तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से की पूछताछ

Supreme Court questions Gujarat government on Teesta Setalvads bail plea
तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से की पूछताछ
नई दिल्ली तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से की पूछताछ
हाईलाइट
  • आरोपों में कैद

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चिंता व्यक्त की कि गुजरात हाईकोर्ट ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए छह सप्ताह के लिए नोटिस जारी किया है और गुजरात सरकार से उन मामलों का रिकॉर्ड ब्योरा लाने को कहा है। एक महिला से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने इतना लंबा स्थगन दिया है।

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने मौखिक टिप्पणी की कि क्या तीस्ता को जमानत देनी है, लेकिन उसने कोई आदेश पारित नहीं किया। राज्य में 2002 के दंगों के मामलों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उच्च पदस्थ अधिकारियों को फंसाने के लिए कथित रूप से दस्तावेज गढ़ने के आरोप में तीस्ता सीतलवाड़ 25 जून से हिरासत में है।

प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित और जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद उनसे कहा, हमें अभी भी उनके खिलाफ सबूत नहीं मिला है और याचिकाकर्ता 2 महीने से अधिक समय से हिरासत में है।

हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत याचिका पर तीन अगस्त को नोटिस जारी किया था और नोटिस को छह सप्ताह के लिए वापस करने योग्य बनाते हुए एक लंबा स्थगन दिया था। पीठ ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे मेहता से ऐसा उदाहरण देने को कहा, जहां एक महिला को इस तरह के आरोपों में कैद किया गया हो और हाईकोर्ट ने विचार करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया हो।

पीठ ने पूछा : क्या आप इस महिला के मामले में अपवाद बना रहे हैं .. हाईकोर्ट नोटिस वापस करने के लिए 6 सप्ताह का समय कैसे दे सकता है। क्या हाईकोर्ट में कोई मानक अभ्यास है? मेहता की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, हम अंतरिम जमानत देते हैं और मामले को 19 सितंबर के लिए सूचीबद्ध करते हैं। इस पर मेहता ने कहा, मैं इसका कड़ा विरोध करता हूं, मैं तर्क दूंगा कि यह हत्या के मामले से ज्यादा गंभीर है।

प्रधान न्यायाधीश ललित ने मौखिक रूप से कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ आरोप सामान्य आईपीसी अपराध हैं, जिनमें जमानत देने पर कोई रोक नहीं है। उन्होंने कहा, ये हत्या या शारीरिक चोट जैसे अपराध नहीं हैं, बल्कि दस्तावेजों में जालसाजी का मामला है। ऐसे मामलों में सामान्य विचार यह है कि पुलिस हिरासत समाप्त होने के बाद फिर से हिरासत पर जोर देने के लिए पुलिस के पास कुछ भी नहीं है ..।

शीर्ष अदालत ने विस्तृत सुनवाई के बाद मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को दोपहर 2 बजे निर्धारित की। सुनवाई का समापन करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हमें ऐसे उदाहरण दें जहां ऐसे मामलों में महिला आरोपी को हाईकोर्ट से ऐसी तारीखें मिली हों। या तो इस महिला को अपवाद बनाया गया है .। मेहता ने कहा कि पुरुषों और महिलाओं के लिए तिथियां समान हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून को 2002 में अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसा के दौरान मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें राज्य में हुए दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को एसआईटी की क्लीन चिट मिलने को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर (अब सेवानिवृत्त) ने कहा था कि इस मामले में कार्यवाही पिछले 16 वर्षो (8 जून, 2006 को शिकायत दर्ज करने से लेकर 67 पृष्ठों की रिपोर्ट आई और फिर 15 अप्रैल, 2013 को 514 पृष्ठों की विरोध याचिका दायर की गई) से चल रही है। यह दुस्साहस सहित अपनाई गई कुटिल चाल को उजागर करने की प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक पदाधिकारी की सत्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न् लगाती है।

 

आईएएनएस

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Created On :   1 Sept 2022 7:00 PM IST

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