India-China: 14 घंटे चली कमांडर स्तर की छठवीं बैठक, फ्रंटलाइन पर ज्यादा सैनिकों को न भेजने पर राजी हुए दोनों देश
- चीन ने पैन्गॉग त्सो के दक्षिणी इलाके को खाली करने को कहा
- पहली बार विदेश मंत्रालय के अफसर शामिल हुए
- भारत ने साफ कहा- पीछे हटने की शुरुआत चीन करे
- क्योंकि विवाद की वजह चीनी सेना है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ जारी विवाद के बीच मोल्डो में सैन्य (कॉर्प्स कमांडर्स) स्तर की छठवीं बैठक हुई। चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने मंगलवार रात कहा कि चीन और भारत दोनों में फ्रंटलाइन पर ज्यादा सैनिक भेजे जाने को रोकने के लिए सहमति बनी है। साथ ही दोनों पक्ष ग्राउंड पर मौजूदा स्थिति को बदलने पर एकपक्षीय फैसला नहीं लेने के लिए तैयार हुए हैं। इसके अलावा दोनों ओर से ऐसा कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा, जिससे एलएसी पर स्थिति और अधिक बिगड़े।
वहीं सूत्रों के अनुसाऱ 14 घंटे तक चली बातचीत में चीन ने भारत से 29 अगस्त के बाद पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट पर कब्जे ठिकानों को खाली करने के लिए कहा है। वहीं, भारत ने चीन से कहा कि वह पूर्वी लद्दाख में उन पोजिशन पर वापस जाए, जो अप्रैल-मई 2020 के पहले थीं। इसके लिए डेडलाइन तय हो। बैठक सोमवार को सुबह 10 बजे से रात 11 बजे तक चली। इसमें पहली बार इसमें विदेश मंत्रालय के अफसर भी शामिल हुए। इसके अलावा 14 कॉर्प्स चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेन ने हिस्सा लिया। बैठक में दोनों देशों के बीच तनाव को दूर करने के लिए लगातार बातचीत जारी रखने पर सहमति बनी।
भारत ने साफ कहा- पीछे हटने की शुरुआत चीन करे
भारत ने साफ कहा कि चीन को सभी विवादित पॉइंट से फौरन पीछे हटना चाहिए। इसके अलावा, पीछे हटने की शुरुआत चीन करे, क्योंकि विवाद की वजह चीनी सेना है। बैठक में कहा गया कि अगर चीन पूरी तरह से वापस जाने और पहले जैसी स्थिति बहाल नहीं करेगा, तो भारतीय सेना सर्दियों में भी सीमा पर डटी रहेगी। बैठक में भारत की ओर से साफ-साफ कह दिया गया कि अगर चीन पूरी तरह से वापस जाने और पहले जैसी स्थिति बहाल नहीं करेगा, तो भारतीय सेना लॉन्ग हॉल के लिए तैयार है। यानी भारतीय सेना सर्दियों में भी सीमा पर डटी रहेगी।
चीन ने पैन्गॉग त्सो के दक्षिणी इलाके को खाली करने को कहा
चीन ने कहा कि भारत को पैन्गॉग त्सो के दक्षिणी इलाके की उन पोजिशन को खाली करना चाहिए, जिन पर 29 अगस्त के बाद कब्जा किया है। उधर, भारत ने भी अप्रैल-मई 2020 के पहले की स्थिति को बहाल करने पर जोर दिया।
मीटिंग का एजेंडा पहले तय किया गया था
कॉर्प्स कमांडर्स की बैठक के पहले भारत ने मीटिंग का एजेंडा और मुद्दे पहले तय कर लिए थे। इन पर पिछले हफ्ते एक हाई-लेवल की मीटिंग में चर्चा हुई थी। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सीडीएस जनरल बिपिन रावत और आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकंद नरवणे शामिल हुए थे।
दक्षिणी तट भारत के लिए अहम
पैंगोंग झील का दक्षिणी तट भारत के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यहां भारतीय सेना का कब्जा है। हमेशा से यहां भारतीय सेना की मौजूदगी ज्यादा रही है। जबकि झील के उत्तरी क्षेत्र में भारतीय सैनिक सिर्फ पेट्रोलिंग करते रहे हैं। यही वजह है कि चीन की ओर से बातचीत के दौरान यहां से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग कर रहा है। दक्षिणी हिस्सा चुशूल और रेजांग लॉ के करीब पड़ता है।
चुशूल क्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण इलाका
चुशूल क्षेत्र एक ऐसा इलाका जिसका इस्तेमाल अटैक करने के लिए लॉन्च पैड के रूप में किया जा सकता है क्योंकि यहां काफी जगह समतल है, जो सैन्य गतिविधियों के लिए मुफीद मानी जाती है। 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी दोनों हिस्सों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया था और भारत को शिकस्त झेलनी पड़ी थी। भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण माहौल को खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर एक-दूसरे से बातचीत जारी रखने और कम्युनिकेशन बनाए रखने पर सहमत हुए हैं।
Created On :   22 Sept 2020 9:50 PM IST