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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024: पीएम मोदी की मंच से एनसीपी नेता अजित पवार की दूरी, नाराजगी या सोझी समझी चुनावी रणनीति?
- बंटेंगे तो कटेंगे के बयान विरोध में अजित पवार
- मस्लिम और क्रिश्चियन एनसीपी का मतदाता
- पवार की दूरी रणनीति या एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी और एनसीपी अजित पवार के बीच दरार बढ़ रही है। इसे आप इससे समझ सकते है कि 12 नवंबर को पुणे में एक चुनावी रैली के दौरान अजित पवार और पीएम मोदी एक मंच पर एक साथ नजर आए, जबकि इसके दो दिन बाद 14 नवंबर को मुंबई की चुनावी रैली में अजित पवार और पीएम मोदी एक मंच पर साथ नजर नहीं आए। चुनाव में मंच से अजित का नदारद होना दोनों पार्टियों के बीच दरार होना बताता है। चुनाव में कई मुद्दों पर अजित पवार बीजेपी नेताओं के बयान के विरोध में साफ बोल रहे है। पवार गौतम अडानी और बीजेपी के बंटेंगे तो कटेंगे बयान के विरोध में खुलकर बोल रहे है। कुछ भी हो चुनाव में लाभ लेने के लिए अजित पवार और बीजेपी एक दूसरे से दूरी बना सकते है। हालांकि दरार की खाई की गहराई चुनाव बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।
आपको बता दें महाराष्ट्र में पीएम मोदी ने अपनी आखिरी सभा दादर के शिवाजी पार्क में कहा पूरे महाराष्ट्र का आशीर्वाद आज महायुति के साथ है। हालांकि इस दौरान मंच पर महायुति में शामिल एनसीपी अजित पवार और उनकी पार्टी का एक भी नेता इस सभा में मौजूद नहीं था। जबकि शिवसेना शिंदे और आरपीआई के नेता और प्रत्याशी मंच पर मौजूद थे। 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में 20 नवंबर को मतदान है।
महायुति गठबंधन में शामिल बीजेपी 149 ,एनसीपी अजित पवार 59 और शिवसेना शिंदे 81 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महायुति में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। महायुति में शामिल आरपीआई, युवा स्वाभिमान पार्टी, राष्ट्रीय समाज पक्ष और जनसुराज्य भी एक -एक सीट पर चुनाव लड़ रही हैं।
बीजेपी और अजित पवार की दूरियों को इस बात से समझ सकते है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे बयान के विरोध में अजीत पवार ने विरोध करते हुए साफ कहा कि जिन सीटों पर उनकी पार्टी के प्रत्याशी लड़ रहे है उन सीटों पर बीजेपी के किसी भी नेता को प्रचार करने की जरूरत नहीं है। पवार ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री को चुनाव में प्रचार करने से मना किया। राजनीतिक जानकार अजित पवार के बीजेपी से दूरी की वजह एनसीपी के मस्लिम और क्रिश्चियन मतदाता है। ऐसे में अजित का बीजेपी के साथ और बीजेपी से दूरी दोनों स्थितियों में मतदाताओं का भटकना तय है।
पवार का बीजेपी के साथ होने पर बीजेपी का वोट एनसीपी को और एनसीपी का वोट बीजेपी को मिलने थोड़ा मुश्किल माना जा रहा है। दूसरी तरफ दोनों के बीच दूरियां होने से दोनों अपने अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहे है। ऐसे में दोनों दलों के बीच बढ़ती दूरियों के पीछे बीजेपी की चाल है या अजित पवार की रणनीति। या ये दोनों का एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम है। आपको बता दें योगी के बंटेंगे तो कटेंगे के बयान विरोध में अजित पवार के रूख को मोदी के एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे के विरोध में भी माना जाए।
Created On :   15 Nov 2024 6:36 PM IST