कांग्रेस अक्सर अपनाती है 'कृष्ण' की रणनीति, खुद 'रण छोड़' पहले भी कर चुकी है विरोधी दल को सत्ता से दूर, क्या इस बार बीजेपी पर चलेगा दांव?
- 2024 में कमाल कर पाएगी कांग्रेस
- अपने इतिहास को फिर दोहरागी कांग्रेस?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत में भगवान कृष्ण की एक अहम सीख रही है। जब युद्ध जीत न सको तो कुछ देर के लिए 'रण छोड़' कर चले जाओ। इसी सीख के आधार पर पौराणिक कथाओं में उन्हें 'रणछोड़' कहा गया है। कृष्ण की इस युद्ध नीति को कांग्रेस भी अक्सर सियासत में आजमाती आई है। और, अपने विरोधियों को मात देने में भी कामयाब रही है। एक बार फिर कांग्रेस उसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है। क्या 'रणछोड़' वाली कृष्ण की सीख बीजेपी के खिलाफ भी कारगर होगी?
आगामी आम चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने अपना कुनबा बढ़ना शुरू कर दिया है। मोदी सरकार को मात देने के लिए 18 जुलाई को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 26 दलों के साथ बैठक की थी। जिसमें उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम की पार्टियां शामिल हुई थी। बेंगलुरु में विपक्षी एकता की बैठक में यह तय हुआ कि सभी मिलकर मौजूदा सरकार से लड़ेंगे और अपनी पूरी ताकत लगा देंगे ताकि पीएम मोदी की जीत की यात्रा को रोका जा सके। इस महाबैठक में नए गठबंधन का एलान भी किया गया जिसका नाम 'इंडिया' रखा गया जिसका अर्थ इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलांयस बताया गया।
विपक्षी एकता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा पीएम फेस ही है। बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी पार्टियों से कहा कि कांग्रेस को पीएम पद या किसी और तरह का कोई लालच नहीं है कांग्रेस को सत्ता की नहीं बल्कि लोकतंत्र की चिंता है। खड़गे के इसी बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने सत्ता पक्ष को धुल चटाने के लिए ऐसी बात कही हो। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जिसमें कांग्रेस ने अपने विरोधियों को चित करने के लिए सत्ता से दूर रहने का ही फैसला किया था। तो आइए जानते हैं कि कांग्रेस ने आखिर कब-कब साइड में रहते हुए दूसरी पार्टियों को सपोर्ट करे उन्हें सत्ता में ले आई ताकि उनका विरोधी, दिल्ली की गद्दी पर न बैठ सके।
चौधरी चरण सिंह
भारतीय इतिहास में चौधरी चरण सिंह को कांग्रेस अपना समर्थन देकर पीएम बना चुकी है। साल 1977 के आम चुनाव के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ जबरदस्त लहर चली थी। जिसकी वजह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी थी। साल 1977 में जनता पार्टी के साथ चौधरी चरण सिंह ने अलायंस कर चुनाव लड़ा था और वो पार्टी की ओर से पीएम पद के लिए उम्मीदवार भी थे। लेकिन अपने साथी प्रतिद्वंदी और दलित नेता जगजीवन राम की वजह से पीछे हटना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने अपना समर्थन मोरारजी देसाई को दे दिया।
इंदिरा गांधी के खिलाफ साथ में लड़े गठबंधन में हलचल होने लगी। आलम यह था कि मोरारजी देसाई के कैबिनेट में चरण सिंह और जगजीवन राम को उप-प्रधानमंत्री बनाया तो गया लेकिन तीनों नेताओं में खींचतान होने लगी। करीब दो सालों तक गठबंधन की सरकार चलने के बाद फूट पड़ गई और तीनों अलग हो गए। आपस में समन्वय न बन पाने पर पीएम पद से मोरारजी देसाई को इस्तीफा देना पड़ा था। कहा जाता है कि सरकार गिरने की वजह और भी थी।
मोरारजी की सरकार गिरने के बाद चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के समर्थन से 28 जुलाई, 1979 को समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों और कांग्रेस (यू) के समर्थन से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। लेकिन कुछ ही महीनों में कांग्रेस ने चरण सिंह से अपना समर्थन ले लिया जिसकी वजह से उन्हें 14 जनवरी साल 1980 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
चंद्रशेखर
साल 1986 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की थी। जिसका मुख्य कारण इंदिरा गांधी की हत्या बताई जाती है। लोगों के मन में कांग्रेस पार्टी के प्रति सहानुभूति थी। जिसकी वजह से कांग्रेस 400 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही, जो अब तक का सर्वाधिक प्रदर्शन रहा है। लेकिन 1989 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस को उतनी सीटें नहीं मिली जिससे वो सरकार बना सके। तब बीजेपी और वाम दलों के समर्थन के साथ जनता दल के विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार बनाने में कामयाब रहे थे।
विश्वनाथ प्रताप सिंह को पीएम बने अभी एक साल भी नहीं हुआ था तभी बाबरी मस्जिद का मामला खूब जोरशोर से उठा। उस समय बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी देश के अलग-अलग हिस्सों में रथ यात्रा निकाल रहे थे। इसी क्रम में बिहार में रथ यात्रा निकाली गई थी। बिहार में रथ यात्रा निकालने गए आडवाणी को उस समय मुख्यमंत्री रहे लालू यादव ने गिरफ्तार करवा दिया। जिस पर बीजेपी ने अपना आक्रोश जाहिर किया और वीपी सिंह की सरकार से अपना समर्थन ले लिया जिसकी वजह से उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और सरकार गिर गई।
बीजेपी के अलग होने के बाद जनता दल के नेता चंद्रशेखर अपने 64 सांसदों के साथ अलग हो गए और अपनी अलग पार्टी समाजवादी जनता पार्टी बनाई और कांग्रेस के साथ चले गए। राजनीतिक उठापठक के बीच कांग्रेस ने चंद्रशेखर को अपना समर्थन दे दिया जिसकी मदद से वो पीएम की कुर्सी पर विराजमान हो गए। लेकिन महज तीन महीने के अंदर ही उनकी सरकार गिर गई। कांग्रेस पार्टी ने चंद्रशेखर पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सरकार में रहते हुए पूर्व पीएम राजीव गांधी का जासूसी करवाया है इसलिए वो अपना समर्थन वापस लेती है। 6 मार्च साल 1991 को चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
एचडी देवगौड़ा
साल 1996 के आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिली थी। ऐसे में सवाल उठने लगे थे कि आखिर देश का अगला पीएम कौन बनेगा। तब तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया। जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई लेकिन महज 13 दिनों में वाजपेयी की सरकार गिर गई थी।
कांग्रेस के पास 1996 में 141 सांसद थे। भाजपा की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस ने एचडी देवगौड़ा को अपना समर्थन दिया जिसकी वजह से वो प्रधानमंत्री बने। लेकिन कुछ ही समय के बाद कांग्रेस पार्टी में बड़ा फेर बदल हुआ और पार्टी को नया अध्यक्ष सीताराम केसरी के रूप में मिला। इसके बाद केसरी ने देवगौड़ा से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसकी वजह से एक बार फिर सरकार गिर गई।
कहा जाता है कि देवगौड़ा सरकार से सपोर्ट, केसरी ने इसलिए ले लिया क्योंकि उनके मन में भी पीएम बनने की इच्छा थी। इसी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली में कई बार अध्यक्ष केसरी ने बहुत सारे विपक्षी दलों से बात की ताकि उनका प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो सके लेकिन पीएम की कुर्सी तक सीताराम केसरी पहुंच न सके।
इंद्र कुमार गुजराल
साल 1996 के आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत न मिलने की वजह से देश की सियासत में खूब उठापटक हुई। आलम यह रहा कि दो सालों के अंदर देश ने तीन पीएम बनते और इस्तीफा देते हुए देखे। सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी, दूसरे यूनाइटेड फ्रंट के एचडी देवगौड़ा उसके बाद तीसरे इंद्र कुमार गुजराल पीएम बने। राजनीतिक अस्थिरता के बीच इंद्र कुमार देश के अगले पीएम बने लेकिन उस समय कई दिग्गज प्रधानमंत्री बनने के लाइन में खड़े थे। कहा जाता है कि जितने भी पीएम की कुर्सी के लिए अपना दम भर रहे थे उन्हें पीछे करने में उनके अपने ही लगे हुए थे। फिर कांग्रेस ने यूनाइटेड फ्रंट के नेता इंद्र कुमार गुजराल को अपना समर्थन देकर उन्हें पीएम बनाया। कहा जाता है कि दिल्ली में कई दौर के बैठक करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी पीएम नहीं बन सके। जिसका मुख्य कारण अपनी ही पार्टी के नेता रहे। केसरी को प्रधानमंत्री न बनने देना प्रणब मुखर्जी, शरद पवार, अर्जुन सिंह, जीतेंद्र प्रसाद जैसे लोगों को माना जाता रहा है।
यूनाइटेड फ्रंट के नेता इंद्र कुमार गुजराल के पीएम बन जाने के बाद भी कई बार सरकार गिराने की कोशिश की गई थी। जानकारों का कहना है कि यूनाइटेड फ्रंट में भी ऐसे कई नेता थे जिन्होंने गुजराल के पीएम बनने पर अपनी असहमती जताई थी। इसके बावजूद वो पीएम बने। कहा जाता है कि गुजराल को लेकर भी कई दिग्गज नेताओं ने अपनी असहमती जाता दी थी। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, इंद्र कुमार गुजराल को पीएम बनाने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के बावजूद प्रधानमंत्री नहीं चुन पा रही है। सीताराम केसरी के नाम पर कोई भी वरिष्ठ नेता सहमत नहीं हो रहा था। इसकी वजह से गठबंधन के साथी रहे यूनाइटेड फ्रंट के नेता इंद्र कुमार गुजराल के नाम को चूना गया जिस पर सहमती और असहमती के साथ पीएम बना दिया गया था। कांग्रेस के तत्कालिन अध्यक्ष रहे सीताराम केसरी ने गुजराल के नाम पर आसानी से हामी भर दी थी क्योंकि दोनों नेताओं के बीच गहरी दोस्ती थी।
इंद्र कुमार की पीएम बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। पीएम उम्मीदवार का चयन करने के लिए 21 अप्रैल 1997 को गठबंधन पार्टी की बैठक हुई थी। इस बैठक में सभी दल के नेताओं ने काफी देर तक पीएम फेस को लेकर चर्चा की लेकिन बात नहीं बन पा रही थी। बैठक में इंद्र कुमार गुजराल भी मौजूद थे लेकिन सहमती न बन पाने पर वो मीटिंग से चले गए और जाकर सो गए थे। इस बीच काफी माथापच्ची करने के बाद इंद्र कुमार के नाम पर मुहर लगा कि वहीं देश के अगले (12 वें नंबर) पीएम होंगे। सोने चले गए कुमार को तब तक पता नहीं था कि मीटिंग में उनके नाम पर मुहर लगी चुकी है। सो रहे गुजराल को तेलुगू देशम पार्टी के एक सांसद ने बताया की बैठक में पीएम की कुर्सी के लिए आपका नाम तय हुआ है। सांसद की बात सुन गुजराल खुशी से उछल पड़े और जानकारी देने वाले नेता को झट से गले लगा लिया था।
Created On :   21 July 2023 4:14 PM IST