गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार में यूसीसी पर मौन रही भाजपा

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डिजिटल डेस्क, गांधीनगर। हाल ही में संपन्न गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की थी। राज्य सरकार ने वादा किया कि बिल तैयार होने पर समिति द्वारा की गई सभी सिफारिशों को शामिल किया जाएगा। समिति की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे।

अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता शमशाद पठान ने सवाल उठाया कि विधानसभा चुनावों के लिए अपने दो महीने लंबे प्रचार अभियान के दौरान भाजपा ने इस मुद्दे को कभी नहीं छुआ और पार्टी ने इस मुद्दे को भुनाया क्यों नहीं।

गुजरात भाजपा अल्पसंख्यक के अध्यक्ष मोहसिन लोखंडवाला कहते हैं, यूसीसी का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार देना है, जिससे वे अलग धार्मिक कानून के तहत वंचित हैं, इसके नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंता करने या चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

लोखंडवाला ने कहा, शरिया कानून के तहत भी महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार है, लेकिन यह पुरुष के बराबर अधिकार नहीं है, यूसीसी के साथ वे समान अधिकारों की हकदार होंगी। गोद लेने के मामले में भी यह अधिक स्पष्टता देगी। शादी, तलाक, गुजारा भत्ता में यह कानून मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करेगा।

सनातन संत समिति के अध्यक्ष ज्योतिर्नाथ कहते हैं, यह केवल मुस्लिम महिलाओं के समान अधिकारों के बारे में नहीं है, यह एक देश में दो अलग-अलग नागरिक कानूनों के बारे में भी है।

ज्योतिर्नाथ ने कहा, मैंने कई देशों की यात्रा की है और कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया है। किसी भी देश में विवाह या उत्तराधिकार/संपत्ति अधिनियम के दो सेट कानून नहीं हैं, फिर हमारे पास धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून या अधिनियम कैसे हो सकते हैं? हमारे देश को भी जल्द से जल्द यूसीसी लागू करना चाहिए।

एडवोकेट पठान इसे महंगाई, महंगी शिक्षा, बेरोजगारी, मंदी जैसे मूल मुद्दों से लोगों के दिमाग को भटकाने की कोशिश के तौर पर देखते हैं, सत्ता पक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए यूसीसी कार्ड का इस्तेमाल करना चाहता है।

उन्होंने कहा, भारत के लोगों के साथ कोई डेटा साझा नहीं किया जाता है कि कितनी मुस्लिम महिलाओं ने शरिया कानून के तहत अन्याय और पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं मिलने की शिकायत की है। उन्होंने कहा कि केवल यूसीसी ही महिलाओं की रक्षा कर सकती है और उन्हें समान अधिकार दे सकती है।

शरिया कानून का उदाहरण देते हुए अधिवक्ता ने कहा कि 1400 साल पुराने कानून में महिलाओं (बेटी, मां, दादी, पत्नी) को पैतृक संपत्ति के 1/4 हिस्से का अधिकार दिया गया था।

उन्होंने कहा, यह भी उतना ही सच है कि समुदाय में कानून को समग्र रूप से लागू नहीं किया जाता है। लेकिन क्या गुजरात या केंद्र सरकार गारंटी दे सकती है कि यूसीसी लागू होने के बाद सभी मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकार मिलेंगे?

उन्होंने पूछा, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू होने पर केंद्र द्वारा यही वादा किया गया था। फिर भी आज भी कई महिलाओं को पुरानी परंपरा का पालन करते हुए तलाक दिया जा रहा है। एक वकील के रूप में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं की सुरक्षा के तहत भी, मैंने कई मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता या अन्य नागरिक अधिकार प्राप्त करने में मदद की है, फिर एक अलग अधिनियम क्यों?

 

 (आईएएनएस)

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Created On :   17 Dec 2022 2:01 PM IST

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