Rafale Fighter Jet in India: आज दोपहर 2 बजे भारत पहुंच सकते हैं पांचों राफेल, वायुसेना प्रमुख भदौरिया करेंगे रिसीव
- 7 हजार किमी की दूरी तय कर यह बैच बुधवार 29 जुलाई को भारत पहुंचेगा
- पायलटों को आराम देने के लिए फिलहाल राफेल लड़ाकू विमान यूएई में रुके
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। फ्रांस के मेरिनेक एयरबेस से सोमवार को रवाना हुए पांच राफेल विमान भारत आ रहे हैं। पांचों विमान 7 हजार 364 किलोमीटर की दूरी तय कर आज (बुधवार, 29 जुलाई) वायुसेना के अंबाला एयरबेस पर लैंड करेंगे। जिन्हें रिसीव करने के लिए खुद वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया मौजूद रहेंगे। बता दें कि सभी पांचों फाइटर जेट्स ने सात घंटे की यात्रा के बाद संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के अल-दफरा एयरबेस पर स्टॉप लिया था। इससे पहले विमानों में एयर-टू-एयर रीफ्यूलिंग भी की गई, जिसकी तस्वीरें न्यूज एजेंसी एएनआई ने भारतीय वायुसेना के हवाले से साझा की थीं। इसके लिए भारतीय वायुसेना ने फ्रांस की एयरफोर्स का शुक्रिया जताया है। वायुसेना के अनुसार आज सुबह सभी विमान यहां से उड़ान भरेंगे, जिसके बाद दोपहर दो बजे तक वो भारत के अंबाला पहुंच सकते हैं। वहीं अंबाला में आज मौसम बिगड़ सकता है, मौसम विभाग की ओर से बारिश होने की चेतावनी दी गई है। ऐसे में जोधपुर में बैकअप प्लान तैयार है, जहां राफेल को उतारा जा सकता है।
Indian Air Force appreciates the support provided by French Air Force for our Rafale journey back home. @Armee_de_lair @Indian_Embassy @Dassault_OnAir #Rafale#IndianAirForce pic.twitter.com/7Ec8oqOJmr
— Indian Air Force (@IAF_MCC) July 28, 2020
अंबाला एयरबेस का 3 किमी एरिया नो ड्रोन जोन घोषित, धारा 144 लागू
अंबाला एयर बेस राफेल के स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार है। राफेल विमानों के भारत आगमन के मद्देनजर अंबाला एयर बेस के लिए सुरक्षा के बंदोबस्त भी कड़े कर दिए हैं। अब अंबाला एयरबेस के 3 किलोमीटर के दायरे को नो ड्रोन जोन घोषित कर दिया गया है। एयरबेस के तीन किलोमीटर के दायरे में ड्रोन पर पूरी तरह पाबंदी रहेगी। अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो उस पर एक्शन लिया जाएगा। अंबाला छावनी के DSP राम कुमार ने इस बात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पूरे अंबाला में धारा 144 लगा दी गई है। वहीं एयरबेस और आसपास फोटाग्राफी या वीडियोग्राफी पर भी पाबंदी लगा दी गई है।
पहले बेड़े को दिया जाएगा यह नाम
वायुसेना ने इन लड़ाकू विमानों के पहले बेड़े को खास नाम देने जा रही है। इन विमानों के बेड़े को वायुसेना की 17वीं स्क्वाड्रन के तौर पर जाना जाएगा। राफेल विमान के स्क्वाड्रन का नाम "गोल्डन एरो" होगा। इन विमानों का निर्माण करने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट ने अभी 10 राफेल विमान दिए हैं। इनमें से पांच फ्रांस में ही हैं, जिन पर भारतीय वायुसेना के पायलट प्रशिक्षण ले रहे हैं। सभी 36 विमानों की डिलीवरी 2021 के अंत तक हो जाएगी।
पायलटों को दिया गया है खास प्रशिक्षण
राफेल विमानों को उड़ाने के लिए भारतीय वायुसेना के पायलटों को खास प्रशिक्षण दिया गया है। साल 2018 में इस विशेष प्रशिक्षण के लिए एक फाइटर पायलट, एक इंजीनियर और चार तकनीकी विशेषज्ञों को पहले ग्रुप में चुना गया था। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम वर्तमान में भी चल रहा है। इसके लिए अभी पांच राफेल विमानों को फ्रांस में ही रखा गया है। वायुसेना के 12 लड़ाकू पायलटों ने फ्रांस में राफेल लड़ाकू जेट पर अपना प्रशिक्षण पूरा कर लिया है।
रखरखाव की तैयारियां भी पूरी
वायुसेना ने राफेल विमान के रखरखाव की भी तैयारियों को भी अंतिम रूप दे दिया है। इसके लिए वायुसेना ने बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है। अंबाला एयरबेस पर शेल्टर, हैंगर और अन्य सुविधाओं समेत बुनियादी ढांचे को विकसित किया गया है। फ्रांसीसी विशेषज्ञों की देखरेख में इन्हें तैयार किया गया है। यहां एडवांस हैंगर के साथ एक अत्याधुनिक वेपन स्टोरेज बनाया है। जहां राफेल के हथियारों और मिसाइलों को सहेज कर रखा जाएगा।
पोटेंट मेट्योर और स्कैल्प मिसाइल प्रणाली से लैस
राफेल लड़ाकू विमान मेटेओर, स्कैल्प और मिका जैसे विजुअल रेंज मिसाइलों से सुसज्जित होगा, जोकि दूर से ही अपने लक्ष्य को भेद सकती हैं। ये भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में व्यापक इजाफा करेंगे। मेट्योर सिस्टम दुश्मन को हवा से हवा में ही मार गिराने की तकनीक है, जबकि स्कैल्प लंबी दूरी का क्रूज मिसाइल है। इसे इस विमान से ही लॉन्च किया जा सकता है ये मिसाइल दुश्मन के स्थिर और गतिशील लक्ष्यों को अंदर तक जाकर भेद सकता है।
भारत की जरूरतों के मुताबिक किए गए बदलाव
राफेल लड़ाकू विमान में भारत की जरूरतों के मुताबिक कई और बदलाव और संवर्धन किए गए हैं। इन खासियतों पर एयर फोर्स के ऑफिसरों को विशेष रूप से ट्रेनिंग दी गई है। उन्हें न सिर्फ इसकी ऑपरेशनल जानकारी दी गई है, बल्कि रख-रखाव और मरम्मत के बारे में भी बताया गया है।
कुल 36 राफेल में से 30 लड़ाकू विमान और 6 ट्रेनर विमान
इन विमानों की पहली स्क्वाड्रन को अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात किया जाएगा, जिसे भारतीय वायुसेना का सबसे अहम रणनीतिक बेस माना जाता है। दिलचस्प बात ये भी है कि अम्बाला एयरबेस चीन की सीमा से भी 200 किमी की दूरी पर है। अंबाला में 17वीं स्क्वाड्रन गोल्डन एरोज राफेल की पहली स्क्वाड्रन होगी। वहीं, दूसरा रणनीतिक बेस पश्चिम बंगाल के हाशिमारा में होगा। कोरोना महामारी के बावजूद वायुसेना कड़ी मेहनत से जमीनी ढांचे को तैयार कर रही है, ताकि विमानों को यहां से संचालित किया जा सके। वायुसेना ने राफेल के रखरखाव और तैनाती के लिए दोनों स्टेशनों पर करीब 400 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। कुल 36 राफेल में से 30 लड़ाकू विमान हैं, जबकि छह ट्रेनर विमान हैं। ट्रेनर विमान दो सीटों वाले हैं। उनमें लड़ाकू विमानों जैसी ही खासियतें होंगी।
भारत और चीन की वायु सेना की ताकत
भारत-चीन की वायु शक्ति की बात करें तो, पश्चिमी कमांड में, चीन की पीएलए वायुसेना ने 157 लड़ाकू विमान और 20 जीजे-1 डब्ल्यूडी-1के को तैनात किया है। चीन दावा करता है कि इसके घर में बने जे-10सी और जे-16 लड़ाकू विमान, रूस में बने मिग-29, सु-30एस और फ्रांस में बने मिराज 2000 जेट से ज्यादा उन्नत हैं। चीन का यह भी दावा है कि जे-20 लड़ाकू विमान के पास भारतीय लड़ाकू विमान के मुकाबले पीढ़ीगत लाभ है और इस गैप को किसी भी तरह भरपाना मुश्किल है। वहीं दूसरी ओर भारत दावा करता है कि मिराज 2000 और सुखोई 30 चीन के जे10, जे11 और सु-27 विमानों से अधिक ताकतवर हैं।
Created On :   28 July 2020 6:53 PM IST