राज्यसभा में कौन होगा बीजेपी कांग्रेस का प्रत्याशी? दिग्गी के लिए बलि चढ़े दलित नेता बरैया को कांग्रेस दे सकती है मौका, इन चेहरों पर भी नजर
- कांग्रेस को मजबूत करेगी सदन से उठी दलित आवाज
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में आज कल एक बयान ज्यादा उछल कूद कर रहा है जिसने बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी। और कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया है। दरअसल दलित नेता फूल सिंह बरैया ने दिग्विजय सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस को न केवल चुनाव जीतने का मंत्र दिया बल्कि पूरे सियासी समीकरण के गणितीय आंकड़े को मीडिया के माध्यम से सूबे के कई नेताओं के साथ साथ जनता के बीच पहुंचा दिया। पीसी का सबसे बड़ा चौंकाने वाला सवाल ये रहा है कि बरैया के बयान पर किसी मीडिया कर्मी ने सवाल नहीं किया। हालफिलहाल दलित नेता के इस बयान पर मीडियाकर्मी की चुप्पी के हिसाब से बास्तविक न मानते हुए आने वाले वक्त पर छोड़ देते है।
आखिर क्या कहा दिग्गी ने ?
कांगेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पीसी में विशेष तौर पर दलित नेता फूल सिंह बरैया को बुलाया गया, इस पत्रकार वार्ता में बरैया ने कहा आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी की 50 सीटें भी नहीं आ रही, इसके पीछे उन्होंने कांग्रेस की 2018 में हुई जीत में मिले कुल वोट और एससी एसटी और ओबीसी के वोटरों की संख्या को बताया।
दिग्गी के लिए चढ़ाई दलित की बलि
कांग्रेस के अंदरखाने में ये चर्चा जोरों पर चल रही है कि राज्यसभा चुनावों में दिल्ली से दलित नेता फूल सिंह बरैया का नाम पहले नंबर पर आया था लेकिन प्रमुख स्थानीय नेताओं ने दलित नेता बरैया को दूसरे नंबर पर धकेल दिया। दलित नेता ने भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को उच्च सदन में पहुंचाने के लिए अपने को पीछे रखा और दिग्गी के लिए अपने भविष्य को न्योंछावर कर दिया। जिसे बीजेपी ने कांग्रेस में दलित की बेइज्जती के तौर पर खूब प्रचारित किया।
ये है बीजेपी की तैयारी
चूंकि अब मध्यप्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों पर जून माह में चुनाव होना है, इसके लिए दोनों दलों में चुनावी नामों को लेकर चर्चा जोरों पर है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि बीजेपी इस बार तीन सीटों के लिए एक एससी, एक एसटी,और एक ओबीसी नामों पर फोकस कर रही है। इनमें से एक नाम आरएसएस की तरफ से भी तय माना जा रहा है, खबरों के मुताबिक संघ की ओर से एक दलित अनुसूचित जाति के नेता को प्रत्याशी बनाना तय माना जा रहा है, जिनमें प्रबल दावेदारी के तौर पर बीजेपी के राष्ट्रीय अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष लाल सिंह आर्य का नाम है, इसके पीछे की वजह बताया जा रहा है कि चंबल ग्वालियर क्षेत्र में 2018 के विधानसभा चुनावों में 2 अप्रैल के भारत बंद में मचे बवाल के कारण इस वर्ग का काफी वोट कांग्रेस की तरफ खिसक गया था, जिसमें बीजेपी अब सेंध लगाना चाहती है।
दलित राजनीति में बरैया का दबदबा
दूसरी तरफ बात अगर कांग्रेस की, कि जाए तो इस इलाके में कांग्रेस की तरफ से कोई दलित नेता राष्ट्रीय स्तर का नहीं है, जो दलित वोटरों को एक कर सकें। हाल ही में दिग्गी की पीसी में बीजेपी पर हमलावर होकर बरैया ने अपने बयानों से कांग्रेस को वो रास्ता दिखा दिया जिस पर चलकर कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो सकती है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि बगैर स्थानीय दलित राष्ट्रीय नेता के ये संभव नहीं है। इसी चर्चा को लेकर कांग्रेस में कानाफूसी शुरू हो गई है, कि राज्यसभा में जिस दलित नेता ने दिग्गी के लिए अपना त्याग किया था अब दलित हितैषी के तौर पर कहे जाने वाले नेता दिग्विजय सिंह का समय है कि वह दलित नेता के लिए आगे आकर पहल करें। ताकि ग्वालियर चंबल स्तर पर स्थानीय लोगों को अपनी आवाज रखने के लिए एक नेता मिल सकें।
कांग्रेस को देश में मजबूत करेगी दिल्ली से उठी दलित आवाज
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि दलितों की बुलंद आवाज बने बरैया को यदि कांग्रेस उच्च सदन में भेजने कामयाब होती है तो सदन में वर्तमान दौर में दलित आवाज का फायदा मध्यप्रदेश के साथ साथ कई अन्य राज्यों में भी मिल सकता है। यदि कांग्रेस बरैया को राज्यसभा भेजने में एक बार फिर विफल होती है तो दलित कांग्रेस में फिर ठगा महसूस करेंगे। और बीजेपी को कांग्रेस को फिर से घेरने का मौका मिल जाएगा। आपको बता दें हाल ही में यूपी चुनाव के नतीजों में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे दलित वोटरों का बीजेपी की तरफ खिसकना मुख्य कारण रहा।
ये चेहरे भी अहम
कांग्रेस के भीतर ये चर्चा भी चल रही है कि राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को फिर से राज्यसभा भेजा जाए, लेकिन इस पर कांग्रेस दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि विवेक तन्खा एक कश्मीरी पंडित है, और इस समय ज्यादातर कश्मीरी पंडित बीजेपी के समर्थन में नजर आ रहे है। अगर कांग्रेस वरिष्ठ वकील तन्खा को फिर से उच्च सदन में भेजती है, तो वह कांग्रेस के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं होगा क्योंकि मध्यप्रदेश में कश्मीरी पंडितों की संख्या न के बराबर है।
कांग्रेस बीजेपी पर निकायों चुनावों में ओबीसी आरक्षण खत्म करने का आरोप लगा रही है। कांग्रेस का एक धड़ा अरूण यादव को राज्यसभा सांसद भेजने की तैयारी में, जिस पर कांग्रेस के कई नेताओं को आपत्ति है कि बीजेपी में मुख्यमंत्री समेत कई ओबीसी नेता सरकार में है। ऐसे में चुनावों के समय में अरूण यादव को ओबीसी नेता के तौर पर ओबीसी समाज में सांगठनिक शक्ति के नेता के तौर पर पेश किया जाए।
Created On :   13 May 2022 11:32 AM IST