ने पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उसके ऊपर कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या का आरोप था। इसके साथ ही सपा, बसपा ने भी अमरमणि को अपनी छत्रछाया में रखने की कोशिश की थी। अमरमणि महराजगंज के नौतनवां से चार बार विधायक रह चुका है।
Created On :   9 April 2024 10:43 PM IST