उपचुनाव जीतने के बावजूद राजद ने कहा राजग सरकार के लिए बज रही खतरे की घंटी

Despite winning the by-election, RJD said alarm bells are ringing for the NDA government
उपचुनाव जीतने के बावजूद राजद ने कहा राजग सरकार के लिए बज रही खतरे की घंटी
बिहार उपचुनाव जीतने के बावजूद राजद ने कहा राजग सरकार के लिए बज रही खतरे की घंटी
हाईलाइट
  • कांग्रेस से अलग राजद लोजपा के साथ

डिजिटल डेस्क, पटना । बिहार में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव जीत न पाने के बावजूद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कहा है कि राज्य में नीतीश कुमार की राजग सरकार के लिए खतरे की घंटी बज रही है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि राजद ने कई वर्षो में पहली बार कुशेश्वरस्थान और तारापुर उपचुनाव अकेले लड़ा था। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को किनारे करने का कड़ा फैसला लिया।

पार्टी नेता ने कहा 1990 में लालू प्रसाद के राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरने के बाद से राजद का कांग्रेस के साथ दीर्घकालिक गठबंधन रहा है। उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन में सभी चुनाव लड़े। 2010 में एक मौके पर राजद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ दिया, लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के साथ चुनाव लड़ा। राजद ने कभी भी कुशेश्वरस्थान से चुनाव नहीं लड़ा। इसने हमेशा कांग्रेस को सीट दी थी। 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने यह सीट लोजपा को दी थी। इसके बावजूद इसने एक प्रभावशाली प्रदर्शन किया। लोजपा उम्मीदवार को केवल 12,000 विषम मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसका 36 प्रतिशत वोट प्रतिशत 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अशोक राम को मिले वोटों की तुलना में दो प्रतिशत अधिक है।

तारापुर में राजद उम्मीदवार अरुण शाह जनता दल-युनाइटेड के उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह से 3,800 मतों के मामूली अंतर से हार गए। 2020 में राजद प्रत्याशी दिव्या ज्योति और तत्कालीन जद (यू) प्रत्याशी मेवालालाल चौधरी के बीच हार का अंतर 7,200 वोटों का था। उस समय राजद उम्मीदवार को केवल 32.8 फीसदी वोट ही मिले थे। जबकि इस बार उसे 44.35 फीसदी वोट मिले थे। राजद ने अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव (एमवाई) वोट बैंक के अलावा अन्य वर्गो के बीच राजनीतिक आधार हासिल किया।

कुशेश्वरस्थान में राजद को सभी समुदायों के 36 प्रतिशत वोट मिले, जबकि एमवाई को केवल 25 प्रतिशत वोट मिले। इसी तरह तारापुर में पार्टी को 44 प्रतिशत वोट मिले हैं, जबकि निर्वाचन क्षेत्र के 26 प्रतिशत एमवाई वोटर हैं। तेजस्वी यादव के पार्टी को कांग्रेस से अलग करने के फैसले से उनके लिए लोजपा-रामविलास या मुकेश साहनी के वीआईपी जैसी अन्य ताकतों में शामिल होने का द्वार खुल सकता है।

वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस के दबाव का सामना किया और उसे 70 सीटें दीं। हालांकि वह 50 भी मानने को तैयार नहीं थी। पार्टी के एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक राजद कांग्रेस के मुस्लिम वोटों के आश्वासन के दबाव में आ गया। तेजस्वी यादव मुकेश साहनी के वीआईपी को सीट आवंटित करना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस ने सीट मांगी और राजद को रास्ता देना पड़ा। साल 2021 के उपचुनावों में मुस्लिम समुदाय फिर से कांग्रेस के हाथ से बाहर हो गया और उसके उम्मीदवार बुरी तरह हार गए। अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। तेजस्वी यादव लोजपा-रामविलास जैसे अन्य विकल्पों को आजमा सकते हैं। वह चिराग पासवान के साथ हाथ मिलाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं, जिनके पास बिहार में पिछड़े वर्ग के समुदायों में एक पारंपरिक वोट बैंक है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   4 Nov 2021 6:30 PM IST

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