अंतरराष्ट्रीय: डॉ शफीकुर रहमान का दावा 'शरिया' लॉ से चलेगा बांग्लादेश, क्या भारत अपने पड़ोस में एक और पाकिस्तान पनपते देखने को तैयार है?
नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)।बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद भारत के विपक्षी दल इस बात का दावा करने लगे कि भारत में भी यही स्थिति उत्पन्न हो सकती है। विपक्ष दावा कर रहा था कि लोग सरकार के तानाशाही रवैये से परेशान हैं और उनके मन में असंतोष व्याप्त है। जबकि बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ विद्रोह की आड़ में जमात-ए-इस्लामी और उसकी स्टूडेंट विंग ने मिलकर जो खेल रचा वह बड़ा वीभत्स है। मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को जमकर कुचला गया। वहां के अल्पसंख्यकों के खिलाफ जमकर ज्यादती हुई। लेकिन वहां अंतरिम सरकार के गठन के बाद कट्टरपंथी माने जाने वाले जमात-ए-इस्लामी संगठन की तरफ से दावा किया जा रहा है कि उनका ख्वाब 'ग्रेट बांग्लादेश' का है।
जमात-ए-इस्लामी के चीफ डॉ शफीकुर रहमान ने भारतीय मीडिया से बात करते हुए इस बात का दावा किया कि वह बांग्लादेश को इस्लामिक कानून से चलाएंगे। ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि क्या बांग्लादेश पाकिस्तान की राह पर चल रहा है और एक मुस्लिम कट्टरपंथी देश बनने जा रहा है?
आईएएनएस के साथ खास बातचीत में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने दावा किया था कि, आज बांग्लादेश सीरिया या अफगानिस्तान जैसा दिखता है। वहां कोई कानून-व्यवस्था नहीं है और देश पूरी तरह से कानून विहीन है। इसके बाद, यह मोहम्मद यूनुस की सरकार पर निर्भर करता है कि वे क्या सोचते हैं? क्या वह इसे नियंत्रित कर सकते हैं? शायद हमारे यहां फिर से लोकतंत्र होगा। यदि वह ऐसा नहीं कर सके, तो बांग्लादेश अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसा बन जायेगा।
वहीं दूसरी तरफ आईएएनएस के साथ बातचीत करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में धार्मिक मामलों के सलाहकार अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन ने दावा किया था कि भारत बांग्लादेश का 'सबसे अच्छा पड़ोसी' है। ऐसे में हम भारत की चिंता पर गौर कर रहे हैं और शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और बर्बरता की कई घटनाओं में शामिल अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा था कि अब बांग्लादेश में कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं है, यद्यपि कुछ छिटपुट घटनाएं हो सकती हैं। हमारी सरकार देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए सावधान है। हमने मस्जिदों के इमामों को गैर-मुसलमानों के खिलाफ दंगों के बारे में बात करने तथा उनके पूजा स्थलों को संरक्षित करने के लिए दबाव डालने का निर्देश दिया है। उन्हें उपदेश तथा प्रेरक भाषण देने के लिए कहा गया है। यह काम पहले ही शुरू हो चुका है। उन्होंने आगे कहा था कि हम अपने अल्पसंख्यकों का सहयोग व समर्थन करने के लिए तैयार हैं, ताकि वे बांग्लादेश में शांतिपूर्वक रह सकें। हमारा देश सेक्युलर है तथा सभी को अपने धर्मों का पालन करने तथा उनका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है - हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सभी के अधिकार समान हैं। कोई धार्मिक भेदभाव नहीं है। कुछ उपद्रवी पूजा स्थलों में तोड़फोड़ कर रहे हैं। हम ऐसे सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई को तैयार हैं।
वहीं अब जमात-ए-इस्लामी के चीफ डॉ शफीकुर रहमान ने भारतीय मीडिया से जो कहा उसके बाद सवाल उठना लाजमी है कि क्या सच में बांग्लादेश कहीं पाकिस्तान की राह पर तो नहीं चल निकला है? जो हालात पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हैं, कहीं वैसा ही हाल बांग्लादेश में तो अल्पसंख्यकों का नहीं होने वाला है? इस चिंता के पीछे की वजह भी साफ है। क्योंकि डॉ शफीकुर रहमान ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर जो दावा किया जा रहा है कि उनमें जमात, हिफाजत और बीएनपी जैसे संगठनों का हाथ है, वह बिल्कुल गलत है। वह इस बात का भी दावा करते नजर आए कि जब तक सरकार पूरी तरह से एक्शन में नहीं आ जाती हमारे लोग अल्पसंख्यकों के पूजा स्थल और उनकी सुरक्षा के लिए हमने लगाए हैं। उन्होंने साथ ही यह दावा भी कर दिया कि बांग्लादेश को धर्म के हिसाब से चलना चाहिए और वह भी यही मानते हैं। उनका कहना था कि शांति स्थापित करने के लिए यह जरूरी है। क्योंकि धर्म के बिना समाज में इंसाफ नहीं हो सकता है। उन्होंने यह कहा कि हम भविष्य में यह सोच सकते हैं कि जमात का जो सपना था कि बांग्लादेश पाकिस्तान की तरह एक इस्लामिक देश बने, वह पूरा होगा। उन्होंने इस बात का दावा भी कर दिया कि 21वीं सदी में भी वह शरिया के पक्षधर हैं। उन्होंने यह तक कह दिया कि हम कोशिश करेंगे कि बांग्लादेश हमारी विचारधारा के हिसाब से चले जो मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक सोच है।
ऐसे में अब लोगों को खासकर भारतीयों को यह सवाल परेशान करने लगा है कि क्या बांग्लादेश पाकिस्तान की राह पर चल निकला है? क्या हमारा एक और पड़ोसी देश इस्लामीकरण की राह पर है? क्या अब बांग्लादेश भी लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले देश के बदले शरिया से चलने वाला देश तो नहीं बन जाएगा?
डॉ शफीकुर रहमान के बयान पर भारत के मुस्लिम स्कॉलर और रक्षा विशेषज्ञों से आईएएनएस ने बातचीत कि, ऐसे में इस्लामिक स्कॉलर और उत्तराखंड मदरसा एजुकेशन बोर्ड के चेयरमैन मुफ्ती शमून कासमी ने कहा कि, बांग्लादेश में जो हालात बने हैं और वहां जिस तरह से हिंसा हुई है। वहां अल्पसंख्यकों को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया गया है वो निंदनीय है, दंडनीय है। उन्होंने आगे कहा कि वहां जो रहमान साहब शरीयत की वकालत कर रहे हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि वहां क्या ऐसे शरीयत लागू होगी कि वहां लोगों को परेशान किया जाए, उनके जानोमाल को नुकसान पहुंचाया जाए, उनके पूजा स्थलों और मंदिरों को तोड़ा जाए। ये इस्लामी तालीम और रिवाज के खिलाफ है, इस्लाम तो अमन का नाम है। 1971 में भारत ने बांग्लादेश की जो मदद की थी और वहां के हीरो शेख मुजीबुर्रहमान थे। जिन्होंने भारत की मदद से पाकिस्तान के शोषण से आजादी पाकर एक अलग देश बनाया था। इसके लिए एक-एक बांग्लादेशी भारत का कर्जदार है।
वहीं इस मामले पर विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने कहा कि बांग्लादेश में शरिया लगाने का सीधा मतलब है कि वहां पर अराजकता तेजी से फैलेगी। क्योंकि वहां की आम जनता के साथ वहां जिन्होंने निवेश किया है या जो वहां के उद्योगपति हैं वह इसे स्वीकार कर पाएंगे। वहां विदेशी निवेश भी आना बंद हो जाएगा। वहां पाकिस्तान और अफगानिस्तान वाली स्थिति बन जाएगी। जो कि इस पूरे क्षेत्र के हित में नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि वैसे तो बांग्लादेश में शरिया लागू करना बहुत मुश्किल है। क्योंकि जिस तरह के शरिया की बात वहां के जमात के लोग करते हैं वह वहां के सूफी समाज या संस्थानों को मंजूर नहीं होगा। पाकिस्तान का मसला अलग है। दूसरी तरफ बांग्लादेश की सेना में भी विभाजन है। इसके साथ ही बांग्लादेश के अंदर आम जनता सेक्युलर पॉलिटिक्स में विश्वास करती है। इसलिए बांग्लादेश और पाकिस्तान में बहुत अंतर है। बांग्लादेश में बांग्ला राष्ट्रवाद लोगों के अंदर जड़ों तक समाई हुई है। इसके साथ ही जमात-ए-इस्लामी वहां पर ज्यादा पॉपुलर ताकत भी नहीं हैं। हालांकि इस समय इनको अमेरिकन सपोर्ट है वहां की आर्मी का समर्थन है लेकिन, अगर वह वहां ऐसा कुछ थोपने की कोशिश करते हैं तो मैं देख पा रहा हूं कि वहां आंतरिक अशांति तेजी से फैलेगी।
कमर आगा ने आगे कहा कि अगर वहां शरिया लागू होती है तो वहां तो 8 प्रतिशत हिंदू हैं उन्हें पाकिस्तान की तरह दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश होगा। उन्होंने कहा कि वहां तो पहले से ही अल्पसंख्यकों पर मुसीबत आन पड़ी है। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की कोई भी गतिविधि वहां होना क्षेत्र के लिए समस्या है और यह भी साफ है कि वहां अमेरिका की मदद से नई सरकार आई है। ऐसे में सभी देशों को एकजुट होकर अमेरिका पर दबाव बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश में शरिया लागू हो जाता है तो इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा क्योंकि हमारी सीमा का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश से लगता है। ऐसे में यहां भी नए उग्रवादी संगठन बनेंगे वह इस देश में भी ऐसी ही राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करेंगे। लोगों में गुस्सा बढ़ेगा। इसके साथ ही भारत का वहां बड़ा निवेश है। ऐसे में इसका भी सीधा असर भारत पर दिखेगा।
वहीं इसको लेकर मुस्लिम स्कॉलर मुफ्ती वजाहत कासमी ने कहा कि जब पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, पाकिस्तान को इस्लाम के नाम पर बंटवारा किया गया था। यह कहा गया था कि मुसलमान एक इस्लामी निजाम चाहते हैं, इस्लामी अनुशासन चाहते हैं इसलिए हमें पाकिस्तान चाहिए। फिर वो लोग जो पाकिस्तान चले गये थे कुछ दिनों बाद उन्होंने इस्लाम के निजाम से अपने आप को अलग करके एक सेक्युलर निज़ाम बनाने की कोशिश की। शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्लादेश की जो बुनियाद रखी वो सेक्युलर निज़ाम पर है, इस्लाम के निज़ाम पर बांग्लादेश को नहीं बंटवारा किया गया था। बांग्लादेश में बड़ी आबादी अल्पसंख्यकों की है। बांग्लादेश अपने गठन के बाद से अब तक सेक्युलर कानून से चलता आ रहा था। ऐसे में इस तरह की बातों पर बांग्लादेश के लोगों को सामने आकर खुद से जवाब देना चाहिए। बांग्लादेश में जो कुछ हुआ हम उसका समर्थन बिलकुल नहीं करेंगे। वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ जो कुछ हुआ हम उसका समर्थन नहीं करेंगे। जिस तरह हमारे हिंदू भाइयों और बहनों को नुक़सान पहुंचाया गया हम उसका समर्थन नहीं करेंगे। ऐसे में बांग्लादेश में सेक्युलर सरकार रहे इसके लिए भारत की सरकार को कोशिश करनी चाहिए।
इसको लेकर ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के चेयरमैन मौलाना साजिद रशीदी ने कहा कि पाकिस्तान मुसलमान मुल्क है लेकिन, वहां शरिया क़ानून नहीं है। अफ़ग़ानिस्तान में शरिया कानून है, अगर जमात के लोग बांग्लादेश में शरिया लाना चाहते हैं तो इसमें कोई तकलीफ नहीं है क्योंकि शरिया में किसी अल्पसंख्यक के खिलाफ कुछ भी नहीं है। जितना हिंदुस्तान में इस बात को फैलाया गया कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार हुए ऐसा कुछ भी नहीं था वहां। हमने तो देखा कि जमात के लोग खुद वहां मंदिरों की हिफाजत कर रहे हैं। लेकिन, हिंदुस्तान में मीडिया ने जिस तरह से बांग्लादेश के नाम पर भारत के मुसलमानों को घेरने की बात की वह निंदनीय है।
वहीं इस मामले पर पूर्व डीजीपी जम्मू-कश्मीर एसपी वैद्य ने कहा कि इस मामले को लेकर बांग्लादेश के लोगों को फैसला करना होगा कि क्या वह अफगानिस्तान की तरह के हालात में जीना चाहते हैं। क्या वह शरिया लॉ से चलने वाले देश में जीना चाहते हैं क्योंकि बांग्लादेश तो एक विकास के रास्ते पर चलने वाला देश रहा है। ऐसे में वहां जो 1.5 करोड़ के करीब वहां अल्पसंख्यक हैं उन्हें भी वहां शरिया लागू होने के बाद फैसला करना पड़ेगा कि क्या वह शरिया लॉ के साथ जीना पसंद करेंगे क्योंकि वहां उन्हें कोई हक नहीं मिलेगा। ऐसे में उन्हें मजबूरन शायद अपने लिए एक जमीन का टुकड़ा मांगना पड़ेगा और शायद उनसे अलग रहना पड़ेगा, ये फैसला वहां के लोग करेंगे ।
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Created On :   21 Aug 2024 2:04 PM GMT