महरानी Vs महारानी: बीजेपी में एक महारानी बन सकती है दूसरी महारानी की काट, राजघराने के इस चेहरे पर विश्वास जताने की क्या है वजह?
- राजस्थान बीजेपी में घमासान
- वसुंधरा को टक्कर दे पाएंगी महारानी दीया कुमारी
डिजिटल डेस्क, जयपुर। आने वाले दो से तीन महीनों में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसको देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी कमर कस ली है लेकिन सीएम फेस को लेकर पार्टी हाईकमान टेंशन में है। बीजेपी की कद्दावर नेता और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधरा राजे सिंधिया लगातार हाईकमान पर दबाव बना रही हैं ताकि आलाकमान को अपने आगे झुकाया जा सके। लेकिन उनकी दबाव की राजनीति को बीजेपी भांपते हुए उनके सामने एक नई महारानी को लाकर खड़ा कर दिया है यानी आगामी विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहा है क्योंकि एक ही पार्टी से सीएम फेस के लिए उम्मीदवार के तौर पर दो-दो महारानियां हो सकती हैं।
जानकारी के मुताबिक, बीजेपी वसुंधरा राजे सिंधिया से खुश नहीं है क्योंकि वो पार्टी लाइन से हटकर वो अपना निर्णय हमेशा से लेती रही हैं। अब इन्हीं की काट बीजेपी ने ढूंढ ली है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, महारानी वसुंधरा राजे को छोड़ महारानी दीया कुमारी को बीजेपी सीएम फेस के लिए खड़ा कर सकती हैं ताकि राजे के कोर वोट बैंक को नाराज किए बिना उन्हें किनारे किया जा सके। वसुंधरा राजे को जमीन से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है। इनकी पैठ प्रदेश के राजपूतों, जाट और महिलाओं में जबरदस्त है। राजे को बीजेपी साइडलाइन करने में लगी है। इस बात की हवा इसलिए मिलती है क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान के दौरे पर गए हुए थे। जहां महारानी दीया कु्मारी पीएम के साथ मंच साझा करती हुई दिखाई दी थीं। तब से अटकलें लगाई जा रही है कि कहीं बीजेपी ने मास्टरप्लान के तहत पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को किनारे लगाने में तो नहीं जुट गई है। तो आइए जानते हैं कि बीजेपी राजे को छोड़ दीया कुमारी पर विश्वास क्यों कर रही है आखिर क्या कारण है कि एक महारानी को नजरअंदाज कर दूसरी महारानी पर भाजपा नेतृत्व मेहरबान नजर आ रहा है।
राजपूत वोटर्स को अपने पाले में लाना
भाजपा की नजर राजस्थान के राजपूत वोटर्स पर है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को राजपूत मतदाताओं से उतना वोट नहीं मिला जितना की वो अपेक्षा कर रही थी। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इन्हीं वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी महारानी दीया कुमारी को प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ा रही है ताकि वसुंधरा राजे की कमी को पूरा किया जा सके। मजे की बात ये है कि वसुंधरा भी राजपूत समुदाय से ही आती हैं लेकिन इन पर भरोसा न करके बीजेपी साफ-सुथरा नए चेहरे की तलाश कर रही है जो दीया कुमारी के रूप में पार्टी को मिलती हुई दिखाई दे रही हैं। राजे पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं।
दीया के अलावा राजस्थान बीजेपी के पास कई सारे ठाकुर नेता हैं। जिनमें नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे दिग्गज नेता हैं। सियासत के जानकारों का कहना है कि, इन नेताओं से ज्यादा महिला नेता दीया कुमारी का प्रभाव आगामी विधानसभा के चुनाव पर पड़ सकता है क्योंकि ये राजघराने से आती हैं और राजपूतों के अलावा अन्य समुदायों में इनका जबरदस्त प्रभाव है जो बीजेपी को सरकार बनाने में सीधे तौर पर फायदा पहुंचा सकती है।
राजस्थान में करीब 14 फीसदी राजपूत वोटर्स हैं, जो कभी भी पासा पलट सकते हैं। इनका प्रभाव राजस्थान की 200 सीटों में से 60 सीटों पर अच्छा खासा है। खास कर जयपुर, जालोर, जैसलमेर, बाड़मेर, कोटा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, नागौर, जोधपुर, राजसमंद, पाली ,बीकानेर और भीलवाड़ा जिलों में राजपूत वोटों की संख्या काफी है। इस क्षेत्र में राजपूतों की नाराजगी किसी भी पार्टी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। इसलिए बीजेपी मजबूत और लोकप्रिय राजपूत नेता को देखते हुए दीया कुमारी को आगे बढ़ाने में लगी हुई है।
महारानी बनाम महारानी
अगर आने वाले समय में बीजेपी की ओर से दीया कुमारी सीएम कैंडिडेट के लिए पार्टी का चेहरा होती हैं तो सबसे बड़ा झटका दूसरी महारानी वसुंधरा राजे को ही लगने वाला है। राजे ही वो व्यक्ति हैं जो दीया कुमारी को राजनीति में पहचान दिलाई थी लेकिन आज हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। आज उन्हें ही दीया कुमारी से चुनौती मिल रही है।
साल 2013 की बात है जब सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को हराने के लिए वसुंधरा राजे किसी मजबूत कैंडिडेट को ढूंढ रही थीं। तब उनकी नजर महारानी दीया कुमारी पर पड़ी। जिन पर उन्होंने दांव चला और राजे अपने दांव में सफल भी हुईं। काफी वोटों की संख्या से कुमारी ने साल 2013 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में मीणा को हराकर सवाई माधोपुर की सीट जीत ली। लेकिन धीरे-धीरे समय बीतने के बाद दोनों महारानियों के रिश्ते में कड़ावहट आने लगी। कहा जाता है कि दीया कुमारी चुनाव जीतने के बाद लोगों से जुड़ने के लिए जमीन पर उतरने लगीं, जिसकी वजह से वो लोकप्रिय होने लगी। यह देख राजे को कुछ खास पसंद नहीं आया। फिर साल 2018 के विधानसभा चनाव के दौरान वसुंधरा ने दीया का टिकट काट दिया जो काफी चर्चा का विषय बना रहा। लेकिन ये दीया के लिए काफी कारगर साबित हुआ और बीजेपी हाईकमान ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सांसदी का टिकट उन्हें थमा दिया। तब से अब तक वो पार्टी की चहेती बनी हुई हैं।
जो मेवाड़ जीता वही करेगा राजस्थान पर राज
साल 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने महारानी दीया को मेवाड़ से टिकट दिया, जिस पर कुमारी ने पार्टी को जीत दिलाई। दीया कुमारी पर बीजेपी का दांव चलना मेवाड़ को लेकर भी हो सकता है क्योंकि कहा जाता है कि जिस पार्टी ने मेवाड़ को जीत लिया उसी के हाथ में राजस्थान की सत्ता आती है।
साल 2018 के आकंड़े को छोड़ दे तो इसकी पुष्टि पिछले चुनाव के नतीजों से साफ तौर पर की जा सकती हैं। साल 2003 के आकंड़े पर नजर डाले तो मेवाड़ के 25 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि कांग्रेस के हाथ में केवल 5 सीट ही लगी थी। उस समय बीजेपी की सरकार बनी थी। कुछ ऐसा ही साल 2008 में भी हुआ था। उस समय कांग्रेस, बीजेपी पर बढ़त बनाते हुए 25 सीटों में से 19 सीटों पर विजय हासिल की थी जबकि बीजेपी को महज 7 सीटों पर सफलता मिली थी। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और प्रदेश में सरकार बनाने में सफलता हासिल करी। वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 2 जबकि बीजेपी ने 23 सीटों पर जीत हासिल करी। 2013 में बीजेपी की सरकार राजस्थान में बनी थी लेकिन 2018 के नतीजे कुछ अलग रहे। 25 सीटों में से बीजेपी 15 सीटों पर जीत हासिल कर के भी प्रदेश की सत्ता में नहीं आ पाई।
हिंदुत्व और राष्ट्रवादी नेता
महारानी दीया कुमारी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर प्रखर तरीके से अपनी बात रखती हैं। इसलिए भी पार्टी की पहली पंसद बनी हुई हैं। दीया कुमारी जयपुर राजघराना से संबंध रखती हैं। महारानी दीया कुमारी कई बार दावा कर चुकी हैं कि वो भगवान श्री राम के खानदान से संबंध रखती हैं। उनका दावा है कि राम के बेटे कुश के 399 वां पीढ़ी से वो आती हैं। दीया कुमारी के पिता भवानी सिंह एक महान यौद्धा थे। उन्होंने साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान काफी अहम भूमिका निभाई थी। जिसको देखते हुए भारत सरकार ने उनकी वीरता को सलाम करते हुए महावीर चक्र से सम्मानित किया था। कुल मिलाकर देखें तो दीया कुमारी राजघराना खानदान, हिंदुत्व वाली नेता, किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं, इसलिए पार्टी इन्हें सीएम फेस के तौर पर देख सकती हैं।
वसुंधरा की दबाव पॉलिटिक्स
दीया कुमारी को चुनने का कारण वसुंधरा की बगावत हो सकती है। वसुंधरा राजे अपने बयानों और फैसलों से बीजेपी को असहज कर देती हैं। अभी हाल ही में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने आरोप लगाया था। जिसके पीछे राजे को जिम्मेदार बताया गया था। इन सबके अलावा वसुंधरा को जब भी पार्टी के अहम मीटिंग के लिए निमंत्रण भेजा जाता है तो वो वहां से नदारद ही रहती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, करीब चार साल से बीजेपी ने राजे को प्रदेश की अहम मीटिंग और प्रचारों से दूर रखा था लेकिन अब वो खुद बीजेपी की बैठकों से दूरियां बना रही है ताकि आलाकमान पर सीएम उम्मीदवारी को लेकर दबाव बनाया जा सके लेकिन बीजेपी स्थिति को भांपते हुए नए चेहरे की तलाश में जुट गई है और कहीं न कहीं बीजेपी महारानी दीया कुमारी के फेस पर ठहरती हुई दिखाई दे रही है।
Created On :   28 Sept 2023 4:58 PM IST