राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023: जानिए करौली के चुनाव में किन जातियों का चलता है सिक्का?

जानिए करौली के चुनाव में किन जातियों का चलता है सिक्का?
  • मंदिर, महल और किले से करौली की अनोखी पहचान
  • चार विधानसभा सीट, 1 सामान्य,1 एससी,2 एसटी
  • एक पर बीएसपी तीन पर कांग्रेस का विधायक

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। करौली जिले में चार विधानसभा सीट करौली, हिण्डौन,टोडाभीम और सपोटरा विधानसभा सीट है। करौली सामान्य , हिण्डौन अनुसूचित जाति , टोडाभीम और सपोटरा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।

आपको बता दें करौली की स्थापना यादव वंश के शासक अर्जुनसिंह द्वारा की गई। स्थापना के समय इसका नाम कल्याणपुरी था, जो बाद में काल में करौली हो गया। 19 जुलाई 1997 में सवाई माधोपुर से अलग होकर राज्य के 32वें जिले के रूप में करौली की स्थापना हुई। सांस्कृतिक तौर पर यह जिला मध और जगरोती दो भागों में बंटा हुआ है,इस जिले में ब्रज संस्कृति का प्रभाव है। मंदिर, महल और किले के कारण करौली जिला अपनी अनोखी पहचान रखता है। यहां एक अभयारण्य भी है।

जिले में करीब 20 फीसदी एससी और 16 फीसदी एसटी वर्ग है। जिले की लगभग सभी सीटों पर आरक्षित वर्ग के मतदाताओं का असर पड़ता है। इनके साथ ही जिले में करीब 6 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है। जिले में एससी और एसटी वोटर्स चुनाव में हार जीत का फैसला करते है। ब्राह्मण, राजपूत व जाट मतदाता भी चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। इस बार पार्टियां एससी-एसटी गठजोड़ के साथ मुसलमान वोटों में भी सेंधमारी की कोशिश में लगी हुई हैं।

यहां बीएसपी का अच्छा खासा प्रभाव है, इसलिए यहां चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। यहां प्रत्याशियों का चुनावी गणित मुख्यत: जातिगत समीकरण पर टिका होता है। यहां पार्टी का परंपरागत और प्रत्याशी का सजातीय वोटर्स ही जीत दिलाता है।

करौली विधानसभा सीट

सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित करौली विधानसभा सीट पर भी हर बार विधायक का चेहरा बदल जाता है. यहां बीते 25 सालों में कभी कोई विधायक रिपीट नहीं हो पाया। भले ही करौली सीट सामान्य सीट है, लेकिन चुनाव में एससी एसटी वोटर्स निर्णायक भूमिका में होते है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी उम्मीदवार ने कांग्रेस और बीजेपी को मात दी थी।

2018 में बीएसपी के लाखन सिंह

2013 में कांग्रेस के दर्शन सिंह

2008 में बीजेपी की रोहिणी कमुारी

हिण्डौन विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से भरोसीलाल जाटव

2013 में बीजेपी से राजकुमारी जाटव

2008 में कांग्रेस से भरोसीलाल जाटव

2003 में इंडियन नेशनल लोकदल से कालूराम

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हिण्डौन ऐतिहासिक और पौराणिक शहर है। यहां 31 फीसदी एससी, 8 फीसदी एसटी की आबादी है। एससी और एसटी मतदाता यहां के चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। यहां जाटव और बैरवाओं के वोट सबसे अधिक है, दूसरे नंबर पर मीना मतदाताओं की संख्या है।

यहां बेरोजगारी सबसे प्रमुख समस्या है। किसान सिंचाई के पानी के लिए वहीं युवा शिक्षा और रोजगार के लिए परेशान है। स्वास्थ्य ,सड़क और साफ सफाई की बेसिक सुविधाओं की कमी है।

टोडाभीम विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से पृथ्वीराज मीना

2013 में कांग्रेस से घनश्याम

2008 में निर्दलीय किरोड़ी लाल

एसटी आरक्षित टोडाभीम विधानसभा सीट आदिवासी बाहुल्य सीट है, यहां करीब 30 फीसदी आबादी एसटी और 21 फीसदी आबादी एससी समुदाय की है। पिछले दो चुनाव 2018 और 2013 में यहां से कांग्रेस ने जीत की बाजी मारी थी। जबकि 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज दोनों राष्ट्रीय दलों को चिंता में डाल दिया था। आदिवासी इलाका होने के कारण यहां विकास की काफी गुंजाइश है। जो विकास कागजों पर चलता है उसे जमीन पर दिखने की जरूरत है। यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

सपोटरा विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से रमेश चंद्र मीणा

2013 में कांग्रेस से रमेश चंद्र मीणा

2008 में बीएसपी से रमेश मीणा

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सपोटरा विधानसभा सीट आदिवासी बाहुल्य सीट है। यहां करीब 35 फीसदी एसटी , 25 फीसदी एससी वोटर्स का दबदबा है। 2008 में बीएसपी से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे रमेश मीणा कांग्रेस में जा पहुंचे। तब से रमेश कांग्रेस से उम्मीदवार बनते है और चुनावी भी जीतते है। सीट पर रमेश की मजबूत पकड़ है। यहां बीएसपी का भी अच्छा प्रभुत्व है।

Created On :   30 Oct 2023 7:41 PM IST

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