वोट प्रतिशत के लिहाज से बीजेपी पर भारी पड़ सकते है ये तीन दलों की तिकड़ी, विधानसभा चुनाव है इसके गवाह
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसी को देखते हुए अभी से ही सभी पार्टियां चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। सीटों के आधार पर बीजेपी सबसे बड़ा दल है। साथ ही 18 साल से ज्यादा सत्ता पर काबिज है। इस बार का चुनाव काफी चिलचस्प होना वाला है क्योंकि बीजेपी के सामने मौजूदा वक्त में सत्ता विरोधी लहर का डर भी है। अगर हम सीटों के आंकड़ों की बात करें तो 230 विधानसभा वाली सीटों में से बीजेपी के पास 127 विधायक मौजूद हैं, वहीं विपक्षी दल कांग्रेस के पास 96 विधायक हैं। इसके अलावा निर्दलीय 4, बीएसपी 2 और सपा के पास 1 विधायक मौजूद हैं।
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत के साथ सरकार बनाई थीं। उस वक्त कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 114 सीटें जीती थीं। वहीं बीजेपी भी 109 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी दल बनी हुई थीं। लेकिन साल 2020 में बड़ा खेला हुआ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कुल 22 कांग्रेसी विधायकों समेत तीन अन्य दलों ने अपना पाला बदलते हुए इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद कमलनाथ सरकार को कुर्सी खाली करनी पड़ी थी। तीन अन्य विधायकों के निधन के बाद राज्य में कुल 28 सीटों पर उप चुनाव हुए थे।
बता दें कि इन सीटों पर कांग्रेस की पहले से 27 सीटों पर कब्जा था। लेकिन उपचुनाव में बीजेपी को सिंधिया का समर्थन प्राप्त हुआ। जिसके चलते बीजेपी ने वापसी करते हुए 28 सीटों में से 19 सीट पर जीत दर्ज किया। इस तरह उप चुनाव में कांग्रेस को कुल 18 सीटों का नुकसान हुआ, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी 18 सीटों से बढ़कर कुल 127 पर पहुंच गई। जिससे बीजेपी को राज्य में एक बार फिर से सत्ता में वापसी करने का मौका मिला। प्रदेश में सभी राजनीतिक दल 2023 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए 2024 लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में भी लग गए है। ऐसे में अगर बीजेपी के विपक्षी दल कांग्रेस, सपा और बसपा एक साथ आ जाए तो भाजपा के लिए दोनों चुनावों में मुश्किलें खड़ी हो सकती है।
5 साल पहले कांग्रेस को इतने प्रतिशत वोट मिलें
साल 2018 में कांग्रेस को कुल 40.89 फीसदी वोट मिले थे। वहीं बीजेपी को 41.02 फीसदी वोट मिले थे। इसके अलावा मायावती को 5 प्रतिशत तो वहीं सपा को मात्र 1.3 प्रतिशत वोट मिले थे।
2003 में बीजेपी ने जीती थी सबसे ज्यादा सीटे
मध्य प्रदेश की राजनीति में बीजेपी के लिए सबसे सुनहरा मौका साल 2003 रहा था, तब बीजेपी को कुल 173 सीट मिले थें। इसी के साथ बीजेपी ने कांग्रेस की एक दशक पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका था। वहीं सीटों के हिसाब से साल 1990 में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था। तब छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश एक हुआ करते थे। तब बीजेपी ने 220 सीटें हासिल किए थे। उस समय बीजेपी का वोट प्रतिशत 39.14 था और इसी के साथ राज्य में पहली बार सुंदर लाल पटवा की सरकार बनी थी।
2003 में इन पार्टियों को मिले इतने वोट शेयर
2003 में बीजेपी को 42.50 फीसदी वोट शेयर मिले थे वहीं कांग्रेस को 31.61 फीसदी, बीएसी को 7.26 फीसदी और सपा को 3.71 फीसदी वोट मिले थे। अगर कांग्रेस, बीएसी और सपा के वोट शेयर मिला दे तो इनके पास 42.58 फीसदी वोट हो जाता है जोकि बीजेपी से 0.08 फीसदी ज्यादा है। हालांकि यह अंतर काफी कम लेकिन इतने ही वोट प्रतिशत से हार-जीत का अंतर तय हो जाता है।
20 साल में सभी पार्टियों का ये रहा परफॉर्मेंस
पिछले 20 सालों में मध्यप्रदेश में चार बार विधानसभा चुनाव हुए है। लेकिन बीजेपी को साल 2013 के विधानसभा चुनाव में सभी विपक्षी दलों(कांग्रेस, सपा और बसपा) से ज्यादा वोट शेयर मिला था। वहीं साल 2013 को छोड़कर हर बार विपक्षी दलों ने ही सबसे ज्यादा वोट शेयर हासिल किए है। साल 2013 में कांग्रेस और सपा एक साथ मिलकर राज्य में चुनाव लड़े थे। तब इन दोनों ने मिलाकर सिर्फ 58 सीटों के साथ 36.38 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। यह वहीं दौर है, जब देश में अन्ना आंदोलन चल रहे थे। इसके अलावा कई धोटालें में कांग्रेस का नाम सामने आ रहा था। जिसकी वजह से उस वक्त देश में कांग्रेस के खिलाफ उलटी बयार बह रही थी।
बाकी विधानसभा चुनाव के वोट प्रतिशत जोड़ दिए जाए तो विपक्षी दल हर बार बीजेपी पर हावी रही है। 2003 में विपक्षी दलों को 42.58 फीसदी, 2008 में 43.26 फीसदी, 2013 में 42.67 फीसदी और 2018 में 47.19 प्रतिशत वोट शेयर मिले। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 0.13 फीसदी वोट शेयर कम मिले थे, लेकिन फिर कांग्रेस को पांच सीटें ज्यादा हासिल हुई थीं। इसका मतलब यह है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में वोट प्रतिशत से सीटों में काफी बड़ा फेरबदल हो जाता है। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी के खिलाफ विरोधी दल एकजुट आ जाए तो बीजेपी के लिए मुश्किलें काफी बढ़ सकती है। हालांकि चुनावों में वोट प्रतिशत में उतार-चढ़ाव उस वक्त के राजनीतिक माहौल पर भी निर्भर करता है।
Created On :   21 Dec 2022 6:08 PM IST