गडकरी-शिवराज बीजेपी की टीम से बाहर, येदियुरप्पा की जगह बरकरार, आइए समझते हैं बीजेपी की नई टीम की सियासी गणित, क्या है 2024 के चुनाव में जीत का प्लान?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को पार्टी संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का नए सिरे से गठन किया है। पार्टी के अंदर नए चेहरे की जहां एंट्री हुई है तो वहीं पुराने चेहरे को बाहर का रास्ता दिखाया गया है। इसी कड़ी में बीजेपी आलाकमान ने सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह जैसे बड़े व विश्वसनीय चेहरे को बाहर कर सियासी बहस छेड़ दी हालांकि लोगों का मानना है कि बीजेपी ने आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए बड़ा फेरबदल किया है। वैसे बीजेपी ने ऐसे क्यों किया? किन नेताओं के स्थान पर किसको मिली जगह। आइए इन सभी सवालों पर बात करते हैं....
गडकरी की जगह फडणवीस को तवज्जो
बीजेपी ने पार्टी के भरोसेमंद नेता केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटा दिया है। जिसके बाद सियासी बाजार में गर्मी बढ़ गई है। गडकरी साल 2009 में बीजेपी के अध्यक्ष बनने के बाद से संसदीय बोर्ड के सदस्य भी रहे हैं। लेकिन पार्टी ने 13 साल बाद उनकी छुट्टी कर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की एंट्री कराई है। इससे स्पष्ट है कि बीजेपी ने फडणवीस का कद बढ़ाया है। लोगों का मानना है कि बीजेपी की महाराष्ट्र सरकार बनाने में फडणवीस की बड़ी भूमिका थी जिसका उन्हें बोनस मिला है। हालांकि कारण कुछ भी रहा हो लेकिन बीजेपी ने फडणवीस पर भरोसा जताया है। गडकरी के स्थान पर फडणवीस को रिप्लेसमेंट के तौर पर देखा जा रहा है।
जानें गडकरी को हटाने की वजह
बीजेपी ने भले ही गडकरी को पार्टी के महत्वपूर्ण पदों से हटा दिया हो लेकिन सियासत में इसको लेकर हलचल सी मची हुई है। इंडिया टुडे ग्रुप के संपादक राहुल श्रीवास्तव बताते हैं कि गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटाना पार्टी की बेचैनी को बताता है क्योंकि गडकरी बीजेपी के मुखर नेताओं में आते हैं और पिछले दो सालों से पार्टी की गाइडलाइंस से हटकर भी बात करते हैं। अक्सर अपनी बातों को लेकर सुर्खियों में भी रहते हैं। गडकरी मंत्रालय में भी किसी का दखल पसंद नहीं करते हैं और अपनी मर्जी के हिसाब से काम करते हैं। गडकरी संघ प्रमुख मोहन भागवत के करीबी माने जाते हैं। उसके बावजूद भी गडकरी हमेशा कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के खिलाफ रहे हैं। पार्टी ने गडकरी को हटाकर बता दिया कि पार्टी की गाइडलाइंस के मुताबिक ही सभी को चलना है, अगर ऐसा नहीं किए तो बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
शिवराज-थावरचंद के स्थान पर जटिया क्यों?
गौरतलब है कि बीजेपी की सबसे बड़ी और पावरफुल बॉडी संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति मानी जाती है। यहां पर हमेशा से मप्र का दबदबा रहा है। शिवराज सिंह चौहान के साथ एसटी वर्ग से आने वाले थवरचंद गहलोत बोर्ड के सदस्य थे। जिन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया। जिससे बोर्ड से बाहर हो गए। अब शिवराज सिंह को भी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाते हुए मप्र के वरिष्ठ बीजेपी नेता सत्यनारायण जटिया को बीजेपी ने संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया है। सबसे दिलचस्प बात यह कि बीजेपी पार्टी ने साल 2005 से पहले सत्यनारायण जटिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर सीएम शिवराज सिंह चौहान को जगह दी थी लेकिन कुछ ऐसा ही हुआ अब संसदीय बोर्ड से शिवराज सिंह को हटाकर सत्यनारायण जटिया को शामिल किया गया है। हालांकि बीजेपी के संसदीय बोर्ड में एक सीट दलित नेता के लिए आरक्षित है। इसीलिए कयास लगाए जा रहे है कि थवरचंद गहलोत की जगह जटिया को जगह दी गई है।
शिवराज की छुट्टी की वजह
शिवराज सिंह चौहान की संसदीय बोर्ड से छुट्टी होने के बाद इंडिया टुडे के ग्रुप के एडिटर राहुल श्रीवास्तव लिखते हैं कि साल 2014 से पहले तक शिवराज सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों एक ही कद के नेता माने जाते थे। हालांकि, वर्तमान में स्थिति बदल चुकी हैं। साल 2018 में शिवराज सिंह ने 58 सीटें गंवा दी थी और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। गृहमंत्री अमित शाह के प्रयास और ऑपरेशन लोटस से बीजेपी फिर साल 2020 में सत्ता पर काबिज होने में सफल रही। श्रीवास्तव के मुताबिक, शिवराज बीजेपी शासित राज्य के इकलौते सीएम थे जिन्हें संसदीय बोर्ड में जगह दी गई थी। यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ को संसदीय बोर्ड में शामिल किए जाने की मांग हो रही थी। पार्टी के इस फैसले के बाद यही रिजल्ट निकलकर आ रहा है कि अब किसी भी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में शामिल नहीं किया जाएगा। तथा शिवराज सिंह चौहान को जो भविष्य के पीएम को तौर पर देखा जा रहा था, उस पर विराम लगाया गया है।
अनंत कुमार की जगह येदियुरप्पा की एंट्री
बीजेपी की संसदीय बोर्ड में कर्नाटक के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा को जगह मिली है। येदियुरप्पा को वरिष्ठ नेता रहे अनंत कुमार के स्थान पर जगह दी गई है। गौरतलब है कि साल 2014 में अनंत कुमार को संसदीय बोर्ड में जगह मिली थी लेकिन उनके निधन की वजह से जगह खाली हो गई थी। अब 79 साल के येदियुरप्पा को शामिल किया गया है। हालांकि सियासी बाजार इस बात को लेकर गर्म है कि जब साल 2014 में अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं को उम्र का हवाला देते हुए संसदीय बोर्ड से हटाकर मार्गदशक मंडल में डाल दिया गया था। फिर येदियुरप्पा पर कृपा क्यों?
येदियुरप्पा को कैसे मिली जगह?
येदियुरप्पा की संसदीय बोर्ड में जगह मिलना कर्नाटक में सीएम की कुर्सी के बदले मुआवजे के तौर पर देखा जा रहा है। इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटर राहुल श्रीवास्तव आगे लिखते हैं कि अगले साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव होना है। पार्टी ने येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में शामिल कर लिंगायत नेता को खुश रखने का प्रयास किया है। इन्हीं वजहों से 75 साल से अधिका की उम्र पार करने के बाद येदियुरप्पा को जगह दी गई है ताकि लोगों की नाराजगी को दूर किया जाए। गौरतलब है कि येदियुरप्पा कर्नाटक के चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और दिग्गज नेताओं में शुमार हैं। दक्षिण भारत में कमल खिलाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
Created On :   18 Aug 2022 7:05 PM IST