मध्यप्रदेश में कांग्रेस दोहराना चाहती है 2018 के नतीजे

Congress wants to repeat its 2018 results in Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश में कांग्रेस दोहराना चाहती है 2018 के नतीजे
मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश में कांग्रेस दोहराना चाहती है 2018 के नतीजे
हाईलाइट
  • भाजपा को शिकस्त देकर बदला लेना चाहते हैं कमलनाथ

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही डेढ़ साल बाद हो, मगर सियासी गर्माहट लगातार बढ़ती जा रही है। कांग्रेस ने चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है और उसकी कोशिश है कि वह वर्ष 2018 के नतीजों को दोहराने में कामयाब हो। पार्टी के लिए यह काम आसान नहीं है, इसे भी रणनीतिकार मानते हैं।

राज्य में अगले साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं। राज्य में विधानसभा की 230 सीटें हैं और बहुमत के लिए 116 सीटों पर जीत जरूरी है। कांग्रेस वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में 115 सीटें ही जीत सकी थी, मगर निर्दलीय और दूसरे दलों का समर्थन मिलने के कारण उसे सत्ता हाथ लगी थी। बाहरी सहयोग से बनाई गई कमलनाथ की सरकार को कांग्रेस के लोगों ने ही धोखा दे दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए और कमलनाथ की सरकार गिर गई। कमलनाथ के लिए सत्ता का जाना किसी दंश से कम नहीं है और वे वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनाव में फिर भाजपा को शिकस्त देकर बदला लेना चाहते हैं।

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ का सारा ध्यान आगामी समय में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। यही कारण है कि उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया है और प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभाले हुए हैं। एक तरफ जहां कमलनाथ अपनी रणनीति के मुताबिक आगे बढ़ रहे हैं, तो वहीं उन्होंने अन्य नेताओं से आपसी सामंजस्य को और मजबूत करने के निर्देश दिए हैं। इसी क्रम में घोर विरोधी माने जाने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व उप नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी की बीते रोज मुलाकात हुई। इन दोनों नेताओं ने बंद कमरे में बैठकर बातचीत की और अपने गिले शिकवे खत्म किए। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के पिछड़े वर्ग के चेहरे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव की भी सक्रियता बढ़ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हमेशा की तरह सक्रिय बने हुए हैं।

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने उन सीटों को चिन्हित कर लिया है जहां भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है और इसके लिए कारगर रणनीति पर भी पार्टी काम कर रही है। कमलनाथ सीधे तौर पर जमीनी नेताओं से संपर्क और संवाद कर रहे हैं। साथ ही सर्वे भी करा रहे हैं कि किस क्षेत्र में किस नेता की स्थिति मजबूत है। कमल नाथ का जोर इस बात पर है कि विधानसभा चुनाव में जीतने में सक्षम कार्यकर्ता को ही मैदान में उतारा जाए। इस बार के चुनाव में कमल नाथ और कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती इस बात की है कि पिछले चुनाव में जो लोग उनके साथ थे उनमें से कई अब नहीं हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया साथ छोड़ चुके हैं तो पूर्व प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी सियासी मैदान से अपने को दूर कर चुके हैं। यह स्थितियां भी चुनौती पैदा करने वाली है।

 

 (आईएएनएस)

Created On :   1 May 2022 10:30 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story