हिंसाग्रस्त सूडान में 31 भारतीयों के फंसे होने से गरमाई देश की सियासत, सरकार और विपक्ष ने एक दूसरे पर साधा निशाना, जानिए आखिर क्यों जल रहा है सूडान?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सूडान में मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच जारी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। दोनों के बीच जारी इस हिंसक संघर्ष में अब तक 270 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। वहीं 2600 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। इस संघर्ष में 31 भारतीय नागरिक भी फंसे हुए हैं। ये सभी नागरिक कर्नाटक के आदिवासी समुदाय से आते हैं, जिनकी वापसी को लेकर भारत में सियासत गरमा गई है। कर्नाटक कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने केंद्र सरकार पर इन लोगों को वापस लाने के लिए कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है वहीं विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उनके इस आरोप पर तीखा पलटवार किया है।
क्या कहा सिद्धारमैया ने?
— Siddaramaiah (@siddaramaiah) April 18, 2023
सिद्धारमैया ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर कहा, 'सूडान में हक्की पिक्की (आदिवासी समुदाय) पिछले कुछ दिनों से बिना भोजन के फंसे हुए हैं और सरकार ने अभी तक उन्हें वापस लाने के लिए कार्रवाई शुरू नहीं की है। सरकार को तुरंत कूटनीतिक चर्चा शुरू करनी चाहिए और हक्की पिक्की की भलाई सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों तक पहुंचना चाहिए।'
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने किया पलटवार
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) April 18, 2023
सिद्धारमैया के आरोप पर विदेश मंत्री जयशंकर ने तीखा पलटवार किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, 'बस आपके ट्वीट से स्तब्ध हूं! दांव पर जीवन है; राजनीति मत करो। 14 अप्रैल को लड़ाई शुरू होने के बाद से, खार्तूम में भारतीय दूतावास सूडान में अधिकांश भारतीय नागरिकों और पीआईओ के साथ लगातार संपर्क में है। सूडान में फंसे भारतीयों की स्थिति पर राजनीति करना बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना है। मुझे नहीं लगता कि आपको इस तरह के बयान देकर किसी तरह का राजनीतिक फायदा होगा।'
विदेश मंत्री के इस ट्वीट पर सिद्धारमैया तंज कसते हुए कहा, 'आप देश के विदेश मंत्री हैं इसलिए मैंने आपसे सहायता की अपील की। अगर आप मेरे बयानों पर स्तब्ध होने में ही व्यस्त हैं तो मुझे बता दीजिए कि देश को लोगों को वापस लाने में हमारी मदद कौन कर सकता है।' जिसके जवाब में विदेश मंत्री ने ट्वीट कर कहा कि 'सूडान में हालात बिगड़ने के तुरंत बाद से ही भारतीय दूतावास वहां फंसे भारतीय नागरिकों से लगातार संपर्क बनाए हुए है। भारत सरकार वहां की हर घटना पर नजर बनाए हुए है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा स्थिति को देखते हुए हम सूडान में फंसे अपने नागरिकों की लोकेशन साझा नहीं कर सकते।'
— Siddaramaiah (@siddaramaiah) April 18, 2023
बता दें कि सूडान स्थित भारतीय दूतावास ने 18 अप्रैल को एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा कि सभी भारतीय फिलहाल अपने घरों में सुरक्षित रहें और बिल्कुल भी बाहर न निकलें। राजधानी खार्तूम स्थित भारतीय दूतावास ने ट्वीट कर कहा, 'हम देख रहे हैं कि यहां लूटपाट की घटनाएं हो रही हैं। सभी भारतीय नागरिकों को सलाह दी जाती है कि कृपया बाहर न निकलें और राशन जमा कर लें। स्थिति कुछ दिनों तक ऐसी ही बनी रह सकती है। कृप्या अपने पड़ोसियों से मदद लेने की कोशिश करें। घर पर रहें, सुरक्षित रहें।'
— India in Sudan (@EoI_Khartoum) April 18, 2023
आखिर क्यों हो रहे हैं सूडान में हिंसक प्रदर्शन?
सूडान में जारी गृहयुद्ध का कारण वहां कि मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। इसकी जड़े देश में तीन साल पहले हुए तख्तापलट से जुड़ी हुई हैं। साल 2019 में सूडान के तानाशाह राष्ट्रपति ओमर अल-बशीर को सत्ता से हटाने के लिए देश के नागरिकों ने जोरदार प्रदर्शन किया। जिसके बाद अप्रैल 2019 में सेना ने तख्तापलट कर राष्ट्रपति ओमर को पद से हटा दिया। लेकिन इसके बाद सूडान की जनता देश में लोकतांत्रिक शासन की मांग करने लगे। जिसके बाद सूडान में एक संयुक्त सरकार का गठन हुआ, जिसमें देश के नागरिक और मिलिट्री दोनों की भूमिका थी।
साल 2021 में सूडान में दोबारा तख्तापलट हुआ और सैन्य शासन की शुरूआत हुई। सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान देश के राष्ट्रपति और आरएसएफ रैपिड सपोर्ट फोर्स लीडर मोहम्मद हमदान डागालो उपराष्ट्रपति बन गए। इसके बाद से (आरएसएफ) और सेना के बीच संघर्ष जारी है। नागरिक शासन लागू करने के समझौते को लेकर सेना और आरएसएफ आमने-सामने हैं। दरअसल, आएएसएफ नागरिक शासन को देश में 10 साल बाद लागू करना चाहती है, वहीं सेना के मुताबिक अगले 2 सालों में ही देश में नागरिक शासन लागू होना चाहिए। इसके अलावा सेना का ऐसा मानना है कि आरएसएफ अर्धसैनिक बल के तहत आती है और उसे सेना में शामिल करना सही नहीं होगा।
क्या है आएएसएफ?
दुनिया के सबसे खतरनाक और जानलेवा विद्रोहों में शामिल डार्फर विद्रोह जो कि सूडान के पश्चिमी इलाके डार्फर में साल 2003 में शुरू हुआ था। इस विद्रोह को दबाने या निपटने के लिए सेना ने जंजावीद मिलिशिया (सीमित सैन्य प्रशिक्षण वाले नागरिकों का सैन्य संगठन) की मदद ली। ये मिलशिया ही आगे चलकर रेपिड सपोर्ट फोर्स में परिवर्तित हुआ और कई मिशनों में सूडान की सेना की सहायता करने लगा।
करीब 5 साल चले इस विद्रोह में 3 लाख लोग मारे गए थे, वहीं 20 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। विद्रोह कुचलने में सेना की सहायता करने वाले जंजावीद मिलीशिया के लड़ाकों को सरकारी दर्जा देने के लिए तानाशाह अल बशीर ने 2013 में इसे आरएसएफ में बदल दिया था।
Created On :   19 April 2023 2:53 PM IST